सदर अस्पताल में लापरवाही से बच्ची की मौत मामले में अस्पताल उपाधीक्षक समेत चार पर एफआईआर
सदर अस्पताल में डॉक्टरों की जगह आयुष चिकित्सक, आयुर्वेदिक डॉक्टर, एएनएम और जीएनएम से इलाज कराया जाता है इलाज : पंकज




न्यूज़ विज़न। बक्सर
बक्सर सदर अस्पताल एक बार फिर अपनी लापरवाही और गैर-जिम्मेदाराना रवैये के कारण सुर्खियों में है। इस बार मामला एक मासूम बच्ची की दर्दनाक मौत से जुड़ा है, जिसने जिले ही नहीं बल्कि पूरे राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था की कलई खोल दी है।






इस सम्बन्ध में प्रेसवार्ता आयोजित कर युवा कांग्रेस के प्रदेश नेता पंकज उपाध्याय ने कहा कि सदर प्रखंड के बरुना के बिट्ठलपुर गांव निवासी वीरेंद्र यादव और माया देवी की 7 वर्षीय नातिन साजल कुमारी अपने गांव के अन्य दो बच्चों के साथ खेल रही थी, तभी उन्हें एक कुत्ते ने काट लिया। अन्य दोनों बच्चों के अभिभावक तत्काल सतर्कता दिखाते हुए उन्हें निजी अस्पताल ले गए, जहां समय पर एंटी रेबीज इंजेक्शन दिया गया और वे सुरक्षित घर लौट आए। लेकिन माया देवी अपनी नतिनी साजल कुमारी को लेकर भरोसे के साथ सदर अस्पताल पहुंचीं। वहां प्राथमिक उपचार के नाम पर एंटी रेबीज इंजेक्शन लगाया गया, जिसके तुरंत बाद बच्ची की हालत बिगड़ने लगी और कुछ ही पलों में उसकी मौत हो गई। घटना के बाद अस्पताल परिसर में अफरा-तफरी मच गई। चिकित्सक और स्वास्थ्यकर्मी बच्ची का पर्चा लेकर अस्पताल से गायब हो गए, जिससे परिजनों की पीड़ा और गुस्सा और बढ़ गया।


श्री उपाध्याय ने कहा कि सदर अस्पताल में डॉक्टरों की जगह आयुष चिकित्सक, आयुर्वेदिक डॉक्टर, एएनएम और जीएनएम से इलाज कराया जा रहा है, जिससे आए दिन मरीजों की मौत हो रही है। यह बात आम लोगों के संज्ञान में नहीं आ पाती, लेकिन जब किसी परिवार पर दुखों का पहाड़ टूटता है, तब लापरवाही सामने आती है। घटना की जानकारी मिलते ही हमलोगों ने अस्पताल में धरना प्रदर्शन और सड़क जाम कर दिया। लोग सिविल सर्जन को मौके पर बुलाने की मांग कर रहे थे, लेकिन वे नहीं पहुंचे। बाद में एसडीएम अविनाश कुमार मौके पर पहुंचे और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन दिया, जिसके बाद लोगों ने धरना खत्म किया। नगर थाना द्वारा मामले को गंभीरता से लेते हुए अस्पताल उपाधीक्षक डॉ नमिता सिंह, डॉ सुमित मिश्रा, आशीष मीना और अनिल कुमार के खिलाफ गैर इरादतन हत्या (IPC धारा 304A) के तहत एफआईआर दर्ज कर ली गई है।
सवालों के घेरे में स्वास्थ्य विभाग
यह घटना बिहार की जर्जर स्वास्थ्य व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा करती है। क्या सरकारी अस्पतालों में आम जनता को केवल प्रयोगशाला की तरह देखा जा रहा है? क्या डॉक्टरों की जगह अयोग्य कर्मियों से इलाज करवाना एक सुनियोजित लापरवाही नहीं है? परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है और गांव में शोक की लहर है। ग्रामीणों ने सरकार से मांग की है कि दोषियों पर सख्त से सख्त कार्रवाई हो, ताकि भविष्य में किसी और मासूम की जान लापरवाही की भेंट न चढ़े।
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