OTHERS

महर्षि विश्वामित्र महाविद्यालय में ‘योग दर्शन’ विषय पर राष्ट्रीय सेमिनार का सफल आयोजन

न्यूज़ विज़न।  बक्सर 
गुरुवार को महर्षि विश्वामित्र महाविद्यालय के मानस सभागार में दर्शनशास्त्र विभाग द्वारा महर्षि विश्वामित्र व्याख्यान माला (ज्ञान सत्र–3) के अंतर्गत एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन बड़े ही गरिमामय ढंग से किया गया। यह कार्यक्रम अपने निर्धारित समय पर आरंभ हुआ और धन्यवाद ज्ञापन के साथ सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।

 

सेमिनार का शुभारंभ माँ सरस्वती एवं महर्षि विश्वामित्र के तैल-चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन के साथ किया गया। इस अवसर पर कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. (डा.) कृष्णकांत सिंह , संयोजक डॉ. रास बिहारी शर्मा , आयोजक सचिव डा. अवनीश कुमार पांडे तथा सह – संयोजक डॉ. सोनी कुमारी सहित सभी अतिथियों का पुष्पमाला एवं मोमेंटो देकर हार्दिक स्वागत किया गया। कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत सिंह ने विषय प्रवेश कराते हुए योग दर्शन की महत्ता पर प्रकाश डाला। इसके बाद मुख्य वक्ता डॉ. रमेश चंद्र नेगी ( केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान , सारनाथ , वाराणसी) ने “बौद्ध धर्म में योग” विषय पर विस्तारपूर्वक व्याख्यान दिया। उन्होंने विपश्यना योग की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए बताया कि योग केवल साधना नहीं, बल्कि जीवन का अनुशासन है, जो मानसिक एवं सामाजिक संतुलन बनाए रखने में सहायक है। उन्होंने एकल परिवार की बढ़ती प्रवृत्ति और बुजुर्गों की उपेक्षा जैसे सामाजिक मुद्दों पर भी गहराई से विचार रखा और बताया कि योग के माध्यम से व्यक्ति न केवल शरीर और मन को, बल्कि समाज को भी स्वस्थ बना सकता है।

 

इसके पश्चात प्रो. महेश सिंह (वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा) ने पतंजलि योग दर्शन के अष्टांग योग तथा भगवत गीता में योग पर आधारित अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि योग केवल आसन या प्राणायाम तक सीमित नहीं है, बल्कि यह यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि — इन आठ अंगों की पूर्ण प्रक्रिया है। उन्होंने कहा कि जब व्यक्ति इन आठों अंगों को क्रमशः अपनाता है, तभी वह सच्चे अर्थों में योग की सिद्धि प्राप्त कर पाता है। इसके बाद प्रो. (डा.) हरिप्रसाद अधिकारी (संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी) ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि योग का महत्व तब तक व्यावहारिक नहीं हो सकता जब तक उसे जीवन में अपनाया न जाए। उन्होंने अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों में योग के वैश्विक प्रभाव का उल्लेख किया तथा बताया कि आज की अधिकांश मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक समस्याओं की जड़ तनाव है और योग ही इसका स्थायी समाधान है। हम कैसे दूसरे देश की संस्कृति को अपनाने के पीछे भाग रहे हैं , जबकि पश्चिम के देश हमारे यहाँ आकर इसके महत्वपूर्ण सिद्धांतों को अपने यहां अपना कर स्वीकार कर रहें हैं । उनके सारगर्भित वक्तव्य पर सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. (डा.) कृष्णकांत सिंह ने सभी वक्ताओं के विचारों का सार प्रस्तुत करते हुए कहा कि योग ही वह साधन है जो मनुष्य को पशु से पृथक करता है। यदि हम निरंतर अभ्यास और संवाद के माध्यम से इस ज्ञान को जीवन में उतारते रहें, तो जीवन में शांति, संतुलन और आनंद बना रहेगा। कार्यक्रम का संचालन डा. अवनीश कुमार पांडे (कार्यक्रम सचिव) ने किया। उन्होंने योग के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालते हुए चार्वाक, जैन और बौद्ध दर्शन में योग की अवधारणाओं का भी उल्लेख किया। समापन सत्र में डॉ. रास बिहारी शर्मा (आयोजक) ने सभी विशिष्ट अतिथियों, शिक्षकों, कर्मचारियों, छात्र-छात्राओं, मीडिया प्रतिनिधियों एवं सहयोगियों का हृदय से आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि योग आत्मा और परमात्मा के मिलन की प्रक्रिया है, जो जीवन के सर्वोच्च उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करती है। योग केवल दर्शन नहीं, बल्कि व्यवहारिक विज्ञान है, जो मानव जीवन को बेहतर बनाता है।

राष्ट्रगान एवं समापन

कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ। तत्पश्चात सभी अतिथियों को स्नेहभोज के उपरांत आदरपूर्वक विदाई दी गई। इस प्रकार दर्शनशास्त्र विभाग द्वारा आयोजित यह राष्ट्रीय संगोष्ठी न केवल ज्ञानवर्धक रही, बल्कि योग दर्शन के वैज्ञानिक, सामाजिक और आध्यात्मिक पहलुओं को समझने का एक सशक्त मंच भी सिद्ध हुई। इस कार्यक्रम में सभी शिक्षक गण एवं शिक्षेत्तर कर्मचारी और दर्शनशास्त्र के छात्र छात्राओं की उपस्थिति रही ।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button