चित्रकूट पहुंचे भरत जी ने प्रभु श्रीराम को वापस अयोध्या लौटने की करते है विनती, अंत में चरण पादुका लेकर लौटे अयोध्या
रासलीला में गोवर्धन डाकू व भक्त करमेती बाई" प्रसंग का किया गया मंचन



न्यूज़ विज़न। बक्सर
श्री राम लीला समिति बक्सर के तत्वावधान में नगर के किला मैदान स्थित रामलीला मंच पर चल रहे 22 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के क्रम में वृंदावन से पधारे श्री राधा माधव रासलीला एवं रामलीला मंडल के स्वामी श्री सुरेश उपाध्याय “व्यास जी” के सफल निर्देशन में तेरहवें दिन शुक्रवार को देर रात्रि मंचित रामलीला के दौरान “जयंत पर कृपा व अनुसुइया जी से भेंट” प्रसंग का मंचन किया गया।








लीला के दौरान दिखाया गया कि राजन के देहांत होने की खबर सुनकर गुरु वशिष्ठ जी आते हैं वह एक दूत भरत को बुलाने के लिए उनके ननिहाल भेजते हैं। भरत जी अपने ननिहाल से आते हैं और वह राम, लक्ष्मण को नहीं देखकर उनके बारे में पूछते हैं। सारा वृत्तांत जानकारी होने पर मां कैकई को नाना प्रकार के वचन सुनाते हैं, और अपने पिता दशरथ जी का अंतिम संस्कार करते हैं। संस्कार के पश्चात भरत जी श्री राम को मनाने के लिए चित्रकूट जाने की तैयारी करते हैं। मार्ग में उनसे निषाद राज जी से भेंट होती है। निषादराज जी उन्हें लेकर प्रभु श्री राम जी के पास पहुंचते हैं। जहां भगवान श्री राम एवं भरत जी का सुंदर मिलन होता है। प्रभु श्री राम को भाई भरत जी से जब यह पता चला कि उनके पिता का देहांत हो गया तो दुखित होते हैं, और नदी के किनारे जाकर पिता को श्रद्धांजलि देते है। भरत जी उनसे अयोध्या लौटने की बारंबार विनती करते हैं परंतु श्री राम पिता के वचनों द्वारा वचनबद्ध होने की बात कह कर लौटने से इनकार कर देते हैं, और भरत जी पर कृपा करते हुए अपनी चरण पादुका प्रदान करते हैं। भरत जी चरण पादुका को लेकर अयोध्या लौटते हैं और राज सिंहासन में पादुकाओं को स्थापित कर देते हैं।




आगे दिखाया गया कि “जयंत पर कृपा, अनुसुइया जी से भेंट” प्रसंग का मंचन हुआ। जिसमें दिखाया गया कि प्रभु श्री राम, सीता जी का सुंदर श्रृंगार करते हैं. उसी वक्त जयंत की पत्नी वहां पहुंचती है और भगवान श्री राम का दर्शन कर उनके चरणों की भक्ति मांगती है। भगवान की कृपा से वह स्वर्ग पहुंचती है। वहाँ जयंत ने अपनी पत्नी से पूछा की तुम कहां गई थी, वह सारा वृतांत बताती है। जयंत कौवे का वेश बनाकर भगवान की परीक्षा लेने आता है, और सीता जी के पैर में चोट मारता है। श्री राम जयंत के लिए अग्निबाण छोड़ देते हैं। वह उससे बचने के लिए अपने पिता इंद्र के अलावे भागते हुए भोलेनाथ और ब्रह्मा जी के पास जाता है। परंतु उसकी रक्षा कोई नहीं करता अंत में नारद जी ने बताया कि जिसका तुमने अपराध किया है उसी के शरण में जाओ। जयंत श्री राम की शरण में आता है. जहाँ भगवान उस पर कृपा करते हुए उसकी एक आंख फोड़ देते हैं। जयंत पर कृपा करके भगवान श्री राम आगे बढ़ते हुए अत्रि ऋषि के आश्रम पहुंचते हैं, जहां वह श्री राम का भव्य स्वागत करते हैं और सीता जी को माता अनसूईया जी के पास शिक्षा लेने के लिए भेजते हैं। जहां अनुसूया माता सीता को स्त्री धर्म का उपदेश देती है। इस प्रंसंग को देखकर दर्शक रोमांचित हो जाते है, और पंडाल जय श्रीराम के उद्घोष से गुंज उठता हैं. इस दौरान पूरा रामलीला परिसर श्रद्धालुओं से खचाखच भरा हुआ था। यह दृश्य देखकर दर्शक भाव विभोर हो जाते हैं।
इसके पूर्व दिन में श्री कृष्ण लीला के दौरान “गोवर्धन डाकू व भक्त करमेती बाई” प्रसंग का मंचन किया गया। जिसमें दिखाया गया कि डाकू गोवर्धन एक बहुत बड़ा लुटेरा होता है जो एक दिन अपने आप को बचाने के लिए भाग रहा था इसी दौरान परशुराम जी भगवान श्रीकृष्ण की कथा सुना रहे थे उसी भीड़ में वह छुपने के इरादे से बैठ गया। उस वक्त कथा में भगवान कृष्ण के श्रृंगार का वर्णन चल रहा था, जिसमें कथावाचक ठाकुर जी के सिर पर हीरे और माणिक्य, मोती लगे हुए सोने के मुकुट, कमर पर सोने की काथली, हाथ में सोने की छड़ी, पैरों में सोने के नूपुर का वर्णन कर रहे थे। डाकू गोवर्धन ने सोचा कि जो व्यक्ति ऊपर से नीचे तक सोना पहनता है उसे लूटने से कितना फायदा होगा, और इसी उद्देश्य से वह कृष्ण को लुटने वृंदावन की ओर चल पड़ता है। रास्ते में उसे कृष्ण की अनन्य भक्त करमेती बाई मिलती है जो कृष्ण के दर्शन के लिए वृंदावन जा रही थी।
गोवर्धन डाकू भी उनके साथ होकर चल पड़ता है। रास्ते में दोनों ही ठाकुर जी का नाम रटते जा रहे थे। परन्तु डाकू गोवर्धन लूटने के उद्देश्य से नाम रट रहा था और करमेती बाई भक्ति भावना से भगवान को याद कर रही थी। बहुत समय बाद जब वे दोनों वृंदावन पहुंचे तो कई दिन तक कृष्ण को ढूंढते रहे। अंत में श्रीकृष्ण भगवान दोनों को दर्शन देते हैं। करमेती बाई तो प्रभु के दर्शन मात्र से धन्य हो जाती है। कृष्ण उसे अपनी रास सखियों में शामिल होने का वरदान देते हैं। वहीं जब डाकू गोवर्धन कृष्ण का सोना लूटने के उद्देश्य से कृष्ण को छूता है तो उसका भाव बदल जाता है और वो लूटने का भाव छोड़कर सेवा भाव में परिवर्तित हो जाता है। भगवान कृष्ण उसे ये कहकर वरदान देते हैं कि मेरा नाम चाहे तुमने बुरे भाव से ही लिया हो लेकिन उसमें तुम्हारा पूरा समर्पण था और तुम्हारी हर सांस से मेरा नाम सुनाई दे रहा है, इसके लिए मैं तुम्हे अपना सखा होने का वरदान देता हूं। उक्त लीला का दर्शन कर दर्शक रोमांचित हो जय श्रीकृष्ण का जयकारा लगाते हैं। लीला के दौरान आयोजकों में समिति के सचिव बैकुंठ नाथ शर्मा, कोषाध्यक्ष सुरेश संगम, कृष्ण कुमार वर्मा, सहित अन्य लोग मुख्य रुप से उपस्थित थे।

