बक्सर में धर्म की स्थापना के पश्चात अहिरौली मार्ग में पत्थर बनी अहिल्या का किया श्रीराम ने उद्धार
जनक सत्कार व कालीदह लीला का हुआ मंचन, महर्षि विश्वामित्र सहित श्रीराम व लक्ष्मण पहुंचे जनकपुर धाम


न्यूज़ विज़न। बक्सर
नगर के किला मैदान में रामलीला समिति के तत्वावधान में रामलीला मंच पर चल रहे 22 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव में छठवें दिन शुक्रवार को वृंदावन से पधारी सर्वश्रेष्ठ रामलीला मंडली श्री राधा माधव रासलीला एवं रामलीला संस्थान के स्वामी श्री सुरेश उपाध्याय “व्यास जी” के सफल निर्देशन में देर रात्रि मंचित रामलीला में जनक सत्कार प्रसंग का दिव्य मंचन किया गया. जिसमें दिखाया गया कि भगवान श्री राम द्वारा ताड़का, मारिच, सुबाहु वध के पश्चात धर्म की स्थापना हुई।
दूसरी तरफ दिखाया गया कि परशुराम, राजा जनक और रावण सभी शंकर जी के भक्त होते हैं। यह तीनों एक-एक करके कैलाश पर्वत पर पहुंचे । शंकर जी समाधि में थे इसलिए इनको इंतजार करना पड़ा। समाधि टूटने के बाद उन्होंने पूछा हम लोग आप की आराधना करते हैं आप किसका ध्यान करते हैं ? तो उन्होंने कहा यह मैं आप लोगों को नहीं बता सकता । मेरा यह धनुष ले जाओ जो इसे तोड़ देगा वही मेरा आराध्य है । धनुष देकर उन्होंने यह शर्त रखी इसे जहां रख दिया जाएगा यह वहां से नहीं हटेगा ।
धनुष लेकर वह लोग वहां से चल दिए। जब वह धनुष रावण के हाथ में आया तो वह वहां से लेकर लंका के लिए भागा। रास्ते में उसे लघुशंका लगी उसने उस धनुष को वही रख दिया। वापस उठाने आया तो उस धनुष को नहीं उठा पाया । राजा जनक ने वहीं पर अपना महल बनवा दिया। सीता जी ने एक बार धनुष को उठा दूसरी जगह रख दिया था। इस बात की जानकारी जब राजा जनक को हुई, तब उन्होंने सीता जी के स्वयंवर का आयोजन कर यह शर्त रखी कि जो यह धनुष का खंडन करेगा उसी के साथ सीता का विवाह होगा। इसी दौरान बक्सर में स्थित विश्वामित्र मुनि को स्वयंवर में आने का न्योता मिलता है, स्वयंवर देखने के लिए भगवान श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण व गुरुदेव विश्वामित्र के साथ जनकपुर की ओर चल पड़ते हैं। मार्ग में अहिरौली स्थित एक पत्थर की शिला होती है। श्री राम गुरुदेव से शिला के विषय में पूछते हैं। गुरुदेव ने बताया कि यह शिला गौतम ऋषि की शापित स्त्री है। प्रभु श्रीराम अपने चरण रज से गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का उद्धार करते हैं और आगे बढ़ने पर गंगा पार पहुंच जाते हैं। वहाँ भगवान श्री राम पंडा-पुजारियों से गंगा के आने का कारण पूछते हैं और उन्हें दान देकर आगे के लिए प्रस्थान करते हैं। आगे बढ़ने पर वह जनक जी के बगीचे में पहुंच जाते हैं। वहाँ वन का माली जनक जी को विश्वामित्र सहित राम व लक्ष्मण जी के पहुंचने की सूचना देता है। राजा जनक तीनों को ले जाकर सुंदर सदन में ठहराते हैं और सत्कार करते हैं।

इसके पूर्व दिन में मंचित कृष्ण लीला के दौरान कालीदह लीला का मंचन किया गया। जिसमें दिखाया गया कि श्री कृष्ण अपने सखाओं के साथ कालीदह के समीप गेंद खेलते हैं। खेलते-खेलते जानबूझकर कालीदह में गेंद फेंक देते हैं। जब गेंद लाने के लिए सखा हठ करते हैं तो भगवान कालीदह में कूद जाते हैं। यह सुन पूरे गोकुल में हाहाकार मच जाता है। लेकिन, कुछ ही देर में भगवान कालिया नाग के फनों पर खड़े होकर वंशी बजाते हुए बाहर आ जाते हैं। उनके इस रूप को देख गोकुलवासी खुशी से गद्गद् हो उठे। भगवान के इस दिव्य रुप का दर्शन व आरती कर श्रद्धालुओं ने आशीर्वाद लिया। मंचन के दौरान समिति के सचिव बैकुण्ठ नाथ शर्मा, संयुक्त सचिव सह मीडिया प्रभारी हरिशंकर गुप्ता, कृष्ण कुमार वर्मा, निर्मल कुमार गुप्ता, उदय कुमार सर्राफ (जोखन), राजकुमार गुप्ता, नारायण राय सहित अन्य पदाधिकारी व सदस्य मुख्य रूप से उपस्थित रहे।





