त्रेतायुग से चली आ रही पंचकोशी परिक्रमा 20 नवम्बर से होगा आरम्भ, 24 को लगेगा विश्व प्रसिद्ध लिट्टी चोखा मेला
प्रभु श्रीराम तड़का सुबाहु का वध कर महर्षि विश्वामित्र का यज्ञ सफल कराया तत्पश्चात किया था पंचकोशी परिक्रमा
न्यूज़ विज़न। बक्सर
अध्यात्म और आस्था की नगरी बक्सर जिसका पुराना नाम सिद्धाश्रम है यहां आगामी 24 नवम्बर को विश्व प्रसिद्ध लिट्टी चोखा मेला या पंचकोशी मेला है जो त्रेता युग से ही चली आ रही पंचकोसी परिक्रमा यात्रा की परंपरा है। यह परिक्रमा प्रभु श्रीराम से जुड़ी है। उक्त बातें पंचकोसी परिक्रमा समिति के सचिव डॉ रामनाथ ओझा ने कही। उन्होंने कहा कि सिद्धाश्रम 88 हजार ऋषियों की तपोस्थली रही है जहां प्रभु श्रीराम और अनुज लक्ष्मण महर्षि विश्वामित्र के साथ पंचकोसी यात्रा की थी।
डॉ रामनाथ ओझा ने बताया कि पंचकाेसी परिक्रमा आगामी 20 नवंबर से प्रारंभ होगी। जो त्रेता युग से चली आ रही है। महर्षि विश्वामित्र ताड़का नामक राक्षसी व उसके भतीजे मारीच और सुबाहु से तंग आ चुके थे। वे जब भी यज्ञ करते वह यज्ञ में हाड़ और मांस डालकर ताड़का विघ्न डाल देती थी। ताड़का बक्सर की ही रहने वाली थी। ऐसी मान्यता है कि महर्षि विश्वामित्र यज्ञ को सफल करने के लिए प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण जी को अयोध्या से लेकर बक्सर आए थे। जब महर्षि विश्वामित्र उन्हें लाने के लिए अयोध्या पहुंचे तब प्रभु श्री राम और लक्ष्मण की आयु 8 वर्ष थी। उन्होंने बताया कि श्री राम और लक्ष्मण को लाने के लिए महर्षि विश्वामित्र ने अयोध्या में 14 दिनों तक कथा किये। उन्होंने कथा के समापन पर दक्षिणा में राजा दशरथ से उनके पुत्र राम और लक्ष्मण को मांगे। प्रभु श्री राम ने बक्सर आने के बाद ताड़का और सुबाहु का वध किये। वहीं मारीच को बाण से मारे तो वह समुद्र के किनारे लंका के पास गिरा। तब जाकर महर्षि विश्वामित्र का यज्ञ सफल हुआ।
डॉ ओझा ने बताया कि ताड़का और सुबाहु का वध करने के बाद वे महर्षि विश्वामित्र से यहां तप कर रहे ऋषियाें से मिलकर आशीर्वाद लेने का आग्रह किये। इसी दौरान वे महर्षि विश्वामित्र के साथ अहिरौली स्थित गौतम ऋषि के आश्रम पहुंचे और माता अहिल्या का उद्धार किये। वहां उन्होंने पुआ-पकवान का भोग लगाया। अहिरौली से वे नदांव स्थित नारद ऋषि से आशीवार्द प्राप्त किये। वहां उन्होंने खिचड़ी खाया। इसके बाद भभुआ स्थित भार्गव ऋषि से आशीर्वाद लिए और चूड़ा-दही का भोग लगाया। इसके बाद वे नुआंव स्थित उद्दालक ऋषि के आश्रम पहुंचे और सत्तू और मूली का भोग लगाए। वहीं पंचकोसी के अंतिम पड़ाव बक्सर के चरित्रवन महर्षि विश्वामित्र के आश्रम में लिट्टी-चोखा का भोग लगाया था जिसका निर्वाहन आज भी पुरे देश भर के लोग करते आ रहे है।
ऋषियों के दर्शन करने के बाद छठवें दिन प्रभु श्री राम और लक्ष्मण जी बसांव मठ स्थित विश्राम सरोवर पर विश्राम किये और अगले सुबह जनकपुर के लिए रवाना हुए। तब से पंचकोसी परिक्रमा की परंपरा चली आ रही है। जहां-जहां प्रभु श्री राम व लक्ष्मण गये थे वहां श्रद्धालु पहुंचते हैं और जो प्रभु ने खाया था उसे बनाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। डॉ ओझा ने कहा कि विश्राम सरोवर का अस्तित्व खतरे में है। इतना महत्वपूर्ण सरोवर का जीर्णोद्धार की दरकार है।