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65 प्रतिशत आरक्षण पर पटना उच्च न्यायालय का फैसला दलित, महादलित, अति पिछड़ा, पिछड़ा समाज के साथ अन्याय: अजीत कुमार सिंह 

न्यूज़ विज़न।  बक्सर 

डुमराँव में छात्रों-नौजवानों द्वारा महागठबंधन की सरकार द्वारा दलित, महादलित, अतिपिछड़ा, पिछड़ा आदि वंचित समुदाय के आरक्षण की सीमा को 65% करने के निर्णय को पटना उच्च न्यायालय द्वारा रद्द करने के विरुद्ध ‘जन आक्रोश मार्च’ निकाला गया । मार्च कृषि कॉलेज के आंबेडकर प्रेरणा स्थान से शुरू होकर मुख्या मार्ग एवं गोला रोड होते हुए गढ़ पर पहुंचा जहा इसे सभा में तब्दील कर दिया गया ।

 

मार्च को सम्बोधित करते हुए डुमराँव विधायक डॉ० अजीत कुमार सिंह ने कहा कि पिछड़ों दलितों एवं वंचित समुदाय के आरक्षण पर हो रहे संगठित हमले व उसे कमजोर किए जाने के इस दौर में महागठबंधन की सरकार ने जाति आधारित जनगणना के आधार पर ओबीसी, ईबीसी, दलित और आदिवासियों का आरक्षण बढ़ाकर 65 फ़ीसदी किया था, जो वर्तमान में भी सामाजिक व आर्थिक स्थिति के बिल्कुल न्याय संगत भी है । उच्च न्यायालय को यह समझना चाहिए था कि आरक्षण विस्तार का फैसला बहुत ही ठोस आधार पर किया गया था । भाजपा तो शुरू से ही जाति गणना की विरोधी रही है। बिहार की सत्ता हड़प लेने के बाद वह 65 प्रतिशत आरक्षण को रद्द करवाने के लिए काफी सक्रिय रही है। जाति गणना के खिलाफ उसके ही लोग न्यायालय में गए थे।

उन्होंने यह भी कहा कि पचास प्रतिशत आरक्षण का अतिक्रमण तो पहले से केंद्र की सरकार ने ही की है । बिना किसी सर्वे, जनगणना अथवा बातचीत के ही उन्होंने दस प्रतिशत आरक्षण बढ़ा दिया । लेकिन इसे किसी भी उच्च न्यायालय अथवा सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द करने की हिम्मत नहीं दिखाई उल्टे इसे लागू करने का आदेश दे दिया गया । इसके अलावा भारत के कई राज्यों जैसे तमिलनाडु आदि ने तो बहुत पहले ही आरक्षण का दायरा बढ़ा दिया है और वहाँ लागू भी है । ऐसे में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा बिहार के 65 प्रतिशत आरक्षण को रद्द करना दुर्भाग्यपूर्ण है । 10 प्रतिशत असंवैधानिक सवर्ण आरक्षण को तो हमारी न्याय व्यवस्था ने सही साबित कर दिया लेकिन दलितों- वंचितों के पक्ष में आरक्षण विस्तार को असंवैधानिक बता रही है। लेकिन अब बिहार की सरकार बदल चुकी है आज की बिहार की सरकार में ऐसे लोग हैं जिन्होंने नब्बे के दशक में जब पिछड़ा समाज को आरक्षण दिया गया तो उसके विरोध में उनके द्वारा सरकार गिरा दी गई और पिछड़ों को प्राप्त आरक्षण को ख़त्म करने की भरपूर कोशिश की गई । बदली हुई सरकार के बदले हुए मिज़ाज वाले निज़ाम से हम साफ़ -साफ़ कहना चाहते है की हम अपने पूरे अधिकार अपने स्वाभिमान और अपने प्रतिनिधित्व की लड़ाई लड़ते रहेंगे । हम 65 प्रतिशत आरक्षण ले कर रहेंगे । कोर्ट से लेकर सड़क तक सड़क से लेकर सदन तक लड़ाई जारी रहेगी ।

 

आज एक बार फिर साबित हो गया है कि जब तक भाजपा देश में है, हमारा संविधान, लोकतंत्र और आरक्षण खतरे में है । इस अन्यायपूर्ण फैसले के खिलाफ बिहार सरकार से हमारा आग्रह है कि वह तत्काल सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाये और दलित-वंचित समुदाय के आरक्षण में हुए विस्तार की रक्षा की दिशा में ठोस कदम उठाए। मार्च में भाकपा माले के प्रखण्ड सचिव कन्हैया पासवान, युवा राजद नेता पियूष यादव, माले नेता रिंकू कुरैशी, बाबूलाल राम, शैलेन्द्र, अनिल राय, नासिर हसन, देवेन्द्र प्रियदर्शी, मनीष यादव, बबलू यादव, पीयूष यादव, पेंटा यादव, भागड़ यादव, उत्पल यादव, अखिलेश यादव, आनंद यादव, फिरोज खान, मनोज कुशवाहा, पवन खरवार, विमल यादव, आफताब आलम, देवा पासवान सहित सैकड़ों लोग शामिल हुए ।

 

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