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15 साल बाद भी इंतजार! बक्सर के स्कूलों को नहीं मिली RTE की प्रतिपूर्ति राशि

एसोसिएशन ने सरकार से मांग की है कि प्रतिपूर्ति राशि शीघ्र जारी की जाए, अन्यथा स्कूल या तो इन नामांकनों में रुचि लेना बंद कर देंगे या फिर न्यायालय की शरण लेंगे

न्यूज़ विज़न।  बक्सर 

प्राइवेट स्कूल्स एंड चिल्ड्रन वेलफेयर एसोसिएशन के तत्वावधान में शहर के बाईपास रोड स्थित एमजी रेजिडेंसी होटल में विद्यालय प्रबंधकों एवं प्राचार्यों की एक बैठक आयोजित हुई। जिसमे शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत नामांकित बच्चों एवं उन बच्चों का शिक्षा विभाग द्वारा पढ़ाई की राशि की प्रतिपूर्ति को लेकर चर्चा परिचर्चा आयोजित हुई।

 

RTE के तहत बकाया भुगतान पर भड़के निजी स्कूल – बक्सर में शिक्षा विभाग से मांगा जवाब

ज्ञात हो कि विगत साल शिक्षा सचिव एवं शिक्षा विभाग ने स्वयं यह स्वीकारा था कि आरटीई का एडमिशन फरवरी, मार्च माह तक कर लिया जाएगा किंतु अप्रैल माह के अंतिम सप्ताह तक विभाग द्वारा रेंडमाइजेशन किया जा रहा है। साथ ही साथ आरटीई अधिनियम के द्वारा पढ़ रहे छात्रों का भुगतान यथाशीघ्र करने का विभाग ने कमिटमेंट किया था। आरटीई को लागू हुए लगभग 15 वर्ष हो चुके हैं जबकि बिहार के कई जिलों में प्रतिपूर्ति राशि का भुगतान लगातार हो रहा है किंतु बक्सर में अभी तक विद्यालयों को प्रतिपूर्ति राशि नहीं मिली। जिला प्रशासन द्वारा 35 विद्यालयों के निरीक्षण का दिशा निर्देश भी जारी हुआ किंतु यह प्रक्रिया भी कई एक माह से मंथर गति से चल रही है और अभी तक कुछ एक विद्यालयों का ही इंस्पेक्शन हो पाया है और रिपोर्ट संभवतः सबमिट हो पाया है। शिक्षा विभाग इस क्षेत्र में बहुत ही लचर रवैया अपनाए हुए हैं।

 

आरटीई द्वारा कक्षा वन में एडमिशन के लिए विभाग द्वारा जो बच्चों का चुनाव किया जाता है उसका क्राइटेरिया केवल उम्र रखा गया है परिणाम यह होता है कि बच्चों को क ख ग घ और ए बी सी डी का भी ज्ञान नहीं है और वह निजी विद्यालयों में कक्षा वन के लिए भेज दिए जाते हैं। ऐसी स्थिति में बच्चों के मानस पटल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है एवं अभिभावक को ज्यादा नुकसान होता है क्योंकि जिन बच्चों का एडमिशन नर्सरी में होना चाहिए उनका एडमिशन स्टैंडर्ड वन में प्रेषित कर दिया जाता है। एक बात और ध्यान में लानी है कि टेक्निकल स्मार्ट लोग इस प्रावधान का ज्यादा लाभ उठा रहे हैं। एडमिशन का आर्थिक क्राइटेरिया होने के कारण और आर्थिक स्थिति की जांच पड़ताल की कोई निश्चित प्रक्रिया ना होने के कारण आर्थिक रसूख वाला व्यक्ति भी अपना इनकम या आय प्रमाण पत्र है 100000 के आसपास का बनवा लेता है और वह आरटीई एडमिशन के लिए एलिजिबल हो जाता है। जबकि ऐसे लोगों के बच्चे किसी न किसी दूसरे विद्यालय में पैसा देकर के पढ़ रहे होते हैं। क्या कोई व्यक्ति अगर किसी साल में₹100000 कमाता है तो क्या अगले 8 वर्षों तक उसकी आय नहीं बढ़ती है। क्यों नहीं प्रतिवर्ष ऐसे अभिभावकों से आय का एफिडेविट लिया जाए ताकि सरकार को भी और विद्यालयों को भी आर्थिक हानि ना हो।

 

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आरटीई एडमिशन में विद्यालय की भूमिका बिल्कुल ही नगण्य होने के कारण उचित अभिभावकों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है बल्कि इस प्रावधान का मिसयूज ज्यादा हो रहा है। सरकार से यह भी आग्रह है कि वह शिक्षा के अधिकार अधिनियम द्वारा नामांकित बच्चों की प्रतिपूर्ति राशि विद्यालयों को यथाशीघ्र निर्गत करें। अगर सरकार विद्यालयों की मांग पर ध्यान नहीं देती है तो या तो विद्यालय इन बच्चों के नामांकन एवं पढ़ाई में अभिरुचि कम कर देंगे या फिर अदालत की तरफ रुख करेंगे। सरकार का प्राइवेट विद्यालयों के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैया किसी भी प्रकार से ना तो बच्चों के हित में है ना अभिभावकों के और नहीं विद्यालयों के। अतः प्राइवेट स्कूल एंड चिल्ड्रन वेलफेयर एसोसिएशन शिक्षा विभाग एवं जिला प्रशासन से आग्रह करता है कि बच्चों एवं विद्यालयों के हित में यथाशीघ्र आरटीई द्वारा नामांकित बच्चों की प्रतिपूर्ति राशि विद्यालयों को आवंटित करें। अगर सभी जिलों में राशि का वितरण हुआ है तो बक्सर में क्यों नहीं कहीं ? इस स्थिति को दूर करना होगा नहीं तो प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन न्यायालय की तरफ रुख करने को विवश होगा।

 

बैठक की अध्यक्षता अध्यक्ष अजय मिश्रा ने किया जबकि बैठक में फाउंडेशन के प्रिंसिपल विकास ओझा, कैंब्रिज के प्रिंसिपल श्री दुबे जी, सिमरी प्रखंड से मोहम्मद इमरान अख्तर, नवानगर से दीपक कुमार यादव, डुमराव से अमित कुमार, बक्सर पब्लिक स्कूल का निर्देशक निर्मल कुमार सिंह, सरोज कुमार सिंह, प्रदीप पाठक, संजीव ओझा समेत विभिन्न विद्यालयों के प्रबंधक एवं प्राचार्य उपस्थित रहे।

 

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