जबतक हमारा जीवन राम की तरह नही रहेगा तबतक श्रीकृष्ण कथा हमे समझ नही आयेगी : आचार्य रणधीर ओझा
दुर्गा पूजा समिति बिझौरा द्वारा आयोजित श्रीमद भगवत कथा के छठे दिन श्रीकृष्ण जन्म की कथा का हुआ वर्णन




न्यूज़ विज़न । बक्सर
जिले के इटाढ़ी प्रखंड अंतर्गत बिझौरा गॉव में दुर्गा पूजा समिति बिझौरा के तत्वाधान में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन भक्तमाली मामाजी के कृपापात्र आचार्य श्री रणधीर ओझा ने कथा के दौरान भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का वर्णन किया।








मथुरा में राजा कंस के अत्याचारों से व्यथित होकर धरती की करुण पुकार सुनकर नारायण ने कृष्ण रुप में देवकी के अष्टम पुत्र के रूप में जन्म लिया और धर्म और प्रजा की रक्षा कर कंस का अंत किया। मनुष्य को उसका पाप मारता है। हमेशा दो वस्तुओं से डरो ईश्वर और पाप से इसलिए भगवान की भक्ति पूरी तन्मयता से करनी चाहिए। जीवन में भागवत कथा सुनने का सौभाग्य मिलना बड़ा दुर्लभ है। जब भी हमें यह सुअवसर मिले, इसका सदुपयोग करना चाहिए। कथा सुनते हुए उसी के अनुसार कार्य करें। कथा का सुनन तभी सार्थक होगा। जब उसके बताए हुए मार्ग पर चलकर परमार्थ का काम करें।
आचार्य श्री ने आगे कहा कि भगवान श्री कृष्ण से हमें संस्कार की सीख लेनी चाहिए । उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण स्वयं जानते थे कि वह परमात्मा है, उसके बाद भी वह अपने माता पिता के चरणों को प्रणाम करने में कभी संकोच नहीं करते थे यह सीख हमें भगवान श्रीकृष्ण से सभी को लेनी चाहिए। आज की युवा पीढ़ी धन कमाने में लगी हुई है लेकिन अपनी कुल धर्म और मर्यादा का पालन बहुत कम कर रहे हैं।
उन्होंने रामकथा का संक्षिप्त में वर्णन करते हुए कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने धरती को राक्षसों से मुक्त करने के लिए अवतार धारण किया। कथा में कृष्ण जन्म का वर्णन होने पर समूचा मंदिर परिसर खुशी से झूम उठा। मौजूद श्रद्धालु भगवान कृष्ण के जय जयकार के साथ झूमकर कृष्ण जन्म की खुशियां मनाई। कथा में कृष्ण जन्म का वर्णन होने पर समूचा कथा स्थल पर मौजूद श्रोता खुशी से झूम उठा। मौजूद श्रद्धालु भगवान कृष्ण के जय जयकार के साथ झूमकर कृष्ण जन्म की खुशियां मनाई।



आचार्य श्री ने अंत में बताया कि जब तक हमारा जीवन राम की तरह नही रहेगा तब तक श्रीकृष्ण कथा हमे समझ नही आयेगी। भागवत कथा एक एैसी कथा है जिसे सुनने ग्रहण करने से मन को शांति मिलती है। अपने शरीर में भरी मैल को साफ करने के लिए अगर इसे मन से ग्रहण करें तो यह अमृत के समान है। मानव का सबसे बड़ा दुश्मन हमारे अंदर बैठा अहंकार है। श्रीमद् भावगत कथा अपने मन में बँठा “मैं” और अहंकार को खत्म करने का उचित दर्शन है ।कथा सुनने अगल बगल के गांव से बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हो रहे हैं।

