32 वर्षों बाद मिला न्याय, जमीन विवाद में हत्या के चार दोषियों को आजीवन कारावास


न्यूज़ विज़न। बक्सर
बक्सर जिले के सिमरी थाना क्षेत्र में वर्ष 1993 में जमीन विवाद को लेकर हुई मारपीट के एक मामले में 32 वर्षों बाद न्याय की बड़ी मिसाल सामने आई है। गुरुवार को अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (एडीजे-5) की अदालत ने इलाज के दौरान हुई मौत के मामले में चारों आरोपियों को हत्या का दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इसके साथ ही कोर्ट ने प्रत्येक अभियुक्त पर 10-10 हजार रुपये का अर्थदंड भी लगाया है।
इस संबंध में जानकारी देते हुए अपर लोक अभियोजक शेषनाथ सिंह एवं अनिल सिंह ने बताया कि यह घटना 11 अगस्त 1993 की है। सिमरी थाना क्षेत्र के दुधीपट्टी गांव निवासी अशोक कुमार राय अपने घर के दरवाजे पर बैठे हुए थे। उसी दौरान जमीन विवाद को लेकर गांव के ही कुछ लोग उनके दरवाजे पर पहुंचे। आरोप है कि रामप्रवेश राय ने अशोक राय को गाली देते हुए कहा कि “साले को सुधार कर रहेंगे” और इसके बाद सभी आरोपियों ने लाठी-डंडे एवं हरवे-हथियार से उन पर जानलेवा हमला कर दिया।
हमले में अशोक कुमार राय गंभीर रूप से घायल हो गए। उन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां 13 अगस्त 1993 को उनका बयान दर्ज किया गया। हालांकि इलाज के दौरान उनकी स्थिति बिगड़ती चली गई और अंततः उनकी मौत हो गई। इस घटना के बाद मृतक के परिजनों द्वारा सिमरी थाना में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। मामले में आरोपित बनाए गए लोगों में रामप्रवेश राय, रामाश्रय राय, रामपुकार राय (तीनों पिता- केदारनाथ राय) तथा समरेंद्र पांडेय उर्फ सतीश राय (पिता- सुभाष राय), सभी निवासी दुधीपट्टी, सिमरी शामिल थे। पुलिस ने मामले की जांच के बाद चारों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था।
करीब 32 वर्षों तक चले इस लंबित मुकदमे में अदालत ने गवाहों के बयान, साक्ष्य और अभियोजन पक्ष की दलीलों के आधार पर चारों अभियुक्तों को दोषी पाया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अभियुक्तों ने आपसी भूमि विवाद में साजिश के तहत जानलेवा हमला किया, जिसके कारण पीड़ित की मौत हुई। यह अपराध हत्या की श्रेणी में आता है। अदालत के इस फैसले से मृतक के परिजनों ने संतोष जताया है। वहीं, लंबे समय बाद आए इस निर्णय को न्यायिक प्रक्रिया में भरोसा बहाल करने वाला बताया जा रहा है। 32 वर्षों बाद हत्या के मामले में सजा सुनाए जाने को जिले में एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक निर्णय के रूप में देखा जा रहा है।





