बक्सर वाले मामा जी के परम्परा के प्रथम फूल राम चरित्र दास श्री ठाकुर जी के चरणों में विलीन
बक्सर वाले मामा जी के प्रथम शिष्य श्री राम चरित्र दास का साकेतावास, अल्प आयु से ही बढ़ी भक्ति में रूचि, बचपन में ही याद कर लिए थे पुरे श्रीरामचरितमानस


न्यूज़ विज़न। बक्सर
पूज्य राष्ट्रीय संत भक्त शिरोमणि श्री नारायण दास भक्तमाली जी के प्रथम कृपा पात्र विरक्त संत श्री राम चरित्र दास (महात्मा जी) 86 वर्ष की आयु पूर्ण कर दिन शनिवार को रात्रि 10:00 बजे साकेत की लीला में प्रवेश कर गए। बक्सर के बलुआ गांव में अवतरित पूज्य श्री दूधनाथ सिंह एवं माता सोनिया देवी के गोद में 1939 ई में प्रकट भये। शरीर संबंध से 6 भाइयों में सबसे छोटे थे। भक्त शिरोमणि पूज्य महात्मा जी का नामकरण शास्त्रीय विधि से हृदय नारायण हुआ लेकिन पुत्र के पांव पालने में दिखाई पड़ जाते हैं कहावत के अनुसार बचपन से ही लंगोटी धारण करना गंगा स्नान की वृति दिखाई पड़ने लगे। माता-पिता के आग्रह पर भी गृहस्थ में प्रवेश नहीं किये। पूज्य मामाजी पूज्य फलहारी बाबा, पूज्य रामभद्राचार्य जी से सम्पूर्ण विरक्त की दीक्षा हुई। पूज्य गुरुदेव द्वारा रचित संपूर्ण ग्रंथो के साथ गोस्वामी तुलसीदास जी के संपूर्ण ग्रंथो को कंठस्थ कर इस पूरे क्षेत्र समेत भारत वर्ष में भक्ति की अनोखे छवि डाल दिए। अत्यंत सरल सौम्य विचार के धनी महात्मा जी कभी किसी को डांटे हुए भी नहीं दिखे। आज गंगा घाट रानी घाट पर अपार समूह के साथ दर्शन देते हुए ठाकुर सीताराम जी को लीला में सदा के लिए अपने पूज्य गुरुदेव के समीप पहुंच गए।
विश्व प्रसिद्ध सिय पिय मिलन महोत्सव के प्रथम वर्ष से सम्भालते रहे सारी व्यवस्था
महर्षि श्री श्री खाकी बाबा सरकार के स्मृति में सिय पिय मिलन महोत्सव के प्रथम वर्ष के समय से ही गुरुदेव श्री मामा जी महाराज के साथ छाया के रूप में सेवा करते रहे। श्री सीताराम विवाह महोत्सव के ठहराव व्यवस्था, मंच व्यवस्था ,लीला व्यवस्था की भली-भांति निर्वहन किया।साथ आयोजित रामलीला में ठाकुर जी के लीला में विभिन्न पार्ट अदा भी किये।
शिक्षक की नौकरी त्याग कर ठाकुर जी के सेवा में लगा दी सम्पूर्ण जीवन
पूज्य श्री महात्मा जी पढ़ाई में भी बहुत मेधावी थे। उनके साथी और लोग बताते हैं कि जब उच्च विद्यालय पुलिया में यह पढ़ाई करते तो भजन कीर्तन उन समय में भी इनका चलता रहता उन समय में मैट्रिक प्रथम श्रेणी से पास हुए महर्षि विश्वामित्र कॉलेज के शुरुआती सत्र में श्री खाकी बाबा के कहने से नामांकन भी लिए। कला संकाय हिंदी विभाग में नामांकन हुआ। एम भी कॉलेज के हिंदी विभाग के प्रथम छात्र भी रहे। परंतु पढ़ाई में मन नहीं लगा और यह परमपिता परमेश्वर की पढ़ाई में अस्थाई रूप से जुड़ गए। बाद में पूज्य श्री मध्य विद्यालय पांडेपट्टी में शिक्षक के रूप में कई वर्षों तक सेवा की। उन दिनों को याद करते हुए उनके विद्यार्थी बताते हैं की उनका पढ़ने का ढंग अनोखा था और अनुशासन भी भरपूर था। उस समय में भी बाबा भजन कीर्तन विद्यालय में करते थे। भजन कीर्तन में समय कम मिलने के वजह से शिक्षक की नौकरी भी त्याग दिए। और ठाकुर जी के सेवा में लग गए।

अल्पायु में ही कंठस्थ कर लिए थे श्रीरामचरितमानस
गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वादश के ग्रंथों के सरस प्रवाहक श्री महात्मा जी रहे। जब श्री रामचरितमानस पर कथा कीर्तन करते तो स्वाभाविक उनके नेत्रों से अविरल अश्रु धारा निकल पड़ती। श्रोता भी भाव विहवल हो जाते। तुलसी के सभी ग्रंथ एवं गुरुदेव श्री मामा जी के सभी पद कंठस्थ थे। आपका दर्शन तुलसी की चौपाई को सहज बनाता मम गुण गावत पुलक सरीरा। नित्य प्रति दिन नियमावली के तहत ग्रंथो को पढ़ना उनकी रुचि थी। चलते- फिरते – सोते- जगते नित्य उनके हाथों में ग्रंथ होती है और पाठ करते रहते थे।

श्रीराम मंदिर निर्माण आंदोलन में जा चुके हैं जेल
श्रीराम मंदिर निर्माण आंदोलन में बारह दिन जेल में बंद हो चुके हैं। जेल में ही कैदियों को कथा सुनाकर सनातन धर्म के प्रति जागरूक करते रहे। वर्ष 1990 में पूज्य रामचरित्र दास को बक्सर में धर्माचार्य पद की जिम्मेदारी दी गई थी। पूज्य नेहनिधि श्री नारायण दास जी महाराज भक्तमाली उपादेय श्री मामाजी महाराज के प्रथम शिष्य श्री रामचरित्र दास जी महाराज ‘महात्मा जी’ ने श्रीराम मंदिर निर्माण को लेकर बहुत पुराना नाता रहा है। वर्ष 1990 में जब लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में सारनाथ से शिला पूजन एवं रथ यात्रा की शुरुआत की गई तो हमें धर्माचार्य पद की जिम्मेदारी दी गई थी। तब श्री रामचरित मानस को अपने सिर पर रखकर पूरे जिले में पूरे धूम धाम से राम भक्तों के साथ भ्रमण किया था। इसी दौरान आडवाणी जी को समस्तीपुर में गिरफ्तार किया गया। इसके बाद अयोध्या मंदिर निर्माण के आंदोलन में जाने की तैयारी चल ही रही थी कि तब तक उन्हें भी गिरफ्तार कर जेल में बन्द कर दिया गया। जेल में ही कैदियों के बीच कथा प्रवचन शुरू कर दिया। जेल में बन्द होने के बाद भी आंदोलन चलता रहा, जिससे श्रीराम मंदिर निर्माण को लेकर लोग जागरूक होने लगे।





