श्रीमद्भागवत कथा श्रवण सर्वोत्तम भक्ति व मुक्ति का साधन है: आचार्य धर्मेन्द्र




न्यूज़ विज़न। बक्सर
शहर के सती घाट स्थित लालबाबा आश्रम परिसर में बुधवार को विश्व प्रसिद्ध महामनीषी संत श्री त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के समर्थ शिष्य श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज के कृपापात्र ब्रह्मपुर पीठाधीश्वर आचार्य धर्मेन्द्र (पूर्व कुलपति) कथा के सप्तम दिवस कथा के दौरान कहा कि श्रीमद्भागवत की कथा साधन से नहीं, साधना से भी नहीं, वरन गुरू गोविंद की कृपा से प्राप्त होती है।






रुक्मिणी श्रीकृष्ण मंगलविवाह की सारगर्भित व्याख्या करते हुए कहा कि भगवान श्रीकृष्ण का १६१०८विवाह की कहानी उनकी अहेतुकी कृपा, करूणा की कथा है, समर्पित जीवन को अपनाने की अभिव्यक्ति है। रुक्मिणी मंगल में मांगलिक पारंपरिक गीतों के समवेत गायन व वैदिक मंत्रोच्चारण से वातावरण भक्तिमय हो गया। आचार्य जी ने दहेज मुक्त व प्रदर्शन रहित, सादगी सहित विवाह का संदेश दिया। उन्होंने यह भी कहा कि बेटियां विपत्ति नहीं, संपत्ति है। बेटियां सौभाग्य से होती हैं। बेटियां श्रृष्टि की आधार व श्रृगांर है। बेटियों का सम्मान हो, बेटियां नहीं होंगी तो, मां कहां से आयेगी, बहन कहां से आयेगी, मौसी, बुआ और भाभी कहां से आयेगी?, रक्षाबंधन के दिन भाई के कलाई पर रक्षाबंधन कौन करेगी। कन्या भ्रूणहत्या बंद होना चाहिए। आचार्य जी ने कहा यदि दहेज दानव का बध नहीं हुआ, दहेज उन्मूलन नहीं हुआ, कन्या भ्रूणहत्या को नहीं रोका गया तो कुछ वर्षों बाद किसी के बेटा के हाड़ में हल्दी लगेगा न माथे मौर चढ़ेगा न सेहरा बंधेगा।

कथा के दौरान आचार्य श्री ने दातात्रेय के चौबीस गुरुओं की चर्चा करते हुए कहा कि जहां, जिससे भी शिक्षा मिले ग्रहण करते रहना चाहिए। श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता को संसार का आदर्श बताते हुए कहा सुदामा जी ने श्रीकृष्ण से कुछ नहीं मांगा, पर द्वारिकाधीश ने सर्वस्व दे डाला। प्रभास क्षेत्र की कथा कहते हुए कहा भगवान किसी का बकाया नहीं रखते, समयानुसार चुका देते हैं, बाली का त्रेता का ॠण वाण प्रहार सहते हुए चुका दिया। विस्तार से पाप पून्य की चर्चा करते हुए कलयुग के धर्म, विविध आश्रम की चर्चा करते हुए कहा कि कलयुग में भगवान संबलपुर मेरठ के पास में प्रकट होंगे। श्रीमद्भागवत कथा का सार बताते हुए कहा कि व्यक्ति को सदा प्रसन्न व प्रपन्न रहना चाहिए। हर स्थिति मे समत्व भाव रखते हुए प्रसन्न और नारायण के प्रति प्रपन्न रहना श्रीमद्भागवत सीखाता है। आचार्य जी ने कहा कि मानव जीवन का लक्ष्य मोक्ष है, मोक्ष की प्राप्ति हेतु काम, क्रोध, लोभ, मत्सर से मुक्त होना ही होगा। ज्ञान वैराग्य व भक्ति से युक्त होकर आत्मा को प्रकृति से परे समझते हुए प्रभु का चिंतन करते हुए संसार व प्रकृति से उदासीन रहते हुए भगवान में मन, वुद्धि, चित्त व इंद्रियों को प्रवृत करते हुए यज्ञादि, वेदविहित कर्मों को करते हुए प्रभु के चरणों में प्रीति रखते हुए प्रभु की प्रसन्नता के लिए प्रभु की कृपा पराक्रम की चर्चा करते हुए उनकी दिव्य झांकी का दर्शन करते हुए नारायण के प्रति समर्पित भाव से कार्य करते रहने का संदेश श्रीमद्भागवत की कथा देती है।
बुधवार को कथा पूर्णाहुति पर देर रात तक भंडारा व प्रसाद देर रात तक भक्त पाते रहे। महंथ सुरेन्द्र बाबा स्वयं भक्तों की सेवा का कमान संभाले रहे। कल गुरू पुर्णिमा पर गुरूचरण पादुका पूजन होगा। वृहद भंडारे की व्यवस्था मे महंथ जी व उनके भक्त लग गये है। महंथ जी ने मंच से लालबाबा की पुण्य तिथि पर श्रीराम कथा हेतु ज.गु.रा.आचार्य धर्मेन्द्र ब्रह्मपुरपीठाधीश्वर से आग्रह किया जिसे भक्तों ने करतल ध्वनी से समर्थन किया।

