महर्षि विश्वामित्र व्याख्यान माला का चतुर्थ संस्करण संपन्न, ‘अस्मितामूलक विमर्श में साहित्य की भूमिका’ पर हुआ गहन चिंतन


न्यूज़ विज़न। बक्सर
महर्षि विश्वामित्र महाविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग द्वारा गुरुवार को महाविद्यालय परिसर स्थित मानस सभागार में ‘महर्षि विश्वामित्र व्याख्यान माला’ के चतुर्थ संस्करण ‘ज्ञान सत्र–04’ का भव्य एवं गरिमामय आयोजन किया गया। यह ज्ञान सत्र ‘अस्मितामूलक विमर्श में साहित्य की भूमिका’ जैसे अत्यंत सारगर्भित, विचारोत्तेजक एवं समसामयिक विषय पर केंद्रित रहा, जिसमें देश के ख्यातिलब्ध शिक्षाविदों ने अपने गहन विचार प्रस्तुत किए।
कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो० (डॉ०) कृष्णा कान्त सिंह ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में व्याख्यान माला को ‘विचार का महाकुंभ’ बताते हुए कहा कि यह आयोजन केवल एक अकादमिक औपचारिकता नहीं, बल्कि सामाजिक और साहित्यिक चेतना को जाग्रत करने वाला सशक्त मंच है। उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण के इस दौर में जब अस्मिता से जुड़े प्रश्न तीव्रता से उभर रहे हैं, तब साहित्य ही वह सशक्त माध्यम है, जो समाज को उसके मूल्यबोध, इतिहास और सामूहिक पहचान से जोड़ता है। साहित्य सामाजिक अन्याय, हाशियाकरण और असमानताओं के विरुद्ध रचनात्मक प्रतिरोध की भाषा सिखाता है।
प्राचार्य महोदय ने यह भी कहा कि महाविद्यालय का उद्देश्य इस प्रकार के बौद्धिक आयोजनों के माध्यम से छात्रों को संकीर्ण दृष्टिकोण से ऊपर उठाकर तार्किक, मानवीय और संवेदनशील चिंतन की ओर अग्रसर करना है, जिससे वे समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व को समझ सकें। इस बौद्धिक अनुष्ठान में विशेषज्ञ वक्ताओं के रूप में डॉ. मृत्युंजय सिंह (अध्यक्ष, स्नातकोत्तर हिंदी विभाग, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा), डॉ. रणविजय कुमार (पूर्व अध्यक्ष, स्नातकोत्तर हिंदी विभाग एवं पूर्व कुलसचिव, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा) तथा नर्मदेश्वर (प्रतिष्ठित विद्वान, सासाराम) उपस्थित रहे। वक्ताओं ने अस्मिता विमर्श के विभिन्न आयामों—दलित, स्त्री, आदिवासी, क्षेत्रीय एवं भाषाई अस्मिता—पर प्रकाश डालते हुए साहित्य की भूमिका को ऐतिहासिक और समकालीन संदर्भों में विश्लेषित किया।

डॉ. मृत्युंजय सिंह ने कहा कि साहित्य केवल समाज का प्रतिबिंब नहीं होता, बल्कि वह समाज को दिशा देने वाला सृजनात्मक उपकरण भी है। वहीं डॉ. रणविजय कुमार ने अस्मितामूलक साहित्य को लोकतांत्रिक चेतना का आधार बताते हुए इसे सामाजिक न्याय की स्थापना का माध्यम बताया। नर्मदेश्वर ने अपने वक्तव्य में कहा कि साहित्य अस्मिता की रक्षा ही नहीं, बल्कि संवाद और सह-अस्तित्व की संस्कृति को भी मजबूत करता है। कार्यक्रम के संयोजक एवं विभागाध्यक्ष डॉ. पंकज कुमार चौधरी ने अपने वक्तव्य में कहा कि यह व्याख्यान माला साहित्य और अस्मिता के अंतर्संबंधों पर गहन विमर्श का मार्ग प्रशस्त करेगी तथा छात्रों को वैचारिक स्पष्टता और सामाजिक सरोकारों से जुड़ने की सार्थक दिशा प्रदान करेगी।

कार्यक्रम का संचालन प्रो छाया चौबे ने किया जबकि कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शिक्षक, शोधार्थी एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। अंत में धन्यवाद ज्ञापन के साथ ज्ञान सत्र का समापन हुआ।
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