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उपभोक्ता आयोग ने एलआईसी को 5 लाख 52 हजार 960 रुपये के साथ परिवादी को सूद के साथ छतिपूर्ति देने का सुनाया फैसला




न्यूज़ विज़न। बक्सर
जिला उपभोक्ता आयोग ने भारतीय जीवन बीमा निगम की सेवा में बड़ी त्रुटि पाते हुए परिवादी को बीमा की राशि 5 लाख 52 हजार 960 रुपए के अलावा वर्ष 2018 से भुगतान की तिथि तक 6% सूद के और क्षतिपूर्ति के रूप में 25 हजार एवं वाद खर्च के लिए 6 हजार अलग से देने का बुधवार को फैसला सुनाया है।
इस संबंध में परिवादी के अधिवक्ता विष्णु दत्त द्विवेदी ने जानकारी देते हुए बताया कि परिवादी संतोष कुमार ने विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम लिमिटेड से एक पॉलिसी लिया था जिसकी प्रीमियम की पहली राशि के रूप में 55,296 जमा किया गया था, उक्त पॉलिसी को प्रार्थी ने अपनी पत्नी इंद्रावती देवी के लिए खरीदा था जिसमें नॉमिनी के रूप में उसका नाम दर्ज किया गया था। पॉलिसी लेने के कुछ महीने के बाद परिवादी की पत्नी की तबीयत अचानक खराब हो गई जिसकी जांच कमांड हॉस्पिटल लखनऊ में किया गया जहां बाद में इलाज के क्रम में उसकी मृत्यु हो गई। जिसके पश्चात परिवादी ने बीमा के लाभ के लिए सभी दस्तावेजों को विपक्षी संख्या एक भारतीय जीवन बीमा निगम के बक्सर पी रोड स्थित कार्यालय में जमा कर दिया। जहां कुछ दिनों तक विपक्षी उसे लगातार सांत्वना देते रहे लेकिन बाद में परिवादी के दावे को यह कहकर अस्वीकृत कर दिया कि उसकी पत्नी को पूर्व से कैंसर था। उक्त मामले की सुनवाई जिला उपभोक्ता आयोग में किया गया जहां सेवानिवृत न्यायाधीश सह चेयरमैन उपभोक्ता आयोग वेद प्रकाश सिंह एवं सदस्य राजीव सिंह की खंडपीठ ने विपक्षियों की सेवा में त्रुटि पाया। और न्यायालय ने सभी कागजातों का बारीकी से अवलोकन करने के बाद अपने फैसले में कहा है कि विपक्षियों ने परिवादी के 1 लाख के बीमा की राशि का भुगतान कर दिया लेकिन बड़ी राशि का भुगतान नहीं किया जो उसकी सेवा में त्रुटि दर्शाता है।
बहस के दौरान अधिवक्ता विष्णुदत्त द्विवेदी ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित आदेश के अलावा आंध्र प्रदेश उपभोक्ता आयोग द्वारा उपभोक्ताओं के पक्ष में दिए हुए फैसले को दाखिल करते हुए न्यायालय से निवेदन किया था कि उक्त फैसले परिवाद पत्र से पूरी तरह मेल खाता है जिसको आधार बनाते हुए फैसला सुनाया गया। कोर्ट ने अपने आदेश में उच्चतम न्यायालय के अभिमत का भी वर्णन किया है जिसमें यह कहा गया है की पॉलिसी लेते समय बीमा कंपनी जितनी उदार रहती है उतना ही उन्हें दावों के भुगतान के समय होना चाहिए। दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद विपक्षियों की सेवा में त्रुटि पाते हुए आयोग ने उक्त फैसला सुनाया।

