सृष्टि नहीं बदली जा सकती पर दृष्टि जरूर बदली जा सकती है: श्याम चरण दास
नया बाजार सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम में गुरु पूर्णिमा अवसर पर श्रीमद भगवत कथा का आयोजन




न्यूज़ विज़न। बक्सर
नगर के सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम नया बाजार में गुरु पूर्णिमा अवसर आश्रम के महंत पूज्य श्री राजाराम शरण जी महाराज के सानिध्य में चल रहे एकादश दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के नौवें दिन कथा व्यास संत कुल भूषण परम पूज्य श्री नारायण दास भक्तमाली मामाजी महाराज के शिष्य एवं गृहस्थ आश्रम के पौत्र श्याम चरण दास जी के द्वारा संगीतमय कथा सुनाई गयी।








कथा सुनाते हुए कहा की सारा ब्रह्मांड उस परमात्मा का विराट स्वरूप है जो हमारे शरीर में जैसे चरण सबसे नीचे हैं मस्तक सबसे ऊपर है इस तरह यह सारा ब्रह्मांड परमात्मा का स्वरूप है इसमें सबसे नीचे जो पाताल है वह विराट का चरण है सबसे ऊपर जो मुर्धा स्थान है वह विराट स्वरूप का मस्तक है। मैंने पाताल का वर्णन किया तो प्रभु के चरण का वर्णन है ब्रह्मलोक का वर्णन किया तो प्रभु के मस्तक का सूर्य का वर्णन किया तो प्रभु के नेत्रों का वर्णन हुआ चंद्रमा का वर्णन हुआ तो प्रभु के मन का वर्णन हुआ। राजन भारतवर्ष के जितने पर्वत हैं वे सब विराट भगवान की अस्थियां है जितनी वृक्षावलियां हैं वह सब प्रभु की रोमावली हैं काले-काले बादल यह प्रभु की अलकावलियां हैं। नदियां सब विराट की नसें हैं बाकी सब लोग उनके अंग अंग में प्रतिष्ठित हैं प्राणी मात्र का आश्रय स्थान जो ब्रह्मांड है। वह परम विराट प्रभु के रोम-रोम में अंगूर के गुच्छे की तरह लटके हुए हैं अब हमें अपना कल्याण चाहिए तो हमें क्या करना होगा इस सृष्टि में हमारी दृष्टि कैसी होनी चाहिए हम इस सृष्टि को नहीं बदल सकते हैं। हम हमारी दृष्टि को बदल सकते हैं पहले स्थूल दृष्टि थी वही सृष्टि मायामई भासती थी दुखदायनी होती थी लेकिन वही दृष्टि संत कृपा से परिमार्जित सूक्ष्म दृष्टि हो जाए तो वही सृष्टि माया में नहीं वही भगवतमय भागवत कृपामय लगेगी सुखदायिनी हो जाएगी हम देखें सुने सोच बोले स्थूल सृष्टि को लेकिन मनन करें उसमें सूक्ष्म चैतन्य परमात्मा का ।चिंतन करें विराट भगवान के स्थूल जगत को हम सूक्ष्म दृष्टि से देखेंगे तो वह परमात्मा सब जगह प्रतिभाषित होगा। दिखाई पड़ेगा ऐसा देखने वाला ही वास्तव में देखने वाला है इस नश्वर जगत में अणु परमाणु में व्याप्त रहने वाला परम चैतन्य जो परमात्मा है हम उसे पर अपनी दृष्टि रखें तो हम सही हैं।



श्री रामचरितमानस जी में बड़ा सुंदर प्रसंग है प्रभु कहते हैं चंद्रमा में यह काला दाग किस चीज का है तो वानर राज सुग्रीव बोले किष्किंधा के राजा है ना उनको सब जगह जमीन ही दिखाई पड़ती है दर्पण को औंधा करके रख दीजिए तो नीचे की हरियाली दिखाई पड़ेगी चंद्रमा औधा पड़ा है सुग्रीव जी कहते हैं श्यामलता पृथ्वी की परछाई हैं अब प्रभु ने विभीषण से पूछा आप बताइए गोरे चंद्रमा में काला धब्बा क्या है। प्रभु चंद्र ग्रहण के समय राहु ने प्रहार किया था तो उसके प्रहार का जो घाव हुआ वही दाग है अब प्रभु हनुमान जी से पूछते हैं तुम बताओ तब श्री हनुमान जी कहते हैं हे प्रभु चंद्रमा आपका भक्त है इसीलिए गोरे चंद्रमा ने आपको अपने हृदय में बसा रखा है मुझे तो ऐसा लगता है गोरे चंद्रमा में सांवले स्वरूप में आप ही दिखाई पड़ रहे हैं सृष्टि नहीं बदली जा सकती पर दृष्टि जरूर बदली जा सकती है।

