भगवान शंकर ने भक्त नरसी को गौ लोक ले जाकर दिखया श्रीकृष्ण की रासलीला, श्रीकृष्ण ने दिया नरसी को आशीर्वाद
रासलीला के आठवे दिन बहकर नरसी के लीला का हुआ मंचन, दर्शक हुए भक्ति में लीन




न्यूज़ विज़न। बक्सर
किला मैदान के रामलीला मंच पर चल रहे 21 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के आठवें दिन शनिवार को दिन में वृंदावन के कलाकारों द्वारा कृष्ण लीला के दौरान ‘भक्त नरसी लीला’ का मंचन किया गया. जिसमें दिखाया गया कि नरसी मेहता बचपन से ही भक्ति में डूबे रहते थे. आगे चलकर उन्हें साधु संतों की संगत मिल गई, जिसके कारण वे पूरे समय भजन कीर्तन किया करते थे. जिस कारण घर वाले उनसे परेशान थे. घर के लोगों ने इनसे घर-गृहस्थी के कार्यों में समय देने के लिए कहा, किन्तु नरसी जी पर उसका कोई प्रभाव न पड़ा।








एक दिन इनकी भौजाई ने इन्हें ताना मारते हुए कहा कि ऐसी भक्ति उमड़ी है तो भगवान के यहाँ जाकर अपना जीवन यापन करों और घर से नरसी को निकाल दिया. इस ताने ने नरसी पर जादू का कार्य किया. घर से निकालने के बाद नरसी चलते चलते जूनागढ़ से कुछ दूर एक पुराने शिव मंदिर में पहूंच जातें हैं, वहाँ भगवान शंकर के शंकर के चरणों में गिरकर उपासना करने लगते हैं. उनकी उपासना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए जहाँ भक्त नरसी ने भगवान शंकर से कृष्णजी के दर्शन करने की इच्छा प्रकट की. उनकी इच्छा की पूर्ति हेतु भगवान शंकर ने नरसी जी को श्री कृष्ण के दर्शन करवाये. शिव इन्हें गोलोक ले गए जहाँ भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला के दर्शन करवाये. जहाँ श्रीकृष्ण ने नरसी जी को आशीर्वाद दिया।
उसके बाद भक्त नरसी को श्री कृष्ण सभी विपत्तियों में स्वयं उपस्थित होकर मदद पहुंचाते है.
एक बार नरसी मेहता की जाति के लोगों ने उनसे कहा कि तुम अपने पिता का श्राद्ध करके सबको भोजन कराओ. नरसी जी ने भगवान श्री कृष्ण का स्मरण किया और देखते ही देखते सारी व्यवस्था हो गई. श्राद्ध के दिन कुछ घी कम पड़ गया और नरसी जी बर्तन लेकर बाजार से घी लाने के लिए गए. रास्ते में एक संत मंडली को इन्होंने भगवान नाम का संकीर्तन करते हुए देखा. नरसी जी भी उसमें शामिल हो गए. कीर्तन में यह इतना तल्लीन हो गए कि इन्हें घी ले जाने की सुध ही न रही. घर पर इनकी पत्नी इनकी प्रतीक्षा कर रही थी।
भक्त वत्सल भगवान श्री कृष्ण ने नरसी का वेश बनाया और स्वयं घी लेकर उनके घर पहुंचे. ब्राह्मण भोज का कार्य सुचारू रूप से सम्पन्न हो गया। एक बार नागरिको ने नरसी जी की बेइज्जती करने के लिए कुछ तीर्थयात्रीयो को नरसी के घर भेज दिया और द्वारिका के किसी सेठ के ऊपर हुंडी लिखने के लिए कहा . पहले तो नरसी जी ने मना कि मेरे पहचान का कोई सेठ नहीं जो तुम्हे द्वारका में हुंडी दे देगा, पर जब साधु नहीं माने तो उन्हों ने कागज ला कर पांच सौ रूपये की हुंडी द्वारका में देने के लिये लिख दिया और देने वाले का नाम सांवल शाह लिख दिया.
द्वारका नगरी में पहुँचने पर संतों ने सब जगह पता किया लेकिन कहीं भी सांवल शाह नहीं मिले. सब कहने लगे की अब यह हुंडी तुम नरसी से ही ले लेना।
भगवान कृष्ण ने सांवल शाह के रूप में प्रगट हो कर संतों को हुंडी दे दी. एक समय नरसी जी की पुत्री नानी बाई का विवाह तय होता है. तब उसके ससुराल वालों ने गरीब नरसी के अपमान के लिए (दहेज) भात भरने के सामानों की एक लम्बी सूची बनाई. और उसे निमंत्रण पत्र के साथ नरसी को भेंज दिया गया।
अपने इस अपमान से नरसी जी व्यथित हो गये और रोते हुए श्री कृष्ण को याद करने लगे, नानी बाई भी अपने पिता के इस अपमान को बर्दाश्त नहीं कर पाई और आत्महत्या करने दौड़ पड़ी. परन्तु श्री कृष्ण ने नानी बाई को रोक दिया और उसे यह कहा कि कल वह स्वयं नरसी के साथ भात भरने के लिये आयेंगे।
दूसरे दिन नानी बाई देखती है कि नरसी जी संतों की टोली और कृष्ण जी के साथ चले आ रहे हैं और उनके पीछे ऊँटों और घोड़ों की लम्बी कतार आ रही है जिनमें सामान लदा हुआ है, दूर तक बैलगाड़ियाँ ही बैलगाड़ियाँ नज़र आ रही थी, ऐसा मायरा न अभी तक किसी ने देखा था न ही देखेगा.यह सब देखकर ससुराल वाले अपने किये पर पछताने लगे, उनके लोभ को भरने के द्वारिकाधीश ने बारह घण्टे तक स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा करते रहे. और हर वक्त अपने भक्त को लाज बचाते रहे. उक्त लीला का दर्शन कर भक्त भाव विभोर होकर भगवान श्रीकृष्ण का जयघोष करने लगते हैं।





