RELIGION

लक्ष्मण को शक्तिवाण  लगने के बाद व्याकुल श्रीराम ने कहा -हे लक्ष्मण! तुम्हारे बिना मेरा जीवन शून्य हो जाएगा

रासलीला में कंस वध एवं कारागार से देवकी वासुदेव के मुक्त होने की लीला का हुआ मंचन  

न्यूज़ विज़न।  बक्सर 
विजयादशमी महोत्सव के अंतर्गत किला मैदान के रामलीला मंच पर चल रहे 22 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के अठारहवें दिन बुधवार को वृंदावन से पधारे श्री राधा माधव रासलीला एवं रामलीला संस्थान के स्वामी श्री सुरेश उपाध्याय ‘व्यासजी’ के सफल निर्देशन में देर रात “लक्ष्मण शक्ति और कुंभकर्ण वध के प्रसंग का भव्य मंचन किया गया। हजारों की संख्या में उमड़ी भीड़ देर रात तक मैदान में जमी रही और हर दृश्य पर तालियों व जयघोषों से पूरा वातावरण गूंजते रहा।

 

लीला के दौरान दिखाया गया कि युद्ध भूमि की तैयारी होती है, रावण ने अपनी सभा में रणभेरी बजवाई और असुर सेना को आदेश दिया कि वे किसी भी कीमत पर राम और उनकी वानर सेना को नष्ट कर दें। दूसरी ओर श्रीराम ने धर्म की रक्षा का संकल्प लिया और वानरों के साथ मिलकर युद्ध भूमि में प्रवेश किया। नगाड़ों, शंख ध्वनि और रणभेरी की गूंज ने ऐसा आभास कराया मानो वास्तविक युद्ध छिड़ गया हो। इसके उपरांत युद्ध में रावण के पुत्र मेघनाद (इंद्रजीत) ने प्रवेश किया। उसने अपने मायावी अस्त्रों से वानर सेना को छिन्न-भिन्न कर दिया और लक्ष्मण पर शक्ति बाण चला दिया। शक्ति बाण लगते ही लक्ष्मण मूर्छित होकर भूमि पर गिर पड़े। श्रीराम अपने भाई की दशा देखकर विलाप करने लगे और व्याकुल स्वर में बोले – “हे लक्ष्मण! तुम्हारे बिना मेरा जीवन शून्य हो जाएगा।”

 

इस करुण दृश्य को देखकर दर्शकों की आंखें नम हो गईं। पूरा मैदान सन्नाटे में डूब गया। तभी हनुमान जी ने आगे बढ़कर श्री लंका से सुखेन वैद्य को लेकर आते हैं। वैद्य के बताने पर वह हिमालय जाकर संजीवनी बूटी ले आते हैं। संजीवनी बूटी से लक्ष्मण के पुनः स्वस्थ होने पर पूरा मैदान “जय हनुमान” और “जय श्रीराम” के गगनभेदी नारों से गूंज उठा। लक्ष्मण जी के स्वस्थ होने की खबर से रावण घबरा जाता है। वह अपने भाई कुंभकरण को जगाता है और युद्ध भूमि में भेजता है। कुंभकर्ण भव्य और डरावनी वेशभूषा, ऊँचे कद-काठी वाले कलाकार और गगनभेदी आवाज़ ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कुंभकर्ण ने रणभूमि में प्रवेश करते ही वानरों का संहार करना शुरू किया। मंच पर जब वह वानरों को पकड़कर इधर-उधर फेंकता और जोरदार गर्जना करता, तो बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक रोमांचित हो उठे। श्रीराम ने अंततः अपने दिव्य बाणों से कुंभकर्ण का वध किया। जैसे ही बाण लगते ही कुंभकर्ण गिरा, वैसे ही मंच पर आतिशबाजी और प्रकाश की झिलमिलाहट से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया। दर्शक तालियों से गूंज उठे और मैदान में “जय श्रीराम” के नारे लगातार गूंजते रहे।

इन प्रसंगों ने दर्शकों को देर रात तक बांधे रखा। लोगों ने कहा कि इस मंचन ने धर्म की विजय और अधर्म के अंत का गहरा संदेश दिया। आयोजन समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि इस बार विशेष ध्वनि-प्रकाश तकनीक और कलाकारों की निपुणता ने मंचन को और भव्य बना दिया है। समिति के सचिव बैकुण्ठनाथ शर्मा ने कहा कि “लक्ष्मण शक्ति और कुंभकरण वध के प्रसंग हमें त्याग, पराक्रम और धर्मनिष्ठा की शिक्षा देते हैं। इस प्रकार के धार्मिक आयोजन है।

वहीं दूसरी तरफ दिन की कृष्ण लीला में कंस वध प्रसंग का मंचन किया गया। मंचन की शुरुआत अक्रूर द्वारा कृष्ण-बलराम को गोकुल से मथुरा ले जाने के दृश्य से हुई। नगर वासियों से बिछड़ते समय का विरह और कृष्ण के आश्वासन ने वातावरण को भावुक कर दिया। इसके बाद कृष्ण ने कंस के स्थापित विशाल धनुष को भंग कर नगरवासियों को चकित कर दिया। इसके पश्चात कुवलयापीड विशालकाय हाथी को वश में कर श्रीकृष्ण ने यह सिद्ध किया कि दिव्य शक्ति सदैव धर्म की रक्षा के लिए होती है। अगला दृश्य मल्लयुद्ध का रहा जिसमें कृष्ण और बलराम ने चाड़ुर व मुष्टिक पहलवान से युद्ध कर उन्हें परास्त किया। उसके उपरांत सिंहासन पर बैठे कंस को देखकर कृष्ण ने उछलकर उसे पकड़ लिया और भूमि पर पटक कर उसका वध कर दिया। उसी क्षण पूरा मैदान “जय श्रीकृष्ण” और “हरि बोल” के जयघोष से गूंज उठा। कंस के वध के साथ ही कारागार से देवकी-वसुदेव की मुक्ति का दृश्य भी प्रस्तुत हुआ, जिसने दर्शकों को धर्म की विजय का गहरा संदेश दिया। आयोजन समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि यह प्रसंग हर वर्ष भक्तों में विशेष उत्साह जगाता है, क्योंकि यह केवल धार्मिक कथा ही नहीं बल्कि सत्य की विजय और अन्याय के अंत का प्रतीक है।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button