RELIGION

भगवान के चरणों मे जो स्थान नही पाया उसका जीवन असफल है : रामचंद्राचार्य जी महाराज 

चरित्रवन लक्ष्मीनारायण मंदिर में आयोजित भागवत कथा का दूसरा दिन 

न्यूज़ विज़न।  बक्सर 

सत्य परिवर्तन शील है जो  मिटता नही है। भगवान कृष्ण ने कहा कि अर्जून प्रकृति व मनुष्य दोनों अनादि है। जगत  मिथ्या नही है। जगत की कोई भी वस्तु स्थिर नही है। हर क्षण वस्तु बदलती रह्ती है। यानी गर्भावस्था से लेकर वृद्ध होने तक शरीर मे धीमी गति से परिवर्तन होता है। गति इतनी धीमी रहती है की लगता है कि शरीर स्थिर है, लेकिन फिर भी परिवर्तन चलता रहता है। भगवान श्रीकृष्ण जब बासुदेव के यहां जन्म लेने वाले थे तो सभी देवताओं ने एक श्लोक में नौ बार सत्य सत्य से सम्बोधित किया।इसलिए भगवान श्रीकृष्ण सत्य है। वही परम् सत्य है। उक्त बातें शहर के चरित्रवन लक्ष्मीनारायण यज्ञ के दौरान आयोजित भागवत कथा के दूसरे दिन शुक्रवार को अनन्त विभूषित जगद्गुरु रामानुजाचार्य पुष्कर पीठाधीश्वर स्वामी रामचंद्राचार्य जी महाराज ने कहा।

 

 

उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण व नारायण में कोई परिवर्तन नही होता है। भगवान नित्य किशोरावस्था में है। वृंदावन व मथुरा सहित अन्य जगहों पर रहकर भी किशोर ही रहे। जब परमपद को गए तो भी किशोरावस्था में ही गए। भगवान पर काल का भी प्रभाव नही होता है। ऐसे परम् सत्य भगवान की भक्ति में लीन रहना होगा। इन्होंने कहा कि शुकदेवजी से ऋषियों ने पूछा कि द्वापर युग में तो एक ही अघासुर था। लेकिन कलियुग में बहुत अघासुर हो गए है। ऐसे अघासुर की शुद्धि कैसी होगी। सारे शास्त्रों का निचोड निकालकर बताइए कि आखिर में मनुष्य क्या करें। मनुष्य काफी उलझा हुआ है। घर गृहस्थी दुनिया भर प्रपंच से बंधा हुआ है। ऐसे विवश मनुष्य की शुद्धि कैसी होगी। जो अपने जीवन को सफल कर ले। जीव का कर्म धर्म परम् कर्तव्य क्या है। भगवान कृष्ण धर्म की स्थापना करने आये थे। भगवान परम् धाम को चले गए,तो धर्म कहा है। धर्म का आश्रय कहा होगा। तब शुकदेव जी महाराज प्रसन्न होकर ऋषियों को कथा सुनातेहै। तब शुकजी ने मा सरस्वती व नारायण का ध्यान लेकर कहा कि मनुष्य का परम धर्म कर्तव्य अंतिम समय आते आते भगवन से प्रेम तथा लगाव पैदा हो जानी चाइये। इसी में जीवन की सफलता है। जीवन मे ईमानदारी पूर्वक जियें। मनुष्य को अपने अलावे सभी लोगो मे कमी दिखाई देती है। इससे अपने मे कमी ढूंढिए। भगवत तत्व को जो प्राप्त कर ले वो सफल है। भगवान के चरणों मे जो स्थान नही पाया उसका जीवन असफल है। कथा के दौरान श्रीलक्ष्मीनारायण मंदिर के महंत स्वामी राजगोपालाचार्य जी महाराज त्यागी स्वामी जी सहित अन्य श्रोताओं की भीड़ लगी रही।

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