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श्री राम विवाह प्रसंग की कथा सुन धन्य हो गये साधु-संत और श्रद्धालु

देखी न ऐसी बारात जी जैसी रघुवर तुम्हारी पद गायन पर झूम उठे श्रद्धालु

न्यूज विजन। बक्सर

पूज्य संत श्री खाकी बाबा सरकार का 56वां निर्वाण दिवस पर आयोजित नौ दिवसीय सिय-पिय मिलन महोत्सव में मंगलवार को श्री अग्रमलूक पीठाधीश्वर श्री राजेंद्र देवाचार्य जी महाराज ने रघुवर विवाह प्रसंग की कथा विस्तार पूर्वक सुनाई। संगीतमय कथा सुन श्री सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम में मौजूद साधु-संत और श्रद्धालु झूम उठे। श्री महाराज जी ने कहा कि टूट हूं धनुष होऊं विवाहु। यानि प्रभु श्री राम के द्वारा धनुष तोड़ते ही मर्यादा के अनुसार विवाह संपन्न हो गया था। गुरू महर्षि विश्वामित्र जी कहते हैं कि रघुवर जी का विवाह वैदिक विधि से होना चाहिए। यह सुन जनक जी का रोम-रोम खिल उठा। उन्होंने कहा कि आपके मुंह में घी-शक्कर। उन्होंने शीघ्र पत्रिका लिखा और दूतों के माध्यम से श्री अयोध्या जी भेजवाएं।

 

 

 

जैसे ही पता चलता है कि जनकपुर से दूत आएं हैं, तो प्रभु श्री राम की मैया दूतों से कहती हैं, मेरे राम-लखन कुशल से हैं न। हमारे राम और लखन को पहचानते हैं। अगर नहीं पहचानते हैं तो मैं पहचान बताती हूं। एक सांवला और दूसरा गोरा हैं। वे धनुषधारी हैं और गुरू महर्षि विश्वामित्र जी के साथ रहते हैं। जनकपुर से आए दूत कहते हैं कि हम जनकपुरवासी हैं। आपके दोनों पुत्र सकुशल हैं। मैया आपको हम पर विश्वास करें। अगर विश्वास नहीं है तो हमारे आंखों में झांक कर देख लिजिए। अब बताएं आंखों में देखने से क्या दिखेगा। जनकपुर से आए दूतों ने कहा कि प्रभु श्री राम और अनुज लक्ष्मण जी की छवि मेरे आखों में है और अमिट है। पत्रिका आने के बाद अयोध्या जी में बारात की तैयारी शुरू हो गई।

 

 

 

संगीतमय श्री रामकथा सुन झूम उठे साधु-संत व
श्री अग्रमलूक पीठाधीश्वर श्री राजेंद्र देवाचार्य जी महाराज ने देखी न ऐसी बारात जी जैसी रघुवर तुम्हारी… पद गाएं तो पंडाल में बैठे साधु-संत और श्रद्धालु ताली बजाकर साथ-साथ पद को दुहराते हुए झूम उठे। श्री महाराज जी पूज्य मामा जी का स्मरण करते हुए कहे कि मामा जी कहा करते थे कि सबसे अद्भुत और विलक्षण बारात तो भगवान शिव का था। भूत-बैताल आदि से उनकी बारात सजी थी। लेकिन, इस बारात में कम से कम दुल्हा तो था। रघुवर जी का बारात तो और भी अद्भुत है। बिना दुल्हा का बारात। क्योंकि वर तो पहले से ही ससुराल में विराजमान थे।
इधर दशरथ जी चिंतित थे। लोग पूछ रहे थे कि दुल्हा कहां है। वे इसका जवाब नहीं दे पाते थे। वे जवाब देने में संकोच कर रहे थे। तब दशरथ जी गुरू वशिष्ठ जी से पूछे, आखिर लोगों के इस सवाल का क्या जवाब दूं। गुरू वशिष्ठ जी ने कहा कि भरत जी को सजा-धजा कर दुल्हा की जगह बैठा दो और कोई पूछे तो बोलना नहीं है सिर्फ भरत जी की ओर संकेत कर देना है। दशरथ जी कहते हैं कि दुल्हा बनकर जाएंगे भरत और रघुवर दुल्हन लेकर आएंगे। इससे भरत का उपहास नहीं होगा। वशिष्ठ गुरू कहते हैं कि शुभ लग्न है, इसमें जो-जो लोग जाएंगे वे उधर से दुल्हन लेकर आएंगे।

 

 

 

 

श्री अग्रमलूक पीठाधीश्वर श्री राजेंद्र देवाचार्य जी महाराज ने अपना विचार रखते हुए कहा कि बक्सर के इस आश्रम में 63 वर्षों से श्री सीताराम विवाह महोत्सव का उत्सव मनाया जा रहा है। इस महोत्सव को राष्ट्रीय उत्सव का दर्जा मिलना चाहिए। श्री सीताराम विवाह महोत्सव के चलते बक्सर की अलग पहचान बन गई है। उन्होंने कहा कि केंद्र में अच्छे लोग बैठे हैं। और इस बार तो बिहार की जनता भी अच्छे-अच्छे लोगों को चुनकर भेजा है। केंद्र और राज्य की सरकार को इस महोत्सव को राष्ट्रीय उत्सव

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