कार्तिक पूर्णिमा और देव दिवाली पर श्रद्धालुओं ने लगायी गंगा में डुबकी
भगवान विष्णु ने दस अवतारों में पहला अवतार मत्स्य अवतार कार्तिक पूर्णिमा को ही धारण किया था
न्यूज़ विज़न। बक्सर
शुक्रवार को कार्तिक पूर्णिमा और देव दिवाली पर गंगा स्नान के लिए जिला के अलावा पड़ोसी जिला भोजपुर, रोहतास, भभुआ समेत राज्य के अन्य जिलों के साथ झारखंड और उत्तर प्रदेश से भी श्रद्धालु नगर के रामरेखा घाट समेत अन्य गंगा घाटों पर पहुंचे गंगा स्नान कर पूजा पाठ एवं दान पुण्य किये।
पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक मास का विशेष महत्व बताते हुए पूरे माह सूर्योदय से पूर्व गंगा स्नान का विशेष महत्व माना जाता है। साथ ही कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान, दान, तप और व्रत का भी विशेष महत्व बताया गया है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु का प्रथम अवतार मत्स्य अवतार इसी दिन हुआ था। वेदों की रक्षा, प्रलय के अंत तक सप्तश्रृषियों अनाजों, व राजा सत्यव्रत की रक्षा के लिए भगवान विष्णु को इस रुप मे अवतरित होना पड़ा था।
बताते चले कि बक्सर में उत्तरायणी गंगा होने की वजह से यहाँ पर दूर – दराज से श्रद्धालुओं का आने का सिलसिला लगा रहता है। रामरेखा घाट के पंडित धनजी बाबा ने सभी श्रद्धालुओं का मंगल कामना करते हुए कार्तिक पूर्णिमा के महत्व को बतलाया। साथ ही श्रद्धालुओं ने भी आज के दिन गंगा स्नान, व्रत और इस दिन के महत्व को बताते हुए आस्था की डुबकी लगायी।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था त्रिपुरासुर का वध
कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था, जिससे देवगण बहुत प्रसन्न हुए और भगवान विष्णु ने शिवजी को त्रिपुरारी नाम दिया जो शिव के अनेक नामों में से एक है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन महादेव ने प्रदोष काल में अर्धनारीश्वर के रूप में त्रिपुरासुर का वध किया। उसी दिन देवताओं ने शिवलोक यानि काशी में आकर दीपावली मनाई। तभी से ये परंपरा काशी में चली आ रही हैं। माना जाता है कि कार्तिक मास के इस दिन काशी में दीप दान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है।
भगवान विष्णु का हुआ था मत्स्य अवतार
भगवान विष्णु के दस अवतारों में पहला अवतार मत्स्य अवतार माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन मत्स्य रूप धारण किया था। मान्यता यह भी है कि कार्तिक मास में नारायण मत्स्य रूप में जल में विराजमान रहते हैं और इस दिन मत्स्य अवतार को त्याग कर वापस बैकुंठ धाम चले जाते हैं।
पांडवों ने किया था दीपदान
महाभारत का महायुद्ध समाप्त होने पर पांडव इस बात से बहुत दुखी थे कि युद्ध में उनके सगे-संबंधियों की असमय मृत्यु हुई। अब उनकी आत्मा की शांति कैसे हो। पांडवों की चिंता को देखते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को पितरों की तृप्ति के उपाय बताए। कार्तिक पूर्णिमा को पांडवों ने पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए गढ़ मुक्तेश्वर में तर्पण और दीप दान किया। उसी समय से ही गढ़ मुक्तेश्वर में गंगा स्नान और पूजा की परंपरा चली आ रही है।
देवी तुलसी से जुड़ी कथा
पौराणिक मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि को देवी तुलसी का भगवान के शालिग्राम स्वरूप से विवाह हुआ था और इसी दिन ही देवी तुलसी का पृथ्वी पर भी आगमन हुआ है। इस दिन नारायण को तुलसी अर्पित करने से अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।
ब्रह्मा जी का अवतरण
इसी दिन ब्रह्मा जी का ब्रह्म सरोवर पुष्कर में अवतरण हुआ था। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लाखों की संख्या में तीर्थ यात्री ब्रह्मा की नगरी पुष्कर आते हैं। पवित्र पुष्कर सरोवर में स्नान करने के पश्चात ब्रह्मा जी के मंदिर में पूजा-अर्चना कर दीपदान करते हैं और देवों की कृपा पाते है।
देवताओं ने मनाई थी दीपावली
भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागरण से प्रसन्न होकर समस्त देवी-देवताओं ने पूर्णिमा को लक्ष्मी-नारायण की महाआरती करके दीप प्रज्वलित किए। यह दिन देवताओं की दीपावली है अतः इस दिन दीप दान व व्रत-पूजा आदि करके हम भी देवों की दीपावली में शामिल होते हैं।
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