हे श्याम ! बोलते ही बदल गया भाग्य, भगवान के शरण का चमत्कार – आचार्य रणधीर ओझा
शहर के शिवपुरी मोहल्ले में आचार्य श्री ने कथा में भगवान की शरणागति का महात्म्य समझाया




न्यूज़ विज़न। बक्सर
नगर के शिवपुरी स्थित काली मंदिर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन कथा व्यास मामा जी के कृपा पात्र आचार्य श्री रणधीर ओझा ने भगवान की शरणागति का महात्म्य समझाया। उन्होंने कहा कि मानव सुख-दुख के समाधान के लिए संसार के शरण में जाता है, पर असली समाधान केवल प्रभु की शरण में ही मिलता है। भगवान अपने आश्रितों की हर हाल में रक्षा करते हैं।







आचार्य श्री ने महाभारत की एक प्रेरक घटना का उल्लेख करते हुए बताया कि जब अश्वत्थामा ने उत्तरा के गर्भस्थ शिशु पर ब्रह्मास्त्र छोड़ा, तब उत्तरा अर्जुन और भीम जैसे वीरों को छोड़ प्रभु श्रीकृष्ण की शरण में गईं। उन्होंने प्रार्थना की—“प्रभु! मेरी मृत्यु हो जाए तो चलेगा, पर मेरे गर्भस्थ शिशु की रक्षा कीजिए।” यह सीख उसे द्रौपदी से मिली थी, जिन्होंने विपत्ति में ‘अन्याश्रय’ न करने की सीख दी थी। आचार्य श्री ने आगे कहा, द्रौपदी ने जब तक अपनी साड़ी के रक्षण के लिए प्रयास किया, भगवान नहीं आए। लेकिन जब उसने सच्चे मन से ‘हे श्याम!’ पुकारा और आश्रय छोड़ा, तभी प्रभु साड़ी रूप में अवतरित हुए और उसकी लाज बचाई।

उत्तरा भी उसी शिक्षा पर चलीं। श्रीकृष्ण ने ‘अकारण करुणा’ दिखाते हुए श्वास रूप में उसके गर्भ में प्रवेश कर ब्रह्मास्त्र के प्रभाव को निष्फल कर दिया और गर्भस्थ बालक की रक्षा की। इस कथा के माध्यम से आचार्य श्री रणधीर ओझा ने बताया कि “प्रत्येक प्राणी को भगवान का आश्रय लेना चाहिए, अन्य किसी का नहीं। यही भागवत का संदेश है।”

