RELIGION

पंचकोशी मेला के पहले पड़ाव अहिरौली में श्रद्धालुओ ने किया माता अहिल्या का पूजन कर किया प्रसाद ग्रहण

त्रेता युग से चली आ रही है पंचकोश यात्रा की परम्परा

न्यूज़ विज़न।  बक्सर 

धर्म, आध्यात्म और आस्था की नगरी बक्सर में त्रेता युग में भगवान श्रीराम और लक्ष्मण जी की पंचकोशी यात्रा की स्मृतियां यही से जुड़ी हुई है। पंचकोशी यात्रा का शुभारम्भ बुधवार को अहिरौली से हुआ।

 

इसके पूर्व संतों के जत्थे ने सुबह रामरेखा घाट पर गंगा स्नान कर आरती पूजन किए। फिर, यात्रा के प्रथम पड़ाव अहिरौली पहुंचे जहा माँ अहिल्या का पूजन किया गया। जिसके पश्चात मंदिर परिसर में महिलाओं द्वारा दीप दान किया गया।  और मंदिर समिति द्वारा प्रसाद वितरण काउंटर से प्रसाद ग्रहण किया।

अहिरौली में संतों और श्रद्धालुओं ने माता अहिल्या मंदिर और गौतम ऋषि के आश्रम में पूजा-अर्चना की और पुआ का प्रसाद ग्रहण कर वहां भजन-कीर्तन किए। कहा जाता है कि गौतम ऋषि के श्राप से पत्थर बनी माता अहिल्या का इसी यात्रा के दौरान भगवान श्रीराम ने उद्धार किया था।

संतों का काफिला बृहस्पतिवार को पंचकोशी यात्रा के दूसरे दिन नदांव के लिए प्रस्थान करेगा, जहां नारद कुंड की परिक्रमा की जाएगी। यहाँ लगे मेला में दूर-दराज से काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे थे।अहिरौली गांव पूरी तरह से मेला के रूप में परिणत था। मंदिर के आसपास काफी संख्या में अस्थायी दुकानें लगी हुई थीं। जहां श्रद्धालु विभिन्न सामान की खरीदारी कर रहे थे। दूसरी ओर, बच्चों के मनोरंजन के भी भरपूर इंतजाम थे। काफी संख्या में लोगों ने पंचकोसी परिक्रमा के पहले दिन अहिरौली में पूजा-अर्चना कर परंपरा का पालन किया।

प्रभु श्रीराम की की कर्मभूमि है बक्सर इसका कभी अंत नहीं हो सकता : गंगापुत्र 

त्रेता युग में अहिरौली गंगा तट पर गौतम ऋषि का आश्रम था अहिल्या गौतम ऋषि की पत्नी थी जिसकी सुंदरता देख भगवन इंद्र गौतम ऋषि का भेष बदल अहिल्या के पास पहुंचे थे तभी गौतम ऋषि पहुंच गये और अहिल्या को श्राप दे दिया जिससे वो पत्थर की बन गयी। जिसका उद्धार प्रभु श्रीराम द्वारा महर्षि विश्वामित्र के यज्ञ को सफल बनाने के पश्चात् किया गया था। इस तरह बक्सर प्रभु की कर्मभूमि है जो काफी दिव्य है इसका कभी अंत नहीं हो सकता है पुरे विश्व का अंत हो जायेगा लेकिन बक्सर का नहीं उक्त बातें पंचकोशी मेला के प्रथम पड़ाव स्थल अहिरौली में गंगा पुत्र त्रिदंडी स्वामी लक्ष्मी नारायण स्वामी ने अपने प्रवचन के दौरान कहा।

उन्होंने कहा की उसी समय से ये  पंचकोश यात्रा चली  रही है, वही मेला में अपना विशाल टेंट लगा श्रद्धालुओं को प्रसाद ग्रहण की व्यवस्था भी स्वामी जी द्वारा किया गया था।

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