RELIGION

ईश्वर का स्मरण जीवन के किसी भी क्षण में किया जाए, वह सदैव उद्धारकारी होता है : रणधीर ओझा 

न्यूज़ विज़न।  बक्सर 

जिले के राजपुर प्रखंड अंतर्गत बारूपुर पंचायत के भरखरा ग्राम में आयोजित सप्त दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन आचार्य रणधीर ओझा द्वारा कथा में पुराणों के विभिन्न प्रेरणादायक प्रसंगों का वर्णन किया गया। जिनमें जड़भरत, अजातशत्रु अजामिल, भक्त प्रहलाद, समुद्र मंथन, गजराज की मुक्ति और भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की गाथाएं शामिल थीं। श्रद्धालुओं का एक बड़ा समूह इन कथा प्रसंगों का श्रवण करने के लिए उपस्थित रहा, जिससे माहौल भक्तिमय हो गया।

जड़भरत की कथा सुनाते हुए आचार्य रणधीर ओझा जी ने कहा कि अहंकार मुक्त जीवन जीने की प्रेरणा दी। जड़भरत एक राजा थे, जो भक्ति में इतने लीन थे कि संसार की माया और मोह से अलग होकर साधारण भेष में साधना करते थे। उन्होंने सिखाया कि ज्ञान और भक्ति का मार्ग स्वयं में तपस्या और संयम से सुसज्जित होता है।  इसके बाद, अजामिल के जीवन प्रसंग का वर्णन हुआ, जिसमें आचार्य रणधीर ओझा जी ने बताया कि कैसे अपनी अंतिम क्षणों में अजामिल ने अनजाने में ही भगवान का स्मरण कर मुक्ति प्राप्त की। यह कथा यह संदेश देती है कि ईश्वर का स्मरण जीवन के किसी भी क्षण में किया जाए, वह सदैव उद्धारकारी होता है।

भक्त प्रहलाद की कथा: भक्त प्रह्लाद की कथा ने सभी को धर्म के प्रति निष्ठा और विश्वास का पाठ पढ़ाया। आचार्य जी ने बताया कि प्रह्लाद के जीवन में कितनी कठिनाइयां आईं, परंतु उनके विश्वास और भक्ति की शक्ति ने असुर राज हिरण्यकशिपु को पराजित कर दिया। यह कथा दर्शाती है कि ईश्वर सदैव अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। समुद्र  मंथन के प्रसंग में आचार्य रणधीर ओझा जी ने  बताया कि देवताओं और असुरों के द्वारा अमृत की प्राप्ति के लिए किए गए मंथन का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि यह मंथन केवल अमृत की प्राप्ति नहीं, बल्कि जीवन के संघर्ष और साधना का प्रतीक है, जिसमें कठिन प्रयास से सच्चे सुख की प्राप्ति होती है।

गजराज और ग्राह का प्रसंग सुनाते हुए आचार्य जी ने कहा कि जब गजराज ने भगवान का स्मरण किया, तो भगवान विष्णु ने उनकी रक्षा के लिए स्वयं अवतार लिया। यह कथा सिखाती है कि ईश्वर का स्मरण जीवन के किसी भी क्षण में सहायक होता है और भक्त की रक्षा के लिए वे सदा तत्पर रहते हैं।

कथा के अंत में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का प्रसंग प्रस्तुत किया गया। आचार्य रणधीर ओझा जी ने इस पावन क्षण का संगीतमय वर्णन किया और श्रद्धालुओं को बताया कि कैसे भगवान श्रीकृष्ण ने अधर्म के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए पृथ्वी पर अवतार लिया। जन्म के इस प्रसंग को सुनकर सभी श्रद्धालु भावविभोर हो गए और उत्साह के साथ भगवान श्रीकृष्ण का जयकारा लगाया। इस विशेष कथा सत्र में सभी प्रसंगों ने श्रद्धालुओं को गहरे आध्यात्मिक अनुभव से जोड़ा। कथा का समापन भजन और आरती के साथ हुआ, जिसके बाद सभी भक्तों ने सामूहिक रूप से प्रसाद ग्रहण किया।

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