मनु सतरूपा के तपस्या से झुका देवलोक, संतान प्राप्ति का दिया वरदान
रासलीला में में नन्द महोत्सव पूतना वध का हुआ मंचन



न्यूज़ विज़न। बक्सर
श्री रामलीला समिति, बक्सर के तत्वावधान में किला मैदान स्थित रामलीला मंच पर चल रहे विजयादशमी महोत्सव 2025 के तीसरे दिन मंगलवार को वृंदावन से पधारे श्री राधा माधव रासलीला एवं रामलीला संस्थान के स्वामी श्री सुरेश उपाध्याय ‘व्यास जी’ के सफल निर्देशन में देर शाम रामलीला मंचन के दौरान “भानु प्रताप कथा, रावण-कुंभकरण जन्म व उनकी तपस्या” प्रसंग का मंचन हुआ। जिसमें दिखाया गया कि सर्वप्रथम श्री रामलीला के विशाल मंच पर महाराज मनु व महारानी सतरुपा जी का आते हैं। जो अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों से गहन मंत्रणा के बाद राज्य सत्ता अपने पुत्र उतानपाद को सौंपकर तपस्या करने की इच्छा जाहिर करते हैं। जिस पर अंतिम फैसला के उपरांत महाराज मनु पत्नी सतरुपा के साथ वन जाते हैं। जहां एक ऋषि से द्वादश अक्षरी मंत्र की दीक्षा ले तपस्या में लीन हो जाते हैं।








उनकी कठोर तपस्या से चिंतित ब्रह्मा, विष्णु व महेश उनके पास पहुंचते हैं और महाराज मनु से वरदान मांगने की इच्छा जाहिर करते हैं। लेकिन उनकी समाधि भंग नहीं होती है। सो त्रिदेवों को उन्हें मनाने की अपनी विफलता के पश्चात वहां से लौटना पड़ता है, फिर.. भगवान विष्णु माता लक्ष्मी के साथ दोबारा दर्शन देकर तपस्या समाप्त करने की याचना करते हैं। लिहाजा महाराज मनु व सतरुपा का ध्यान भंग होता है तथा भगवान से वे उनके जैसा ही संतान प्राप्त करने का वरदान मांगते हैं। जिनकी कामना पर भगवान विष्णु राम समेत चार अंशों में बतौर उनके पुत्र अवतरित होने का भरोसा देकर अंतर्ध्यान हो जाते हैं। समय अंतराल के पश्चात भगवान विष्णु के वरदान के अनुरूप महाराज मनु, दशरथ व देवी सतरुपा, कौशल्या के रूप में अयोध्या में जन्म लेते हैं तथा बतौर राजा-रानी अयोध्या के राजकाज की जिम्मेदारी संभालते हैं। दूसरी तरफ, कपटी मुनि के षड्यंत्र का शिकार बन परत प्रतापी राजा प्रताप भानु ब्राह्मणों के शाप से शापित होकर रावण के रूप में कुंभकरण व विभीषण के साथ जन्म लेते हैं। कठिन तपस्या के बाद वरदान पाकर रावण व कुंभकरण अधर्म का झंडा बुलंद करने लगते हैं तथा विभीषण भगवान की भक्ति में रम जाते हैं। रावण द्वारा सताए जा रहे संत, गौ व ब्राह्मणों में हाहाकार मच जाता है। लिहाजा अधर्म के बोझ से पृथ्वी थर्राने लगती है।




इधर, दिन के कृष्ण लीला में ‘नंद महोत्सव पूतना वध’ का मंचन किया जाता है। जिसमें बाल कृष्ण भगवान का दर्शन करने हेतु ब्रह्मा, विष्णु व महेश गोकुल पधारते हैं। नंद व यशोदा सभी देवताओं को बधाई देकर खुशी के साथ विदा करते हैं। दूसरी ओर मथुरा नरेश कंस श्रीकृष्ण को मारने के लिए पुतना को नंद गांव भेजता है। मौका पाकर पुतना श्रीकृष्ण के पास जाती है तथा विष लेपित अपना स्तन पान कराती है। इस बीच उसके स्तन का पान करते हुए श्रीकृष्ण उसके प्राण को ही हर लेते हैं..। जिसे देख दर्शक रोमांचित हो जाते है।

