भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारण करके हिरण्यकश्यप का किया उद्धार
रामलीला के दौरान “सूर्पणखा नासिका भंग व सीताहरण” प्रसंग का किया गया मंचन



न्यूज़ विज़न। बक्सर
श्री रामलीला समिति, बक्सर द्वारा नगर के किला मैदान स्थित रामलीला मंच पर आयोजित 22 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के दौरान चौदहवें दिन शनिवार को श्रीधाम वृंदावन से पधारी सुप्रसिद्ध रामलीला मण्डल श्री राधा माधव रासलीला एवं रामलीला संस्थान के स्वामी श्री सुरेश उपाध्याय “व्यास जी” के सफल निर्देशन में देर रात्रि मंचित रामलीला के दौरान “सूर्पणखा नासिका भंग व सीताहरण” नामक प्रसंग का मंचन किया गया।








रामलीला में दिखाया गया कि श्रीराम लक्ष्मण व सीता जी सती अनुसुइया जी से मिलते हुए आगे बढ़ने पर सरभंग ऋषि मिलते हैं, वहां उनका उद्धार करते हुए आगे प्रस्थान करते हैं। और मार्ग में अगस्त ऋषि से मार्गदर्शन प्राप्त करते हुए पंचवटी में निवास करते हैं। वहां श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण को सुंदर उपदेश देते हैं। उसी समय रावण की बहन सूर्पणखा पंचवटी पर घूमने आती है, और दोनों भाइयों के सौंदर्य को देखकर मोहित हो जाती है। वह अपना सुंदर सा रूप बनाकर दोनों भाइयों के समक्ष जाती है, और विवाह करने का प्रस्ताव देती है। दोनों भाइयों के मना करने के बाद भी वह विवाह करने के लिए हठ करने लग जाती है तब श्री लक्ष्मण जी सूर्पनखा की नाक काट देते हैं। सूर्पणखा का नाक कट जाने के बाद वह खरदूषण व त्रिसरा के पास विलाप करते हुए जाती है। खर दूषण श्रीराम से युद्ध करने आते हैं जहां प्रभु श्रीराम उसका वध कर देते हैं।




वध के बाद सूर्पणखा भयभीत होकर अपने भाई रावण के पास जाकर सारी बात बताती है। रावण मारीच को सोने का हिरण बनकर पंचवटी मे जाता है। सीता जी स्वर्ण हिरण को देख कर मोहित हो जाती है और प्रभु श्रीराम से कहती है कि हे प्रभु आप मुझे यह सोने का हिरण ला दीजिये। हिरण बना मारीच श्रीराम को वन मे दूर भटकाकर ले जाता है। इधर रावण साधु के वेश में सीता से भिक्षा लेने आता है। और छल से सीता का हरण कर लेता है। तब रास्ते में सीता अपने आभूषण डाल देती है। मार्ग में जटायु रावण को रोकता है, लेकिन रावण उसके पंख काट देता है। इधर राम लक्ष्मण सीता को खोजते हुए जाते हैं तो जटायु रास्ते में घायल अवस्था में मिलता है। जटायु राम को बताता है कि रावण सीता का हरण कर ले गया। उक्त प्रसंग को देखकर दर्शक भाव विभोर हो जाते है, और पंडाल जय श्रीराम के उद्घोष से गूंज उठता हैं।
वहीं इसके पूर्व दिन में कृष्णलीला मंचन के दौरान ‘भक्त प्रहलाद प्रसंग’ का मंचन किया गया। जिसमें दिखाया गया कि- हिरण्यकश्यप नामक दैत्य घोर तप करता है, उसके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी प्रकट होकर वरदान मांगने को कहते है। तब हिरण्यकश्यप वरदान मांगते हुए कहता है कि मैं न दिन में मरूं, न रात को, न आकाश में न पाताल में, न कोई हथियार काट सके, न आग जला सके, न ही मैं पानी में डूबकर मरूं, मैं सदैव जीवित रहूं। ब्रह्मा जी ने कहा तथास्तु । आगे दिखाया गया कि- हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद जन्म से ही विष्णु की भक्ति करता है। यह बात उनके पिता राक्षसराज हिरण्यकश्यप को पता लगी तो उसने अपने पुत्र को भगवान विष्णु की भक्ति छोड़ने को कहा गया। क्योंकि हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था। लाख प्रयास करने के बाद भी भक्त प्रहलाद ने भगवान विष्णु की उपासना नहीं छोड़ी और वह रात दिन भक्ति में रमते जाते हैं। जिसके कारण हिरण कश्यप ने प्रहलाद को मारने के अनेकों प्रयास किए परंतु जब सफल ना हुआ तो उसकी बहन होलिका ने अपने भाई से कहा आप क्यों परेशान हो हमें ब्रह्मा का वरदान है, कि आग हमें जला नहीं सकती! इसलिए चिता बनाई जाए मैं उस चिता पर प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर बैठ जाती हूं, जिससे प्रहलाद आग मे जल जाएगा और मैं ब्रह्मा के वरदान से बच जाउंगी। होलिका प्रह्लाद को गोद में जलते हुए आग के चीता पर बैठ गई। परंतु भक्त प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ और होलिका आग में जलकर राख हो गई।
तब भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारण करके हिरण कश्यप का उद्धार किया। उक्त लीला का दर्शन कर श्रद्धालु भाव विभोर हो गए। लीला के दौरान पुरा परिसर दर्शकों से खचाखच भरा रहता है। कार्यक्रम के दौरान समिति के सचिव बैकुंठ नाथ शर्मा, संयुक्त सचिव सह मीडिया प्रभारी हरिशंकर गुप्ता, कोषाध्यक्ष सुरेश संगम सहित अन्य मुख्य रुप से उपस्थित थे।

