RELIGION

तीनों लोकों को राजा बलि के अत्याचारों से मुक्ति के लिए माता अदिति के गर्भ से “वामन” के रूप में भगवान ने लिया पांचवा अवतार  

रामलीला में सुग्रीव मित्रता एवं माँ सीता की खोज का मंचन

न्यूज़ विज़न।  बक्सर 
श्री रामलीला समिति, बक्सर द्वारा नगर के किला मैदान स्थित रामलीला मंच पर आयोजित 22 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के दौरान पंद्रहवें दिन रविवार को श्रीधाम वृंदावन से पधारी सुप्रसिद्ध रामलीला मण्डल श्री राधा माधव रासलीला एवं रामलीला संस्थान के स्वामी श्री सुरेश उपाध्याय “व्यास जी” के सफल निर्देशन में देर रात्रि  मंचित रामलीला के दौरान “सुग्रीव मित्रता, वाली वध” नामक प्रसंग का मंचन किया गया।

 

लीला के दौरान दिखाया गया कि सीता की खोज करते हुए राम व लक्ष्मण माता शबरी के आश्रम पहुंचते हैं। दोनों भाइयों का उचित सत्कार के पश्चात श्रीराम, लक्ष्मण से बताती है कि, यहीं से कुछ दूरी पर ऋषिमूक नामक पर्वत है, जहां पर महाराज सुग्रीव और उनकी सेना रहती है, जो सीता का पता लगाने के लिए अवश्य ही आपकी मदद करेंगे। किष्किंधा का पता चलने के बाद भगवान श्रीराम एवं लक्ष्मण मार्ग में आगे बढ़ते है। और ऋषिमूक पर्वत पर पहुंचते हैं. इधर सुग्रीव अपने शुभचिंतकों सहित पर्वत के शिखर पर विराजमान होते हैं और दूर से ही तपस्वियों को आते देख श्री हनुमान जी को उनका पता लगाने के लिए भेजते है, हनुमान जी ब्राह्मण के वेश में श्रीराम व लक्ष्मण के समीप पहुंचते हैं और उनका परिचय जानते हैं। जानकारी मिलने पर वह काफी प्रसन्न होते हैं। वहां वह अपने असली रूप में आते हुए श्रीराम लक्ष्मण से क्षमा याचना करते हैं और उन्हें अपने कंधों पर बैठाकर महाराज सुग्रीव के पास ले जाते है, जहां पर भगवान राम और सुग्रीव की मित्रता होती है। दोनों एक-दूसरे को अपने कष्ट बताते हैं। सुग्रीव श्रीराम से बाली के अत्याचार की बात कहते हैं इसके बाद श्री राम मित्रता का संकल्प लेते हैं। और बाली का वध करके सुग्रीव को किष्किंधा का साम्राज्य सौंप देते हैं। इधर राज्य मिलने के बाद सुग्रीव श्रीराम की सुध लेना भूल जाते हैं। तो लक्ष्मण जी किष्किंधा जाकर क्रोध करते हैं। तब जाकर सुग्रीव सीता का पता लगाने बन्दर, भालुओं को भेजते हैं। सीताजी की खोज करते हुए सभी बंदर, भालू समुद्र के करीब पहुँच जाते हैं। रामलीला इस प्रसंग को देखकर दर्शक रोमांचित हो जाते है, और पांडाल जय श्रीराम के उद्घोष से गुंज उठता हैं।

 

वहीं इसके पूर्व दिन में कृष्ण लीला मंचन के दौरान ‘वामनावतार प्रसंग’ का मंचन किया गया। जिसमें दिखाया गया कि भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद के पौत्र दैत्य राजा बलि दानवीर होने के बावजूद, एक अभिमानी राक्षस होता है। वह अपने पराक्रम के बल से इन्द्र देव को पराजित कर स्वर्ग पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लेता है। अत्यन्त पराक्रमी और अजेय बलि अपने बल से स्वर्ग लोक, भू लोक तथा पाताल लोक पर भी  अपना अधिकार स्थापित कर लेता है। आगे दिखाया गया कि जब स्वर्ग से इंद्रदेव का अधिकार छिन जाता है, तो इंद्र देव अन्य देवताओं को साथ लेकर भगवान विष्णु के पास पहुंचते हैं। इंद्र देव वहां भगवान विष्णु को अपनी पीड़ा बताते हुए सहायता के लिए विनती करते हैं। देवताओं की ऐसी हालत देख भगवान विष्णु ने आश्वासन दिया, कि वह तीनों लोकों को राजा बलि के अत्याचारों से मुक्ति दिलवाने के लिए माता अदिति के गर्भ से “वामन” के रूप में जन्म लेंगे। आगे चलकर माता अदिति के गर्भ से भगवान विष्णु ‘वामन’ के रूप में धरती पर पांचवां अवतार लेते हैं।

 

इसके बाद भगवान वामन एक बौने ब्राह्मण के वेष में हाथ में एक लकड़ी का छाता धारण लिए राजा बलि के पास जाते हैं और उनसे अपने रहने के लिए तीन कदम के बराबर भूमि देने का आग्रह करते हैं।  इस समय दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य द्वारा राजा बलि को किसी भी प्रकार का वचन न देने के लिए चेताया जाता है, लेकिन राजा बलि नहीं मानते हैं और ब्राह्मण पुत्र को तीन पग भूमि देने का वचन देते हुए कहते हैं कि उनकी ये मनोकामना वह जरूर पूरी करेंगे। इसके बाद वामन देव ने अपना आकार इतना बढ़ा लिया कि पहले ही कदम में पूरा भूलोक (पृथ्वी) नाप लिया, दूसरे कदम में देवलोक नाप लिया। तीसरे कदम के लिए कोई भूमि नहीं बची, लेकिन राजा बलि अपने वचन के पक्के थे, इसलिए तीसरे कदम के लिए राजा बलि ने अपना सिर झुका कर कहा, कि तीसरा कदम प्रभु यहां रखें। वामन देव राजा बलि की वचनबद्धता से अति प्रसन्न हुए। इसलिए वामन देव ने राजा बलि को पाताल लोक देने का निश्चय किया और अपना तीसरा कदम बलि के सिर पर रखा जिसके फलस्वरूप बलि पाताल लोक में पहुंच गए। राजा बली ने भी वामन भगवान से वरदान मांगा कि जब मेरे नेत्र खुले आप मेरे नेत्रों के समक्ष रहें। जहाँ वामन देव उनको आशीर्वाद प्रदान करते है। उक्त लीला का दर्शन कर श्रद्धालु भाव विभोर हो गए। लीला के दौरान पुरा परिसर दर्शकों से खचाखच भरा रहता है। कार्यक्रम के दौरान समिति के सचिव बैकुंठ नाथ शर्मा, संयुक्त सचिव सह मीडिया प्रभारी हरिशंकर गुप्ता, कोषाध्यक्ष सुरेश संगम, कृष्ण कुमार वर्मा, सहित अन्य मुख्य रुप से उपस्थित थे।

 

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