प्रभु श्रीराम ने राक्षसों का वध करने के पश्चात गंगा की मिट्टी से किया था रामेश्वरनाथ की स्थापना
देश विदेश से रामरेखा घाट स्थित रामेश्वर नाथ के दर्शन को आते है श्रद्धालु




न्यूज़ विज़न। बक्सर
शिव की महिमा अपरंपार है कहा जाता है कि त्रिनेत्र औघड़दानी बाबा भोले शंकर जिस पर प्रसन्न हो जाएं, उसका जीवन धन्य हो जाता है। महर्षि विश्वामित्र की तपोभूमि और मिनी काशी के नाम से प्रसिद्ध बक्सर जिला का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। बक्सर में श्री रामेश्वर नाथ मंदिर भी धार्मिक धरोहरों में एक है। यहां रामेश्वर नाथ महादेव के दर्शन और पूजन के लिए देश ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी भक्त आते हैं। अति प्राचीनतम इस मंदिर की व्याख्या धार्मिक ग्रंथों में भी पढ़ने और सुनने को मिलता है। भगवान श्री राम ने इस मंदिर की स्थापना अपने हाथों से किया था।








रामरेखा घाट के पुजारी अमरनाथ पाण्डेय उर्फ लाला बाबा ने बताया कि 13 लाख वर्ष पूर्व त्रेतायुग में महर्षि विश्वामित्र व अन्य ऋषि मुनियों द्वारा यज्ञ करवाया जा रहा था तो राक्षस विध्न उत्पन्न करते थे इतना ही नहीं विरोध करने पर ऋषियों को भी छति पहुचाते थे। तब महर्षि विश्वामित्र अयोध्या गए और राजा दशरथ जी से यज्ञ को सफल बनाने के लिए भगवान राम व लक्ष्मण को राजा से मांग कर लाए। और भगवान ने ताड़का सुबाहु जैसे राक्षसों का वध कर यज्ञ को सफल बनवाया। यज्ञ सफल होने के बाद भगवान रामरेखा घाट पहुंचे और गंगा स्नान कर एक रेखा खींची ताकि चारों दिशाओं सहित आकाश और पाताल के रास्ते भी यहां राक्षसों का प्रवेश नहीं हो सके। उसी रेखा के कारण इस जगह का नाम रामरेखा घाट पड़ा।


रामेश्वर नाथ मंदिर के पुजारी विक्की बाबा ने बताया कि गंगा के तट पर रामरेखा घाट किनारे स्थित श्री रामेश्वर नाथ मंदिर का इतिहास लगभग 13 लाख वर्ष पूर्व का है। इस मंदिर की स्थापना स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी। उन्होंने बताया कि महर्षि विश्वामित्र के यज्ञ सफल बनाने के बाद रामरेखा घाट पहुंचे भगवान ने गंगा स्नान करने के बाद भगवान शिव की पूजा-अर्चना के लिए गंगा के मिट्टी से शिवलिंग की स्थापना कर पूजा अर्चना किए। जिसे आज रामेश्वर नाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि सच्चे मन से पवित्र गंगा में स्नान करने के बाद जो भक्त रामेश्वर नाथ यानी शंकर भगवान दर्शन करता है, उस पर लगा ब्रह्महत्या जैसा पाप भी मिट जाता है। वही रामेश्वर नाथ मंदिर भक्तों के लिए एक बड़ा आस्था का केंद्र है।
मंदिर के पंडितो की माने तो मंदिर में लगे बड़ा घंटा को डुमराव के राजा ने लगवाया था। जो आज भी इस मंदिर में मौजूद है। मंदिर परिसर में शिवरात्रि को लेकर रंगाई पुताई के साथ साथ साफ सफाई और लाइटिंग की व्यवस्था दुरुस्त करने का कार्य आरंभ हो गया है। सोमवार को भगवान शिव पार्वती के विवाह की तैयारी भी चल रहा था।

