लोक रंगमंच के लोक रंगकर्मी भिखारी ठाकुर सदैव स्मरणीय रहेंगे: रामेश्वर प्रसाद वर्मा
भिखारी ठाकुर के सभी नाटकों में जीवन का करूण, विरह, प्रेम और मिलन सम्प्रेषण होता है


न्यूज विजन। बक्सर
भारतीय साहित्य साधकों ने साहित्य की नाट्य विधा को सर्वाधिक महत्व दिया है। लोक नाट्यकार भिखारी ठाकुर अपनी नाट्य कृतियों और मंचन के माध्यम से महाकवि कालिदास और सेक्सपियर की तरह चर्चित और अति लोकप्रिय साबित हुए हैं। उक्त बातें वरीय अधिवक्ता सह साहित्यकार रामेश्वर प्रसाद ने कही। उन्होंने कहा कि भिखारी ठाकुर की नाट्य कृतियों की लोकप्रियता के मूल में आये यत्र तत्र गीत उन्हें अत्यंत आकर्षक बना दिए हैं। उनके लगभग सभी गीत आज भी प्रासंगिक हैं।
लोक नाट्यकार भिखारी ठाकुर के लोकगीत और उनके लोक नृत्य उनके नाटकों को महज इस लिए माधुर्य एवं सौंदर्य प्रदान करते हैं कि वे पाठकों व दर्शकों के मर्म को स्पर्श करते हैं। उनके सभी नाटकों में जीवन का करूण, विरह, प्रेम और मिलन सम्प्रेषण होता है। उनके संवादों से भावनात्मक संबंध स्थापित होता है। उन्होंने कहा कि आज देश विदेश के विभिन्न शोधार्थी भिखारी ठाकुर के नाट्य कृतियों पर शोध कर रहे हैं। उनके नाट्य कृतियां समाज की कुरीतियों पर कड़ा प्रहार करती है। जैसे विधवा के अहंकारपूर्ण जीवन, बेटी बेचना, दुश्चरित्रता, अपराध, नशाखोरी, पुरुष के बहु विवाह आदि के उन्मूलन के लिए भिखारी ठाकुर लोक नाट्य का मंचन करते रहे।
श्री वर्मा ने कहा कि वे मुक्त मंच के पक्षधर थे।
आशु संवाद उनका श्रेष्ठ गुण था। कवि, गीतकार और गायक के अतिरिक्त वे एक सफल पात्र भी थे। एक दुर्लभ विलक्षण प्रतिभा के स्वामी थे। उन्हें भोजपुरी का शेक्सपियर कहकर अलंकृत किया जाता है, जो सर्वमान्य न्यायोचित है। उनका विदेशिया नाटक सर्वाधिक लोकप्रिय और चर्चित है। इसके अलावा पुत्रवध, गबर चोर, पियवा निसहल आदि भिखारी ठाकुर के नाट्य कृतियों में चर्चित और लोकप्रिय है।





