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मोहम्मद पैगम्बर साहब के जन्मदिन पर निकला शहर में भव्य जुलुस 

'सरकार की आमद मरहबा, आका की आमद मरहबा, जश्न-ए-ईद मिलाद उल नबी जिंदाबाद' के नारे लगे

न्यूज़ विज़न।  बक्सर 

जिले में इस्लामिक कैलेंडर के तीसरे महीने रबी-उल-अव्वल की 12वीं तारीख को मिलाद उल नबी मनाया जा रहा है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन मक्का में 572 ईसवी में पैगंबर साहब का जन्म हुआ था। रविवार की रात से ही शहर के कई मुस्लिम बहुल इलाके रंग-बिरंगे लाइट्स से रोशन हो उठे। पूरी रात पैगंबर मुहम्मद के जन्मदिन में लोगों ने जश्न मनाया। सोमवार को शहर में जगह जगह विशाल शोभायात्रा निकाली गई। मोहम्मद साहिब के जन्म दिवस को याद करते हुए ‘सरकार की आमद मरहबा, आका की आमद मरहबा, जश्न-ए-ईद मिलाद उल नबी जिंदाबाद’ के नारे लगे।

 

शहर के नया बाजार, गजाधरगंज, कोइरपुरवा, सारिमपुर, थाना रोड, बारी टोला, सराय फाटक, दरजी मोहल्ला, सराय फाटक अदि जगहों से जुलुस शहर के यमुना चौक पहुँचता है।  जहा से मुनीब चौक पीपी रोड, रामरेखा घाट रोड , मॉडल थाना होते हुए दरिया शहीद बाबा के मजार पर पहुंच सम्पन्न होता है। दरिया शहीद बाबा मजार के मौलवी ने बताया की इस दिन पैगंबर मोहम्मद हज़रत साहब की ओर से दी गई सीख को पढ़ा जाता है। उन्हें याद किया जाता है। मोहम्मद हजरत साहब के द्वारा किए गए सभी अच्छे कार्यों को याद किया जाता है। बच्चों को मोहम्मद साहब के की ओर से दी गई तालीम को सिखाई जाती है। ईद उल मिलाब को रात भर प्रार्थनाएं की जाती है।

बुराई पर अच्छाई की जीत का परचम लहराने वाला पर्व है जिसे दुनिया के करोड़ों लोग मनाते हैं : डॉ दिलशाद

 

न कलिया ही खिलती ना गुल मुस्कुराते, अगर बागे हस्ती का माली ना होता। यह सब है मेरे कमली वाले का सदका मोहम्मद ना होते तो कुछ भी ना होता। उक्त शेर के साथ मानव अधिकार एवं सामाजिक न्याय के सचिव एवं मशहूर चिकित्सा डॉ सैयद दिलशाद आलम कादरी ने मोहम्मद साहब के जन्मदिन पर होने वाले जुलूस के दौरान सूना बक्सर की सड़को पर निकले जुलुस में जोश भर दिया।

उन्होंने जुलुस में शामिल लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा कि इस्लाम अमन और चमन का पैगाम देता है। बुराई पर अच्छाई की जीत का परचम लहराने वाला पर्व है जिसे दुनिया के करोड़ों लोग मनाते हैं। ईद और बकरीद से भी बड़े इस पर्व पर लाखो नमाजी मस्जिद में नमाज और जलसा मिलाद करते हैं। मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जन्म लगभग 50 570 ई में अरब के मक्का शहर में हुआ था इस्लाम के संस्थापक और कुरान के प्रचारक माने जाते हैं परंपरागत रूप से कहा जाता है कि उनका जन्म 570 में ही हुआ था बिना तो ईश्वर थे और ना ही अमर में 6 साल की उम्र में अनाथ हो गए थे और फिर जब उनके दादा की मृत्यु हुई तो वह फिर अनाथ हो गए और उनका पालन पोषण उनके चाचा ने किया वर्ष 610 में जब वह 40 वर्ष के थे उन्हें गुफा में देवदूत जिब्रील अलैहिस्सलाम के दर्शन हुए जिन्होंने बताया कि मोहम्मद को अल्लाह  के नबी  के रूप में चुना गया है। डॉ दिलशाद ने यह भी कहा कि पैगंबर मोहम्मद इस्लाम के लिए अमन चमन का प्रचार किया उनकी अनेक लड़ाइयां जो अमन और चमन का पैगाम देने के लिए लड़ी गई जिसमें जंगे बद्र की लड़ाई, जंगे उहूद की लड़ाई, जंगे खैबर  जंगे तैफ की लड़ाई खैबर और कर्बला की लड़ाई बहुत ही मशहूर हो मारूफ है। इस्लाम के मानने वाले को शांति से रहने और भाई चारे से रहने के लिए हुज़ूर आका ने सबको बताया जिससे आज भी दुनिया में अमन चमन मौजूद है।

 

डॉक्टर खालिद राजा ने कहा की इस्लाम धर्म में आस्था रखने वालों के लिए ये सबसे बड़ा पर्व है। कमिटी के नसीम और हमीद राजा ने कहा की इस साल और अच्छे से जुलूस निकाला गया जिसमें लाखों लोग सड़क पर शांति का पैगाम दे रहे हैं। मौके पर नसीम, कल्लू, लल्लू, लाल बाबू, मुस्ताक सदरू, अंसारी फहीम राजा सहित सैकड़ों लोग मौजूद थे।

 

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