RELIGION

नवरात्रि के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की हुयी पूजा अर्चना

नगर के बाईपास रोड स्थित बुढ़िया काली मंदिर समेत अन्य मंदिरों में हुयी माँ शैलपुत्री की पूजा, भक्तों की उमड़ी भीड़ 

न्यूज़ विज़न।  बक्सर 

चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप माँ शैलपुत्री की उपासना की जाती है। मां दुर्गा अपने पहले स्वरूप में शैलपुत्री के नाम से पूजी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा।

 

नवरात्र के प्रथम दिन रविवार को नगर के सभी देवी मंदिरों में दर्शन व पूजन के लिए भक्तों को भीड़ उमड़ी हुई थी। साथ ही लोगों ने घरों में भी कलश स्थापना कर लोगो ने प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना किया। नगर के बाईपास रोड स्थित बुढ़िया काली मंदिर में रविवार की सुबह से ही श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया था। सिर पर लाल चुनरी, हाथों में पूजा की थाली लिए श्रद्धालुओं की भीड़ से मंदिर खचाखच भरा हुआ था इस दौरान मंदिर के बाहर लाइन में लगी हुई थी। सुबह के नौ बजे के आसपास माँ की भव्य आरती हुयी। वही गेट पर मंदिर समिति के सदस्य तैनात थे को अंदर भीड़ से बचने के लिए प्रवेश द्वार से रोक रोक कर प्रवेश करवाया जा रहा था। सुबह आठ बजे मां का भव्य आरती किया गया।

 

वही दूसरी तरफ शहर के मेन रोड स्थित दुर्गा मंदिर में भी पूजा अर्चना के लिए काफी भीड़ लगी हुई थी लोगों द्वारा बारी बारी से कतारबद्ध होकर माता रानी का पूजन किया जा रहा था। वही गेट पर फूल, प्रसाद व नारियल की दुकानें सजी हुई थी। पूरे दिन मंदिरों में घंटा-घड़ियाल गूंजते रहे। इसके अलावा घर-घर मां की चौकी सजाकर स्थापना की गई। नौ दिन तक चलने वाले इस दुर्गा पूजा के अनुष्ठान में श्रद्धालुओं में उत्साह झलक रहा है, शंख ध्वनि घंटा ध्वनि के बीच पूरे दिन पूजा-पाठ अनुष्ठान चलते रहे।

बाईपास रोड स्थित काली मंदिर के पुजारी चीकू बाबा ने माता शैलपुत्री के बारे में बताया कि सती भगवान शंकर की स्वीकृति के बिना पिता के यहां चली गई। यज्ञ स्थल पर अपना तिरस्कार एवं शिव का आसन न देखकर कुपित सती यज्ञाग्नि में कूद पड़ीं। उधर, शिव की समाधि भंग हुई तो उन्होंने वीरभद्र नामक गण को यज्ञ स्थल पर भेजा। वीरभद्र ने यज्ञशाला का विध्वंस किया और सती के जलते शरीर को लेकर चल पड़ा। धरती पर सती के अंग जिस जिस स्थान पर गिरे, वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गए। सती का अगला जन्म शैलराज की पुत्री पार्वती के रूप में हुआ। पर्वतराज की पुत्री होने के कारण माता के इस प्रथम स्वरूप का नाम शैलपुत्री पड़ा।

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