सृष्टि के प्रारंभ में ब्रम्हा ने अपने शरीर के दो भाग किए जो मनु शतरूपा हुए : गंगापुत्र




न्यूज विजन । बक्सर
सृष्टि के प्रारंभ में ब्रम्हा ने अपने शरीर के दो भाग किए जो मनु शतरूपा हुए, मनु शतरूपा ने तप किया और भगवान से कहा आप हमारे बेटा बन के आओ, हमे पीड़ा है हमने मनु स्मृति लिखा है, लेकिन मनुष्य तो कर नही सकते तो आप बेटा बन के आओ और पालन करके दिखाओ उक्त बातें बुधवार को जिले के राजपुर प्रखंड अंतर्गत पिपराढ गांव में चल रहे चातुर्मास के दौरान गंगा पुत्र लक्ष्मी नारायण त्रिदंडि स्वामी ने कथा के दौरान कहा।
उन्होंने कहा कि राम जी का आचरण अनुरूप है, राम जी ने उस धर्म को चार रूपो में प्रकट किया। इसीलिए रामो विग्रह्वान धर्मः।1.सामान्य धर्म, 2.विशेष धर्म, सामान्य धर्म तो नीव है, लक्ष्मण जी का धर्म विशेष धर्म है, राम जी ने कहा हे लक्ष्मण मैं तो पिता के सत्य में बंधा हुआ हू, मैं तो 14वर्ष के लिए वन में जाऊंगा, भरत शत्रुघ्न यहां है नही, इसीलिए वे धर्म में बंधे है नही, जब आयेंगे तो उनपर भार होगा, इसी बीच माता पिता की देख रेख कौन करेगा अब तुम्हारा धर्म है पिता का ध्यान रखो, पर मैं बस यही जनता हू।








माता रामो मत पिता राम चंद्र:।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र:।
उन्होंने कहा कि प्रभु श्रीराम ने कहा ऐसा करोगे तो संसार में तुम्हारी अपकीर्ति होगी, नरक जाना पड़ेगा, हमे तो बस आप और आपकी सेवा चाहिए, भरत का धर्म विशेषतर धर्म है, भरत ने तो वलकल धारण कर लिया, जटा बना ली, पर श्त्रुध्न का धर्म विशेषतम धर्म है। वे तो राज वस्त्र धारण करते है , नृत्य गान देखते है, हसने वालो को बुला कर हसी नाटक करवाते है, क्यों 14 साल बाद राम आयेंगे और तुम सब रोवोगे तो स्वर्ग से विदूषक आवेंगे तुम्हारा अधिकार छीन जायेगा। इसलिए इतना अभ्यास करो की तुम्हारी कला को देख राम खिलखिला कर हस पड़े। प्रभु के वियोग में गाय चारा नही खाती, जल नही पीती, सत्रुघ्न उनके गले से लिपट जाते, अरे आप चारा नही खाएंगी और कही शरीर छूट गया और प्रभु आयेंगे और आपको नही देखेंगे तो उनको कितना कष्ट होगा। उनको रुलाना चाहती है, तब गाए चारा खाना प्रारंभ करती है, ऐसे ही सबको सांत्वना देते है , घोड़ों को हाथी को और साम को दिन भर की सूचना भरत को सुनाते है और रात भर राम और भरत के विरह ताप में हा राम, हा भरत करते रात भर रोते है और फिर सुबह मुस्कुराते हुए सबको सांत्वना देते है। ये है दिव्य शत्रुध्न जी का चरित्र।



