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आदि कवि महर्षि बाल्मीकि की जयंती साहित्यकार दिवस के रूप में मनाया गया 

न्यूज़ विज़न।  बक्सर 

श्रीमद् रामायण के रचयिता आदि कवि महर्षि वाल्मीकि की जयंती साहित्यकार दिवस के रूप  में भोजपुरी दुलार मंच एवं  प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा भारत के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सलाहकार डा. ओम प्रकाश केसरी पवन नन्दन  के संयोजक व संचालन में,  वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर प्रसाद वर्मा की अध्यक्षता में मनाया गया।

 

 

कार्यक्रम  शुभारम्भ वरिष्ठ चिकित्सक समाजसेवी डॉ महेन्द्र प्रसाद, न.प. के पूर्व  चेयरमैन सह  वरिष्ठ समाज नेत्री मीना सिंह के द्वारा आदि कवि महर्षि वाल्मीकि के तैल चित्र की पूजा अर्चना के साथ किया गया। सोने पे सुहागा के रूप  में शरद् पूर्णिमा एवं वृन्दावन में भगवान श्री जी द्वारा  रचाये गये महारास को भी स्मरण  किया गया। उद्धघाटन कर्ता द्वय महानुभावों द्वारा महर्षि वाल्मीकि के बारे में विस्तार से चर्चा  करते हुए कहा गया कि महर्षि वाल्मीकि ने ऐसा अमूल्य  ग्रंथ श्री रामायण को हम सभी को सौंपे जो पूरे विश्व की अमूल्य निधि है। वियोग साहित्यकार  की निधि होती, उनकी जयंती को साहित्यकार दिवस  के रूप मनाना बिल्कुल वाजिब है, हर साहित्यकार को महर्षि वाल्मीकि जयंती को साहित्यकार दिवस के रुप में मनाना चाहिए।

कार्यक्रम में बतौर विशिष्ट अतिथि गणेश उपाध्याय, डा. शशांक शेखर, शशि भूषण मिश्रा, शिव बहादुर पांडेय प्रीतम, रामेश्वर मिश्र विहान, महेश्वर ओझा महेश,  ई. रामाधार सिंह, राजा रमण पांडेय, मिठास, विनोधर ओझा, लक्ष्मण जायसवाल, ललित नारायण मिश्र, सुहाग, अतुल मोहन प्रसाद सहित अन्य उपस्थित बन्धुओं  एवं साहित्यकार महानुभावों  ने महर्षि वाल्मीकि को नमन करते हुए अपने अपने मुखार बिन्द से महर्षि वाल्मीकि के बारे में एवं साहित्यकार  बन्धुओं  के विषय में अपनी बातों को बडे ही सार गर्भित शब्दों  में  सभी के साझा किये।

 

वही शरद पूर्णिमा के बारे में डॉ पवन नंदन ने कहा कि कि भगवान चन्द्रमा अपनी सम्पूर्ण  कलाओं से परिपूर्ण  होकर धरती के निकट अपनी अमृतमयी धारा से सभी अप्लावित करते हैं,  कहा जाता है कि इस रात में खीर बनाकर रखने से वह दमा के मरीजों के दवा बन जाता है। जिसे रोज खाने से बीमारी कम खत्म हो जाती है।

 

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