RELIGION

भगवान सर्वत्र व्यापक है, कण कण में ही उनकी स्थिति है किंतु प्रेम के द्वारा ही वो प्रकट होते है : आचार्य रणधीर ओझा 

न्यूज़ विज़न।  बक्सर 

नगर के नया बाजार स्थित श्री सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम में महंत राजाराम शरण दास जी महाराज के सानिध्य में चल रहे नौ दिवसीय रामकथा के दूसरे दिन आचार्य श्री रणधीर ओझा ने कथा के दौरान कहा कि भगवान श्री राम प्रेम स्वरूप है, प्रेम की निधि है, प्रेमियों के साथ रहते है एवं प्रेमियों को सुख देने के लिए ही तथा उनको प्रेममयी लीलाएं करने में ही आनंद मिलता है भगवान सर्वत्र व्यापक है, कण कण में ही उनकी स्थिति है किंतु प्रेम के द्वारा ही वो प्रकट होते है।

 

मां भगवती पार्वती को कथा सुनाते हुए भगवान शंकर कहते है की जो निर्गुण, अखंड, अनंत और अनादि है तथा जिनका चिंतन ब्रह्मज्ञानी किया करते है, वेद उन्हें नेत नेत कह कर निरूपित करते है। ऐसे महान प्रभु भी भक्तों के प्रेम के वशीभूत होकर दिव्य लीला विग्रह धारण करते है। जो परमार्थ स्वरूप परमब्रह्म है, अलख अनादि, अनुपम आदि सब विकारों से रहित और भेद शून्य है उन राम जी को केवल प्रेम ही प्यारा है। तभी तो भक्तों के प्रेम यश ही सगुण रूप धारण करने वाले श्रीराम ने निषाद राज, गुह, और सबरी के द्वारा दिए गए कंद मूल को बड़े ही प्रेम से स्वीकार किया और उनके मधुमय अश्वाद का बार बार बखान किया। अनेक प्रकार के योग, जप तप, यज्ञ, व्रत और नियम करने पर भी वैसी कृपा नहीं करते जैसी प्रेम होने पर करते है।

आचार्य श्री ने अंत में बताया कि जिस तरह रामचरितमानस में मित्रता का और भाईयों के मन में एक दूसरे के प्रति अपार प्रेम और त्याग की भावना का सजीव चित्रण देखने को मिलता है, ऐसा और कहीं नहीं है। मित्र के सुख के रज जैसा समझो और मित्र के रज जैसे दुख को भी पहाड़ जैसा समझना चाहिए, यही मित्रता है। मित्रता देखना है, तो रामचरितमानस इसका वर्णन मिलता है, राम और सुग्रीव की मित्रता अद्भुत है उसी प्रकार भाई के प्रति भाई का प्रेम भी रामचरितमानस में देखने को मिलता है, ऐसा पूरी दुनिया में कहीं नहीं है। वनवास राम को मिला था लेकिन भाईयों का प्रेम इतना था कि लक्ष्मण जी राम के साथ वन चले गए तो भारत ने सारा वैभव त्याग कर भगवान राम की चरण पादुका को ही सिंहासन पर रख कर रामकाज किया। ये सिखाता है रामचरितमानस की किस तरह से भाईयों में एक दूसरे के प्रति सम्मान और प्रेम है, आज वो नजर नहीं आता। इसीलिए रामचरितमानस को अपने जीवन में उतारने की जरूरत है।

 

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