सृष्टि का निर्माण भगवान विष्णु की इच्छा से हुआ है और हर युग में धर्म का पालन और सृष्टि का संतुलन महत्वपूर्ण है : रणधीर ओझा
श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन ब्रह्मांड के निर्माण, भगवान विष्णु की भूमिका और सृष्टि के विभिन्न चक्रों का हुआ वर्णन




न्यूज़ विज़न। बक्सर
जिले के इटाढ़ी प्रखंड अंतर्गत स्थानीय नगर में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन भक्तमाली मामाजी के कृपापात्र आचार्य रणधीर ओझा ने सृष्टि की उत्पत्ति, स्वयंभू मनु का चरित्र और भगवान शिव और सती के मिलन के बारे में वर्णन बहुत गहरे और अद्भुत रूप में किया गया है। यह कथा ब्रह्मांड के निर्माण, भगवान विष्णु की भूमिका, और सृष्टि के विभिन्न चक्रों का वर्णन करती है।









सृष्टि की उत्पत्ति के बारे में बताते हुए कहा कि श्रीमद्भागवत में कहा गया है कि जब एक महान प्रलय आता है, तो समस्त ब्रह्मांड जल में समाहित हो जाता है। इस समय ब्रह्मा जी, जो सृष्टि के रचनाकार हैं, भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न हुए कमल पर बैठे होते हैं। भगवान विष्णु इस समय ‘आध्यात्मिक योग’ में लीन रहते हैं। जब यह प्रलय समाप्त होता है, तो भगवान विष्णु अपने कमल में सोते हुए ब्रह्मा जी को सृष्टि के निर्माण के लिए प्रेरित करते हैं। भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी को सृष्टि के निर्माण के लिए निर्देशित किया। ब्रह्मा जी ने अपने मन से “मनस पुत्र” के रूप में कई ऋषियों और देवताओं का निर्माण किया। इसके बाद उन्होंने संसार की रचनाओं का विस्तार शुरू किया। इस प्रकार, ब्रह्मा जी ने सृष्टि के सभी तत्वों—प्रकृति, जीव, जल, आकाश, पृथ्वी, और अन्य सभी जीवों का निर्माण किया।
भगवान विष्णु का विराट रूप:




श्रीमद्भागवत में भगवान विष्णु के विराट रूप का भी उल्लेख किया गया है, जो ब्रह्मांड के पालनहार हैं। भगवान विष्णु सृष्टि के निर्माण, पालन, और संहार के कार्य को अपनी विराट शक्ति से करते हैं। यह विराट रूप हर जीव और कण में व्याप्त होता है और सृष्टि के हर कार्य में भगवान की उपस्थिति होती है।
मनु और उनकी भूमिका:
श्रीमद्भागवत में स्वयंभू मनु का भी महत्वपूर्ण स्थान है। वह पहले मनुष्य हैं और सृष्टि के लिए धर्म का पालन करने वाले पहले व्यक्ति माने जाते हैं। भगवान विष्णु ने मनु को सृष्टि के लिए जिम्मेदार ठहराया और उनसे प्रजा का निर्माण कराया। मनु के नेतृत्व में सृष्टि का पुनर्निर्माण हुआ और उन्होंने अपनी कन्याओं के विवाह से जीवन के विकास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया।
प्रलय के बाद का पुनर्निर्माण:
भागवत कथा में यह भी कहा गया है कि जब सृष्टि का संहार होता है, तो भगवान विष्णु अपने अवतार में आते हैं और सृष्टि को पुनः रचने के लिए ब्रह्मा जी को प्रेरित करते हैं। यह चक्र निरंतर चलता रहता है—सृष्टि का निर्माण, संहार और पुनर्निर्माण।
श्रीमद्भागवत कथा में सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन न केवल ब्रह्मांड के भौतिक निर्माण के बारे में है, बल्कि यह जीवन के गहरे आध्यात्मिक और तात्त्विक पहलुओं को भी उजागर करता है। यह कथा यह बताती है कि सृष्टि का निर्माण भगवान विष्णु की इच्छा से होता है और हर युग में धर्म का पालन और सृष्टि का संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण होता है। इसके माध्यम से यह सब भी दिखाया गया है कि प्रत्येक प्राणी और कण भगवान की विराट शक्ति से जुड़ा हुआ है और भगवान के साथ एक अद्वितीय संबंध रखता है। मिलन विशेष रूप से एक गहरी और आध्यात्मिक कथा है, जो प्रेम, भक्ति, त्याग, और जीवन के उद्देश्य को दर्शाती है। यह कथा भगवान शिव और सती के बीच के अद्वितीय रिश्ते को उजागर करती है, जिसमें सच्ची भक्ति और समर्पण का उच्चतम रूप प्रस्तुत किया गया है।
भगवान शिव और सती का मिलन, सती का जन्म:
सती, जो कि दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं, का जन्म भगवान शिव से जुड़ा हुआ था। उनका मन बचपन से ही भगवान शिव की भक्ति में रमा हुआ था, और वह उन्हें अपना पति बनाने के लिए संकल्पित थीं। सती का प्रेम भगवान शिव के प्रति अत्यधिक था, और वह भगवान शिव के ध्यान में लगी रहती थीं।
सती की तपस्या:
सती ने भगवान शिव से विवाह करने के लिए कठोर तपस्या की। वह हिमालय पर जाकर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन साधनाओं में रत हो गईं। भगवान शिव ने सती की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और उन्हें अपनी अर्धांगिनी बनने के लिए स्वीकार किया। यह विवाह एक दिव्य प्रेम का प्रतीक था, जो भक्ति, समर्पण और सत्य के आधार पर हुआ था।
दक्ष यज्ञ और सती का आत्मदाह:
भगवान शिव और सती का विवाह दिव्य था, लेकिन सती के पिता दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव को नापसंद किया था। एक दिन दक्ष ने एक बड़ा यज्ञ आयोजित किया, जिसमें भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया। जब सती ने यह सुना, तो वह यज्ञ स्थल पर गईं और अपने पिता से यह सवाल किया कि क्यों भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा गया। दक्ष ने उन्हें अपमानित किया और उनकी भक्ति और विवाह का उपहास उड़ाया। इस अपमान से आहत होकर, सती ने यज्ञ की अग्नि में कूदकर आत्मदाह करने का निर्णय लिया।
भगवान शिव का शोक:
सती के आत्मदाह के बाद भगवान शिव अत्यंत दुखी हो गए। उन्होंने सती के शव को अपने कंधे पर उठाया और पृथ्वी पर भ्रमण करना शुरू किया। भगवान शिव के शोक के कारण ब्रह्मांड में विषाद फैल गया, और सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे भगवान शिव को शांत करें। भगवान विष्णु ने भगवान शिव को सांत्वना दी और सती के शरीर के टुकड़े कर दिए, जो पृथ्वी के विभिन्न स्थानों पर गिरकर ‘शक्ति पीठ’ के रूप में पूजे गए।
मौके पर श्याम बिहारी पाठक, रामनारायण पाठक, पारस पाठक, राजेंद्र पाठक, रमेश पाठक, राम व्यास ओझा, सौरभ पाठक, रामाशंकर पाठक, इंद्रलेश पाठक, मन भरन पाठक, राम मूरत पाठक, सत्यपाल पाठक, सोनू पाठक, किट्टू पाठक, जितेंद्र पाठक समेत काफी संख्या में महिला श्रद्धालु मौजूद रही।

