सनातन धर्म की रक्षा में सर्वस्व त्याग भी करना पड़े तो समझना चाहिए सौदा सस्ता है : कृष्णानंद शास्त्री पौराणिक जी महाराज
कार्तिक पूर्णिमा पर कंजिया धाम में चल रहे लक्ष्मी नारायण यज्ञ के छठे दिन आयोजित भगवत कथा




न्यूज़ विज़न। बक्सर
श्री कृष्ण का संवरण लीला एवं स्वधाम गमन की भी सर्वाधिक आश्चर्यमय लीला है। महाभारत के उपरांत तकरीबन 35 वर्ष बाद यदुवंशियों के आचरण से श्री कृष्णा सर्वाधिक चिंतित थे चिंता का कारण यदुवंशियों का अशास्त्रीय आचरण था। ब्रह्मण्य देव श्रीकृष्ण की समस्या का समाधान केवल ब्राह्मण ही कर सकते थे अतः दुर्वासदी ब्राह्मणगण द्वारिका के समीप अपनी कुटिया बना ली। उक्त बातें जिला के कंजिया धाम में कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर चल रहे लक्समी नारायण महायज्ञ के छठे दिन भगवत कथा के दौरान कथा वाचक कृष्णानन्द शास्त्री पौराणिक जी महाराज ने कहा।










कथा के दौरान उन्होंने कहा की एक दिन श्री कृष्ण का पुत्र साम्स स्त्री का रूप धारण कर गर्भवती बनने का अभिनय करते हुए मित्रों के साथ ऋषियों का उपहास करते हुए यह पूछने लगा कि मेरी कौन सी संतान गर्भगत है पुत्र या पुत्री ऋषियों ने पहले तो यह कह दिया की आप द्वारिका लौट जाए किंतु वैसा ना होते हुए देखकर घोर अभिशाप दे दिया उसके पेट से सभी यदुवंशियों का नाशक मुसल का जन्म होगा। तत्काल एक लौह मुसल प्रकट हुआ उसे भस्म करके राजा उग्रसेन ने लौह भस्म को समुद्र में फेंकवा दिया वहीं एरक नामक तलवार नुमा घास विशेष के रूप में प्रकट हुआ जो यदुवंशियों द्वारका वासियों के विनाश में समर्थ हुआ।
उन्होंने आगे कहा की बलराम एवं श्री कृष्ण की उपस्थिति में ही उनके संपूर्ण वंश जनों का विनाश ब्राह्मणों के श्राप से हो गया। बलराम जी स्वरूप धारण कर अंतरध्यान हो गए श्रीकृष्णा भी बहेलिये को बहाना बनाकर स्वाध्याय पधारे वही श्री कृष्ण की भागवत सिद्ध होती है। वे सभी संबंधों से निश्चित है धर्म विरुद्ध आचरण शील स्व परिजनों को ब्राह्मणों के अभिशाप से अपनी आंखों के सामने स्वयं ही उपस्थित होकर विनष्ट कराकर उन्होंने यह उपदेश दिया कि सनातन धर्म की रक्षा में सर्वस्व त्याग भी करना पड़े तो समझना चाहिए सौदा सस्ता है।
मित्रों सनातन धर्म ही एकमात्र रक्षणिय है प्राण देकर भी यदि सनातन की रक्षा होती है तो प्राण त्याग देना श्रेयस्कर है श्री कृष्ण चंद्र ने अपना तन स्वजन एवं सदन द्वारिका नगरी सब कुछ बलिदान कर दिया सनातन धर्म की रक्षा हेतु यही श्री कृष्ण का अंतिम लीला संपूर्ण संसार के लिए सर्वथा अनुकरणीय है।

