ऐसी भाग्यशाली माता को कोई नहीं हुई, जिसके गर्भ में भक्त और भगवान एक साथ विराजे हैं : आचार्य रणधीर ओझा
न्यूज विजन । बक्सर
शहर के रामरेखा घाट स्थित रामेश्वरनाथ मंदिर में विकास सिद्धाश्रम सेवा समिति द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन आचार्य रणधीर ने कहा कि परमात्मा अपने भक्तों के विश्वास को टूटने नहीं देते हैं। जब अर्जुन ने अश्वत्थामा के शिविर से धक्का मारकर निकाल दिया और उसकी मणि को छीन लिया तो अपमान की ज्वाला में जलता हुआ। संकल्प किया कि अर्जुन के वंश में कोई पानी जलांजलि देने वाला नहीं छोडूंगा अश्वत्थामा अपमानित होकर चला गया।
इधर भगवान कृष्ण द्वारिका जाने को तैयार हुए समस्त पांडव परिकर मिलकर प्रभु को विदा देने लगे। सभी द्वारकाधीश की जय जयकार बोलते हुए विदाई दे रहे हैं कृष्ण मंद मंद मुस्कुराते हुए सभी को आशीर्वाद दे रहे हैं। तभी अचानक एक अबला चीखती पुकारती बाल विधवा दौड़ी दौड़ी आई और कृष्ण के चरणों में लिपटकर पुकारने लगी। पाहिमाम पाहिमाम कहते हुए चरणों में उसे देवी को गिरते हुए देखा भगवान कृष्ण देखा कि यह तो पांडवों की कुलवधू है अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा है भगवान ने कहा अरे देवी क्या हुआ? उत्तरा रोते हुए बोली प्रभु आज मुझे आपके अतिरिक्त कोई भी रक्षक त्रिभुवन में दिखाई नहीं पड़ रहा आप मेरी रक्षा करें।
आचार्य श्री ने कहा कि संसार में प्रभु के अतिरिक्त दूसरा कोई भी मेरा रक्षक नहीं ऐसा दिव्यभाव मन में जगे वही सच्चा अनन्याश्रित भक्त है। भगवती द्रौपदी ने भी प्रभु को पुकारा था पर जब तक चारों तरफ से निराशा हाथ लगी। उतरा ने किसी अन्य पर विश्वास नहीं किया, भरोसा नहीं किया, आश्रय नहीं लिया कन्हैया से रक्षा की याचना करते हुए कही प्रभु देखो अश्वत्थामा द्वारा छोड़ा हुआ यह तेजपुंज( ब्रह्मास्त्र) मेरी ओर बढ़ता ही चल आ रहा है निश्चित ही ये मुझे मस्म कर देगा प्रभु से उतरा ने कहा भक्त अपने प्राणों की तनिक भी मोह नहीं है, परंतु भय इस बात की है कि मेरे गर्मगत शिशु पर कोई आंच न जाए परमात्मा अपने आश्रितों के विश्वास की सदैव रक्षा करते हैं परंतु भगवान अभयदान देकर अंगूठे के बराबर नन्हा सा रूप धारण कर देवी उत्तरा के गर्भ में प्रविष्ट होकर गर्भ की रक्षा की और उसे ब्रह्मास्त्र को शांत कर लौटा दिया। और जो उत्तरा के गर्भ में बालक था जो बाद में उसका ही नाम परीक्षित पड़ा अभय मुद्रा में आशीर्वाद दिया। आचार्य श्री ने कहा कि धन्य है उत्तरा का सौभाग्य इस भारत भूमि में माताओ ने अपने गर्भ मैं भक्तों को धारण किया ध्रुव और प्रहलाद के रूप में भगवान को भी अपने उदर में धारण किया। श्री राम कृष्ण के रूप में ऐसी भाग्यशाली माता को कोई नहीं हुई, जिसके गर्भ में भक्त और भगवान एक साथ विराजे हैं।
कथा में मुख्य रूप से सहयोगी रामस्वरूप अग्रवाल , मनोज कुमार साहू, कमलेश तिवारी, सियाराम मिश्र ,छोटू लाल गुप्ता ,बड़े बाबा पुजारी ,संजय सिंह, मनोज तिवारी , विजय मिश्रा प्राचार्य समेत अन्य शामिल रहे।