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वर्षों के संघर्ष का फल : केंद्रीय विद्यालय को मिली 30 साल की लीज पर जमीन

 पूर्व छात्र पंकज राजशेखर आज़ाद और चंदन चौबे कात्यायन रहे इस संग्राम के अग्रदूत, वर्ष 2007 से 2025 तक, पटना से दिल्ली और सड़क से संसद तक की लड़ाई

न्यूज़ विज़न।  बक्सर 

बिहार सरकार की कैबिनेट ने अंततः केंद्रीय विद्यालय बक्सर को 30 वर्षों की लीज़ पर भूमि आवंटित कर दी है। यह फैसला उन पूर्ववर्ती छात्रों की अथक मेहनत का प्रतिफल है, जिन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ स्कूल के स्थायी भवन के लिए आंदोलन को जीवित रखा।

संघर्ष की शुरुआत: 2007 में मुख्यमंत्री के ‘जनता दरबार’

2007 में तब के छात्र पंकज कुमार (अब सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता) ने अपने 24 साथियों के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ‘जनता दरबार’ एक अणे मार्ग, पटना में गुहार लगाई। उस समय शिक्षा सचिव मदन मोहन झा ने “ज़मीन और भवन दोनों मिलेंगे” कहकर छात्रों को मीठे रसगुल्ले खिलाए, पर वादा अधूरा रहा। जमीन न मिलने पर छात्रों ने बक्सर स्टेशन रोड स्थित बसाव मठिया के समीप मुख्यमंत्री का पुतला जलाया। पंकज कुमार ने दिल्ली में और चंदन चौबे ने बक्सर जिले में आंदोलन का मोर्चा संभाला। धरना आरटीआई और लगातार पत्राचार से प्रशासन को झकझोरा गया।

 

राजनीतिक गलियारों में दबाव

उपेंद्र कुशवाहा के केंद्रीय राज्य मंत्री मानव संसाधन बनने पर प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री, राज्यपाल और शिक्षा विभाग तक दस्तक दी। हर बार एक ही माँग किया “विद्यालय को बक्सर शहर के निकट ज़मीन दीजिए।” लंबे इंतज़ार के बाद बिहार कैबिनेट ने विद्यालय के नाम पर 30 साल की लीज स्वीकृत कर दी। सरकार ने स्वीकारा कि छात्रों का तर्क वाजिब था। शहर के समीप जमीन मिलने से हजारों विद्यार्थियों को फायदा होगा।

इस उपलब्धि के नायक पूर्ववर्ती छात्र पंकज राजशेखर आज़ाद सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस, चंदन चौबे कात्यायन ज़िला स्तर पर आंदोलन का चेहरा, निरंतर जनजागृति के साथ विशाल राय, शशि कुमार, शंकर गौरव, पांडे बंधु, दीपक यादव, अमित कुमार समेत 25 पूर्व छात्र। बक्सर के इन जज़्बेदार छात्रों ने साबित कर दिया कि लंबा संघर्ष ही सही, सतत प्रयास का फल मीठा होता है। 18 साल बाद उनका सपना साकार हुआ और केंद्रीय विद्यालय को अपना घर मिल गया।

प्रेरणा के शब्द“लोग कहते रहे ‘नेता मत बनो, पढ़ाई करो।’ हमने पढ़ाई भी की और हक की लड़ाई भी आखिरकार जीत मिली।”

अधिवक्ता पंकज कुमार

आगे की राह

अब चुनौती है : निर्माण कार्य समयबद्ध हो, ताकि अगली पीढ़ी को भटकना न पड़े। पूर्व छात्र समूह ने निर्माण प्रगति पर नज़र रखने के लिए एक मॉनिटरिंग कमेटी बनाने का ऐलान भी किया है।

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