बक्सर युद्ध के 260 वर्ष पूरे, इतिहास, स्मृतियां, अनुभव और चुनौतियों पर हुयी चर्चा
22 अक्टूबर 1764 को बक्सर के युद्ध इतिहास के पन्नों में जगह तो बनाया लेकिन इस युद्ध ने देश को ब्रिटिश सरकार का गुलाम बना दिया




न्यूज़ विज़न। बक्सर
मंगलवार को बक्सर इतिहास संस्थान एवं क्रियेटिव हिस्ट्री द्वारा बक्सर युद्ध के 260 वर्ष पूरे होने पर राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन संयोजक सह श्रमजीवी पत्रकार संघ के अध्यक्ष डॉ शंशाक शेखर के अगुवाई में किया गया। इस मौके पर शहर के बुद्धिजीवियों ने अपने विचार रखे। वही इतिहास स्मृतियां अनुभव और चुनौतियों पर चर्चा की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर प्रसाद वर्मा ने की। वही मंच संचालन राज कुमार ठाकुर “राजू” ने किया।






राष्ट्रीय परिसंवाद कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए डॉ शशांक शेखर ने कहा की 22 अक्टूबर को बक्सर के युद्ध इतिहास के पन्नों में जगह तो बनाया लेकिन इस युद्ध ने देश को ब्रिटिश सरकार की गुलामी की जंजीरों में जकड़ने के साथ उसके चपेट में उस समय के स्थानीय किसान भी तबाह और बर्बाद हुए। युद्ध की परिणाम की भयावहता में किसानों की कमर तोड़ दी और उनकी बर्बादी का दास्तां आज भी कथकौली गांव किसान मजदूर परिवारों में देखने को मिलती हैं। वही वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर शर्मा ने बताया की बक्सर को जानने के लिए बक्सर का अपना गैजेटियर्स होना चाहिए तभी बक्सर के तथ्यों का खुलासा होगा।

गणेश प्रसाद उपाध्याय ने कहा कि सामान्य घटना को सामाजिक पटल पर रखना होगा। डॉ महेंद्र प्रसाद ने कहा कि इतिहास को संयोजित करने की जरूरत है ऐसे में कथकौली की लड़ाई के मैदान में बदलाव लाना इतिहास को छेड़ने के बराबर है। वही कवि लक्ष्मी कांत मुकुल ने कहा कि बक्सर की चर्चा धार्मिक गाथाओं में सबसे ज्यादा है। शशिभूषण मिश्रा ने कविता का माध्यम से अपनी बातों को रखा।
निर्मल कुमार ने कहा कि युद्ध के दौरान हमारे पूर्वजों ने क्या गलतियां की उसका क्या परिणाम निकला। उस विषय पर ध्यान रखते हुए आगे किसी तरह की अगर इस तरह की युद्ध होती है तो उसे बचाना होगा। राजा रमण पांडेय ने कहा कि इतिहास को सहेजने की जरूरत है अभी भी प्रशासनिक उदासीनता देखी जा रही है।

