एस एस कान्वेंट स्कूल के बच्चों ने अपनी सांस्कृतिक विरासत को कला के माध्यम से किया प्रस्तुत
छठ हमारे बिहार का महापर्व है जिसका जुड़ाव सीधा प्रकृति से होता है, इसमें स्वच्छता और सुचिता का विशेष महत्व होता है :त्रिलोचन कुमार
न्यूज़ विज़न। बक्सर
वर्तमान परिवेश में किशोरों और युवाओं में अनर्गल रिल्स के प्रति आकर्षण बढ़ती जा रही है में कृतपुरा स्थित एस एस कान्वेंट स्कूल के बच्चों ने अपनी इस सांस्कृतिक विरासत को अपने कला के माध्यम से मंत्रमुग्ध कर देने वाली प्रस्तुति दी।
लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा बहुत ही धूमधाम से मनाने की तैयारी चल रही है। 4 दिन तक चलने वाले इस महापर्व के कई विशेष नियम हैं और इसके प्रत्येक दिन के प्रसाद का अपना अलग महत्व होता है। नहाय खाय से इस पर्व का अनुष्ठान शुरू होता है। नहाए खाए के दिन गंगा स्नान करने के साथ चावल, दाल और कद्दू की सब्जी बनाई जाती है और मइया का भोग लगाया जाता है। इसी कड़ी में बुधवार को स्कूली बच्चों ने बहुत ही शानदार तरीके से छठ पूजा के मंत्रमुग्ध कर देने वाले गीतों को गाकर छठ के विभिन्न दृश्यों को प्रस्तुत किया। बच्चों का प्रदर्शन बिल्कुल असली लग रहा था।
छठी मइया के प्रसाद में ठेकुआ है खास महत्व होता है दूसरे दिन खरना के रूप में गुड़ और चावल की खीर के साथ रोटी बनाई जाती है। छठी मइया को भोग लगाकर छठ वर्ती प्रसाद ग्रहण करती हैं। खरना के दिन से 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू होता है। ऐसे में जैसे व्रती अपने घरों में स्वच्छ होकर छठी मइया के लिए ठेकुआ प्रसाद बनाते हैं ठीक उसी स्कूली बच्चे भी ठेकुआ, फल और ईंख के साथ छठ घाट पर जाने के रूप में दिखे।
विद्यालय परिसर बिल्कुल छठी मइया के भक्ति भाव से सराबोर हो गया था। ठेकुआ और फल-फूल के साथ दौरा को सजाया गया था। दौरा को सर पर उठाकर जैसे नदी किनारे या तालाब के पास पहुंचते हैं और छठव्रती परिक्रमा करती हैं। भगवान भास्कर को अर्घ्य देती हैं फिर किनारे में हाथ जोड़े दीपक जलाकर छठी मइया की पूजा अर्चना करती हैं ठीक उसी तरह इन बच्चों का प्रदर्शन रहा।
विद्यालय की छात्रा रागिनी कुमारी ने बताया कि आज के समय में किशोर हो या युवा रील बनाने में खूब रुचि ले रहें हैं अपनी संस्कृति और संस्कार से दूर होते जा रहें हैं ऐसे में स्कूलों में ऐसे कार्यक्रम होते रहने चाहिए। इससे बच्चों में सांस्कृतिक विकास होती है।
वहीं विद्यालय के प्राचार्य त्रिलोचन कुमार ने कहा कि छठ चुकी हमारे बिहार का महापर्व है, इस पर्व का जुड़ाव सीधा सीधा प्रकृति से होता है, इसमें स्वच्छता और सुचिता का विशेष महत्व होता है। इसलिए इन सभी की जानकारी आज की युवापीढ़ी को देनी ही चाहिए। यह पर्व पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है। शिक्षिका जिज्ञासा कुमारी और शिक्षक संदीप वर्मा के निर्देशन में प्रीति,अलका, अंकिता, सोनाली, मुस्कान, रागिनी, आनंदी, स्वेतांकी, खुशी, सृष्टि, साक्षी, अंजली, मोनालिका, आरुषि, रिया, प्रिय, अमृता, पलक, प्रतिज्ञा, प्रिंस, सिद्धार्थ, पीयूष, आर्यन, अंकेश, सुमित, प्रियव्रत, संदीप आदि ने अपनी प्रस्तुति दी।
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