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महर्षि विश्वामित्र महाविद्यालय में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में आधुनिक शिक्षा बनाम गुरुकुल आदर्श पर चर्चा 

न्यूज़ विज़न।  बक्सर 
महर्षि विश्वामित्र महाविद्यालय, बक्सर में महर्षि विश्वामित्र व्याख्यानमाला ज्ञान सत्र-01 के अंतर्गत एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का सफल आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी का विषय था “बदलते वैश्विक एवं सामाजिक परिदृश्य में प्राचीन भारतीय गुरुकुल परंपरा का महत्व एवं प्रासंगिकता”। इस अवसर पर देश-विदेश के प्रख्यात शिक्षाविदों, प्राध्यापकों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती एवं महर्षि विश्वामित्र की प्रतिमा पर दीप प्रज्वलन एवं पुष्प अर्पण के साथ हुआ। मंगलाचरण और शंखनाद ने पूरे वातावरण को सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आभा से आलोकित कर दिया।

 

महर्षि विश्वामित्र व्याख्यानमाला ज्ञान सत्र-01 में मुख्य अतिथि प्रो. शैलेंद्र कुमार चतुर्वेदी कुलपति, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा ने अपने संबोधन में गुरुकुल परंपरा को भारतीय शिक्षा का आधार बताते हुए कहा कि यह परंपरा केवल ज्ञानार्जन तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह जीवन मूल्यों, संस्कार, अनुशासन और आत्मनिर्भरता की शिक्षा भी प्रदान करती थी। उन्होंने कहा कि आधुनिक समय में शिक्षा व्यवस्था को मूल्यपरक बनाने के लिए हमें इस परंपरा से प्रेरणा लेनी चाहिए। विशिष्ट अतिथि प्रो. संजीव कुमार गुप्ता कुलपति, जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय, बलिया ने कहा कि गुरुकुल परंपरा भारतीय समाज को आत्मनिर्भरता और सामूहिकता की दिशा प्रदान करती रही है। आज के वैश्विक परिदृश्य में जब शिक्षा व्यावसायिकता की ओर बढ़ रही है, तब गुरुकुल आदर्शों को पुनर्जीवित करना आवश्यक है।

 

मुख्य वक्ता प्रो. हरिकेश सिंह पूर्व कुलपति, जे .पी.विश्वविद्यालय, छपरा ने गुरुकुल व्यवस्था की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह केवल शिक्षा की प्रणाली नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवन जीने की कला थी। उन्होंने आधुनिक समाज में नैतिक मूल्यों की कमी पर चिंता व्यक्त की और गुरुकुल परंपरा को उसका समाधान बताया। संगोष्ठी की अध्यक्षता प्रो. डॉ. कृष्णा कान्त सिंह, प्रधानाचार्य, महर्षि विश्वामित्र महाविद्यालय, बक्सर ने की। उन्होंने कहा कि यह महाविद्यालय न केवल शिक्षा प्रदान करने का कार्य करता है, बल्कि विद्यार्थियों को भारतीय संस्कृति और परंपराओं से भी जोड़ने का निरंतर प्रयास कर रहा है। मंचासीन डॉ. महेंद्र प्रताप सिंह (विभागाध्यक्ष, स्नातकोत्तर इतिहास विभाग) भी उपस्थित रहे और उन्होंने इस संगोष्ठी की शैक्षणिक उपयोगिता पर विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी में विभिन्न शोधपत्र प्रस्तुत किए गए, जिनमें वैश्वीकरण, तकनीकी शिक्षा, सामाजिक परिवर्तन और नैतिक मूल्यों की चुनौतियों के बीच गुरुकुल परंपरा की प्रासंगिकता पर गहन चर्चा हुई। प्रतिभागियों ने गुरुकुल शिक्षा को आत्मनिर्भर, संस्कारित और उद्देश्यपूर्ण जीवन के निर्माण में सहायक बताया।

इस संगोष्ठी के सफल आयोजन में डॉ. प्रियरंजन, डॉ. भरत कुमार, चिन्मय प्रकाश झा, शैलेंद्र नाथ पाठक और शिवम भारद्वाज की सक्रिय भूमिका रही। मंच संचालन  का दायित्व डॉ. वीरेन्द्र कुमार ने कुशलतापूर्वक निभाया। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन डॉ. नवीन शंकर पाठक ने प्रस्तुत किया। इस अवसर पर महाविद्यालय के कई शिक्षक उपस्थित रहे, जिनमें प्रमुख रूप से डॉ. रवि प्रभात, डॉ. पंकज कुमार चौधरी, डॉ. योगर्षी राजपूत, डॉ .सैकत देबनाथ सहित महाविद्यालय के सभी शिक्षक एवं शिक्षकेतर कर्मचारी शामिल रहे। यह राष्ट्रीय संगोष्ठी न केवल शैक्षणिक दृष्टिकोण से सफल रही, बल्कि इसने यह स्पष्ट संदेश दिया कि प्राचीन भारतीय गुरुकुल परंपरा आज भी आधुनिक समाज के लिए उतनी ही प्रासंगिक है और शिक्षा को मूल्यपरक एवं जीवनोपयोगी बनाने की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान कर सकती है।

 

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