श्यामा प्रसाद मुखर्जी के 72 वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि सभा आयोजित
भाजपा नगर द्वारा आयोजित किया गया श्रद्धांजलि सभा




न्यूज़ विज़न। बक्सर
सोमवार को बक्सर भाजपा नगर के पूर्व महामंत्री बसंत कुमार के आवास पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के 72 वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि सभा सुबह 8 बजे मनायी गयी। जिसका मंच संचालन नगर उपाध्यक्ष गणेश कुमार शर्मा व राम जी प्रसाद ने की। सभा में मुख्य वक्ता अमर जायसवाल ने कहा कि मुखर्जी साहब ने आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, उनका जन्म अत्यंत विशिष्ट घराने में 6 जुलाई 1901 को कोलकाता में हुआ था। और उनका निधन 23 जून 1953 को श्रीनगर में हुआ था।







पूर्व महामंत्री बसंत कुमार ने बताया कि 6 जुलाई 1901 को कलकत्ता के अत्यन्त प्रतिष्ठित परिवार में डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी जी का जन्म हुआ। उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे एवं शिक्षाविद् के रूप में विख्यात थे। डॉ॰ मुखर्जी ने 1917 में मैट्रिक किया तथा 1921 में बी०ए० की उपाधि प्राप्त की। 1923 में लॉ की उपाधि अर्जित करने के पश्चात् वे विदेश चले गये और 1926 में इंग्लैण्ड से बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे। अपने पिता का अनुसरण करते हुए उन्होंने भी अल्पायु में ही विद्याध्ययन के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलताएँ अर्जित कर ली थीं। 33 वर्ष की अल्पायु में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने। इस पद पर नियुक्ति पाने वाले वे सबसे कम आयु के कुलपति थे। एक विचारक तथा प्रखर शिक्षाविद् के रूप में उनकी उपलब्धि तथा ख्याति निरन्तर आगे बढ़ती गयी I

भाजपा के वरिष्ठ नेता हरिशंकर गुप्ता ने कहा कि मुखर्जी जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। उस समय जम्मू कश्मीर का अलग झण्डा और अलग संविधान था। वहाँ का मुख्यमन्त्री (वजीरे-आज़म) अर्थात् प्रधानमन्त्री कहलाता था। संसद में अपने भाषण में डॉ॰ मुखर्जी ने धारा-370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की। अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूँगा। उन्होंने तात्कालिन नेहरू सरकार को चुनौती दी तथा अपने दृढ़ निश्चय पर अटल रहे। अपने संकल्प को पूरा करने के लिये वे 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहाँ पहुँचते ही उन्हें गिरफ्तार कर नज़रबन्द कर लिया गया। 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी। प्रेम बावर्ची ने कहा कि मुखर्जी जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। उस समय जम्मू कश्मीर का अलग झण्डा और अलग संविधान था। वहाँ का मुख्यमन्त्री (वजीरे-आज़म) अर्थात् प्रधानमन्त्री कहलाता था। संसद में अपने भाषण में डॉ॰ मुखर्जी ने धारा-370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की।
दीपक उपाध्याय ने कहा कि उन्हें एक राष्ट्र के दो झंडे स्वीकार नहीं थे। श्रद्धांजलि सभा में मुख्य रूप से ओबीसी मोर्चा के जिला महामंत्री मनोज कुमार गुप्ता, ओबीसी मोर्चा के नगर अध्यक्ष रूपेश चौरसिया , नगर महामंत्री राजीव वर्मा, संजय चौबे, संतोष कुमार, आदित्य कुमार, विद्या सागर, पवन कुमार वगैरह दर्जनों कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

