RELIGION

अन्याय एवं अनीति को कुचलकर न्याय तथा नीति की स्थापना ही क्षत्रिय का कर्तव्य है : पौराणिक जी महाराज  

न्यूज़ विज़न।  बक्सर 

शहर के रामेश्वर नाथ मंदिर में सर्वजन कल्याण सेवा समिति सिद्धाश्रम धाम द्वारा आयोजित 17वां धर्म आयोजन के तीसरे दिन कथा  के दौरान आचार्य कृष्णानंद शास्त्री पौराणिक जी महाराज ने कहा की “यद्यपि की इस तथ्य को समझना कठिन है तथापि हम सभी समझने का प्रयास करेंगे, सनातन धर्म का मूल आधार है वर्ण एवं आश्रम चार वर्ण है – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और चार आश्रम है – ब्रह्मचर्य , गृहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास। वर्ण तथा आश्रम के लिए वेद, स्मृति, पुराण, महाभारत तथा धर्मशास्त्र आदि ग्रंथ में बताया गया है कि वर्ण का क्या काम है तथा आश्रम का क्या कर्तव्य है।

 

पौराणिक जी महाराज ने कहा कि धर्म में धर्म शब्द कर्म का पर्यायवाची है। धर्म को ही कर्म तथा कर्म को ही धर्म कहा जाता है। वर्ण का जो कर्म है वही उसका धर्म भी है। भगवान वेद के तत्वों को जानने वाले स्मृतियों एवं धर्म शास्त्रों तथा पुराण आदि ग्रंथ द्वारा स्पष्टता के साथ वर्णोचित तथा आश्रमोचित कर्मों का प्रतिपादन किया गया है। चारों पक्षियों ने कहा है महातपस्वी महामना जैमिनी यदि वर्णाश्रमी  कर्म का अतिक्रमण करके दूसरे वर्ण के कर्मों को करने लगे तो देश भी अधार्मिक तथा विधर्मी की श्रेणी में चल जाएगा। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से यही कहा था। कुरुक्षेत्र के मध्य दोनों सेना को देखकर अर्जुन ने श्री कृष्ण से कहा कि माधव इस संग्राम में महाविनाश होगा मैं इतनी अधिक हत्या नहीं करूंगा यह महापाप होगा मैं भीख मांग कर जीवन निर्वाह कर लूंगा कम से कम इस कुल नाश  के दोष से तो बच जाऊंगा। भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि अर्जुन तुम क्षत्रिय हो भिक्षा मांग कर जीवन जीना क्षत्रिय का काम नहीं है। हे अर्जुन वर्ण के लिए कर्म ही धर्म है तुम्हारा जन्म क्षत्रिय वर्ण में हुआ है अतः तुम्हें अपने वर्ण के अनुसार कर्म का चयन करना चाहिए और तुम्हारा कर्म है धर्म – युद्ध, अन्याय एवं अनीति को कुचलकर न्याय तथा नीति की स्थापना ही क्षत्रिय का कर्तव्य है एवं तुम्हें स्वधर्म का ही अनुष्ठान करना चाहिए।

 

श्री कृष्ण ने 700 मंत्रो वाला एक ग्रंथ का उपदेश दिया जिसका नाम श्रीमद् भागवत गीता है और इस दुनिया के सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ गीता में यही बताया गया है कि मानव के चार वर्ण हैं ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र चारों का कर्म पृथक पृथक है। तुम्हारा धर्म है धर्म युद्ध। धर्म युद्ध में वध किया जाता है और यही वध जो अत्याचार, कदाचार ,भ्रष्टाचार ,व्यभिचार, अनीति ,असभ्यता को कुचलकर सदाचार ,सद्भाव, सद व्यवहार, न्याय नीति तथा सभ्यता का साम्राज्य स्थापित करता है । यह धर्म युद्ध क्षत्रियों के लिए खुला हुआ स्वर्ग का द्वार है जो क्षत्रिय इस धर्म युद्ध को पाप समझकर स्वयं ही द्वार पर आए हुए युद्ध रूप धर्म का परित्याग करता है वह साक्षात नरक का भागी बनता है। मार्कंडेय पुराण ने महाभारत की इस प्रसंग में यही शिक्षा दिया है कि जिस वर्ण का जो कर्म है वही उस वर्ण का धर्म है तथा जो कर्म अन्य वर्णों के लिए बताया गया है उस कर्म को यदि दूसरे वर्ण के लोग करते हैं तो वह पाप कर्म कहा जाता है।

 

आज दुनिया में इस सिद्धांत का पालन नहीं होने के कारण संपूर्ण संसार अधर्ममय वातावरण में जीने लगा है वर्णाश्रम  धर्म का विचार नष्ट होने से मानव समाज दानव समाज बन रहा है। आज आवश्यकता है मार्कंडेय पुराण के आदेशानुसार जीवन जीने की तभी संसार में मानव मूल्यों की रक्षा की जा सकेगी तथा संसार के सभी लोगों के लिए कल्याणकारी मार्ग प्रशस्त और सुदृढ़ हो पाएगा।

 

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