विजयादशमी महोत्सव के पन्द्रहवें दिन “लंका दहन” एवं “राजा भृतहरि चरित्र” प्रसंग का हुआ मंचन
जब रावण ने हनुमान के पूंछ में आग लगाने का आदेश दिया तो हनुमान जी ने छोटा रूप धारण कर विभीषण जी घर छोड़ पूरी लंका को जला दिए




न्यूज़ विज़न। बक्सर
नगर के किला मैदान में श्री रामलीला समिति के तत्वावधान में रामलीला मंच पर चल रहे 21 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के पंद्रहवें दिन बुधवार को श्रीधाम वृंदावन से पधारी सुप्रसिद्ध रामलीला मंडल श्री राधा माधव रासलीला एवं रामलीला संस्थान के स्वामी श्री सुरेश उपाध्याय “व्यास जी” के सफल निर्देशन में देर रात्रि मंचित रामलीला के दौरान “लंका दहन” एवं रासलीला में “राजा भृतहरि चरित्र” प्रसंग का मंचन किया गया।








रात्रि में मंचित लीला में दिखाया गया कि सुग्रीव को राज्य मिलने के बाद वह श्रीराम की सुध लेना भूल जाते हैं। तब लक्ष्मण जी किष्किंधा जाकर उन पर भारी क्रोध करते हैं उसके बाद सुग्रीव जी बंदर, भालूओं को सीता की खोज के लिए सभी दिशाओं में भेजते है। इधर हनुमान, जामवंत, नल, नील, अंगद जी सभी माता सीता को ढूंढने के लिए चल देते हैं। सीता का पता लगाते हुए सभी बंदर और भालू समुद्र के समीप पहुंच जाते हैं। सभी वीर समुद्र पार करने में अपनी असमर्थता दिखाते हैं। इसके बाद जामवंत जी हनुमान जी को उनके बल का स्मरण दिलाते हैं। तब हनुमान जी गर्जना करके समुद्र मार्ग में चल देते हैं। आगे बढ़ने पर उन्हें सर्पों की माता सुरसा दिखाई देती है। जो हनुमान जी को खाने के लिए सौ योजन का मुंह फैलाए हुए रहती है। हनुमान जी चतुराई करते हुए अपना छोटा सा रूप बनाकर सुरसा के मुख्य में प्रवेश करके बाहर निकल जाते हैं। आगे बढ़ने पर एक सिंध नाम का की राक्षसी मिलती है। उसको मार कर हनुमान जी लंका के द्वार पर पहुंचते हैं। जहां उन्हें लंकिनी से भेंट होता है। वह लंकनी का उद्धार करते हुए लंका में प्रवेश करते हैं। लंका में देखते देखते वह विभीषण जी के महलों में पहुंचते हैं। वहां विभीषण हनुमान को सीता जी का पता बताते हैं। तब हनुमान जी अशोक वन पहुंचकर श्रीराम जी द्वारा दी हुई मुद्रिका माता सीता को देते हैं, और माता को समझा कर फल खाने के बहाने अशोक वन का विध्वंस कर देते हैं। यह सुनकर रावण कई योद्धाओं को भेजता है, अपने पुत्र अक्षय कुमार को भी भेजता है। अक्षय कुमार के मारे जाने के बाद मेघनाद आते हैं और ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर हनुमान जी को पकड़ लेते हैं। और उनको रावण की सभा में सबके सामने ले आते हैं। जहां रावण की सभा हनुमान जी के पूंछ में आग लगाने का आदेश देती है। तब हनुमान जी छोटा सा रूप बनाकर लंका में आग लगाते हैं, और विभीषण के घर को छोड़कर पूरी सोने की लंका को जला डालते है। फिर वह समुद्र में अपने पूछ की आग बुझा कर सीता जी के समीप आ जाते हैं । वहाँ सीता जी उन्हें चूड़ामणि देकर विदा करती हैं। इस प्रसंग को देखकर दर्शक रोमांचित हो जाते है, और पांडाल जय श्रीराम के उद्घोष से गूंज उठता है।
वहीं दिन में कृष्ण लीला के दौरान “राजा भृतहरि चरित्र” का मंचन किया गया। जिसमें दिखाया गया कि प्राचीन उज्जैन के राजा भृतहरि एक बड़े प्रतापी राजा होते हैं। वह अपनी तीसरी पत्नी पिंगला पर मोहित रहते थे और उस पर अत्यंत विश्वास भी करते थे। उस समय राजा के दरबार में एक तपस्वी संत गुरु गोरखनाथ का आगमन हुआ। राजा भर्तृहरि ने संत गोरखनाथ जी का उचित आदर व सत्कार किया गया। इससे तपस्वी गुरु गोरखनाथ अति प्रसन्न होकर राजा को एक फल दिया और कहा कि यह खाने से वह सदैव जवान बने रहेंगे, कभी बुढ़ापा नहीं आएगा, सदैव सुंदरता बनी रहेगी। राजा ने फल लेकर सोचा कि उन्हें जवानी और सुंदरता की क्या आवश्यकता है, चूंकि राजा अपनी तीसरी पत्नी पर अत्यधिक मोहित थे, इसलिए राजा ने वह फल पिंगला को दे दिया। रानी पिंगला भर्तृहरि पर नहीं बल्कि उसके राज्य के कोतवाल पर मोहित थी। यह बात राजा नहीं जानते थे, रानी ने वह चमत्कारी फल कोतवाल को दे दिया। वह कोतवाल एक वैश्या से प्रेम करता था, उसने वह चमत्कारी फल वैश्या को दे दिया। लेकिन वैश्या ने फल पाकर सोचा कि इस फल की सबसे ज्यादा जरूरत हमारे राजा को है, अगर राजा हमेशा जवान रहेंगे तो लंबे समय तक प्रजा को सभी सुख-सुविधाएं देते रहेंगे। यह सोचकर उसने वह चमत्कारी फल राजा को दे दिया। राजा वह फल देखकर हतप्रभ रह गए। राजा ने वैश्या से पूछा कि यह फल उसे कहां से प्राप्त हुआ। वैश्या ने बताया कि यह फल उसे कोतवाल ने दिया है। भर्तृहरि ने तुरंत कोतवाल को बुलवा लिया। सख्ती से पूछने पर कोतवाल ने बताया कि यह फल उसे रानी पिंगला ने दिया है। जब भरथरी को पूरी सच्चाई मालूम हुई तो वह समझ गए कि रानी पिंगला उसे धोखा दे रही है। पत्नी के धोखे से भर्तृहरि के मन में वैराग्य जाग गया और वे अपना संपूर्ण राज्य विक्रमादित्य को सौंपकर उज्जैन की एक गुफा में आ गए। इस दौरान उस गुफा में भर्तृहरि ने 12 वर्षों तक तपस्या की थी। उक्त लीला का मंचन देख दर्शक भाव विभोर हो जाते हैं।
लीला मंचन के दौरान आयोजन समिति के पदाधिकारियों में बैकुंठ नाथ शर्मा, हरिशंकर गुप्ता, सुरेश संगम, कृष्णा वर्मा, उदय सर्राफ जोखन जी, कमलेश्वर तिवारी, चिरंजीलाल चौधरी, नारायण राय सहित अन्य पदाधिकारी मुख्य रूप से मौजूद थे।




