धन का आकर्षण ज्ञान और वैराग्य को नष्ट कर देता है: राजेन्द्र देवाचार्य जी
श्री सीताराम विवाह आश्रम में श्री राम कथा श्रवण को जुट रही साधु-संत और श्रद्धालुओं की भीड़


न्यूज विजन। बक्सर
अध्यात्म गांव बना नया बाजार में सिय-पिय मिलन महोत्सव भक्ति की धारा बह रही है। शनिवार को पूज्य संत श्री खाकी बाबा सरकार की पुण्य पर आयोजित 56 वां श्री सीताराम आश्रम में श्री राम कथा के पांचवे दिन श्री अग्रमलूक पीठाधीश्वर श्री राजेन्द्र देवाचार्य जी महाराज ने जंगल जननी मां पार्वती जी कैसे दशरथ जी के लाल का दर्शन के जाती हैं, उसका भाव के साथ वर्णन किया। महाराज जी ने कहा की पार्वती मैया खिलौने वाले का रूप धारण कर जाती हैं। वे आवाज लगाती हैं। मैया बड़ी दूर से आई खिलौना लेलो। आवाज सुन रह, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न द्वार पर आ जाते हैं। चारों लाल खिलौना पसंद करते हैं और टोकरी खाली हो जाती है। मैया कौशल्या टोकरी रत्नों से भर देती हैं। इस पर खिलौना वाली बनी पार्वती जी कहती हैं, इससे संतोष नहीं है। कौशल्या मां कहती हैं कि और क्या चाहिए। पार्वती जी कहती हैं चारों लाल को गोद में खिलाने का अवसर दिजिए। फिर वो चारों लाल को जी भर कर प्यार करती है और दुलारती हैं। इस प्रसंग को सुन साधु-संत और श्रद्धालु भाव विभोर हो गए।
प्रभु श्री राम घोड़े से खेलते हुए पूरे जगत को शिक्षा देते हैं। महाराज जी ने कहा कि हम सभी प्रभु राम के घोड़े हैं। वेद वाणी ही प्रभु श्री राम की बात है। हम सब घोड़ा रूपी सवारी हैं और प्रभु श्री राम सवार। माता पार्वती वहां से लौट शंकर भगवान को सारी बात बताती हैं। उनकी बात सुनकर शंकर भगवान भी बंदर लिए मदारी बन चारों लाल के दर्शन हेतु प्रस्थान करते हैं। जगद गुरू राजेन्द्र देवाचार्य जी महाराज ने कहा कि धन का आकर्षण ज्ञान और वैराग्य को नष्ट कर देता है। मनुष्य का आश्रय या अनन्य आश्रय भगवत के आश्रय को कमजोर कर देता है। शरणागति में सब कुछ स्वीकार है। इसमें अगर कोई दोष होता है तो भी भगवान उसको शरण में लेते हैं। भगवान कहते हैं कि सभी जीव शरणागति के अधिकारी हैं।
श्री सीताराम विवाह आश्रम में श्री जानकी जी (माता सीता) का जन्म लील लीला का मंचन कलाकारों ने श्री कैलाश चंद्र शर्मा के निर्देशन में किया। इसमें दिखाया गया कि जानकी जी का जन्म राजा जनक द्वारा एक खेत की जुताई के दौरान हुआ। जब राजा जनक हल चला रहे थे, तो हल एक कलश से टकराया, जिससे एक कन्या निकली। राजा जनक ने उस कन्या को अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार करते हैं और ‘सीता’ नाम देते हैं, क्योंकि उनके





