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महात्मा गांधी मजबूरी का नाम नहीं मजबूती का नाम है, देश उन्हें कभी नहीं भूलेगा : डॉ दिलशाद आलम 

न्यूज़ विज़न।  बक्सर 

मानवाधिकार एवं सामाजिक न्याय शाहाबाद क्षेत्र के सदस्यों ने गांधी जयंती और लाल बहादुर शास्त्री जयंती मनायी। इस मौके पर बिहार प्रांत के प्रदेश सचिव डॉक्टर दिलशाद आलम ने कहा की दोनों महापुरुषों को याद करके आज भारत देश धन्य है उनकी सादगी भरी जिंदगी से हम लोगों को सीख लेनी चाहिए कि सादा रहकर भी जिन्होंने देश को आजाद किया सत्याग्रह आंदोलन से लेकर चंपारण आंदोलन को याद करते हुए डॉक्टर दिलशाद आलम ने कहा कि महात्मा गांधी मजबूरी का नाम नहीं मजबूती का नाम है देश उन्हें कभी नहीं भूलेगा।

 

 

डॉ दिलशाद आलम ने लाल बहादुर शास्त्री को याद करते हुए कहा कि वह प्रधानमंत्री रहते हुए देश के लिए बहुत कार्य किया और अपनी सादगी भरी जिंदगी से सबको प्रेरित किया। मौके पर निजामुद्दीन खान ने कहा कि उनकी जिंदगी में महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री का बहुत बड़ा रोल है उनके आदर्शों पर चलते हुए उन्होंने 35 साल देश की सेवा की और अरुणाचल प्रदेश जैसे भयानक पहाड़ियों के बीच उन्होंने 24 घंटे ड्यूटी किये। मौके पर नासिर हुसैन आदि सदस्यों ने भी महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री के जीवनी पर प्रकाश डाला।

 

मौके पर अंगद, मनीष कुमार, इम्तियाज अंसारी, सनम बहादुर, पिंटू चौरसिया, मंटू श्रीवास्तव, अजय कुमार पांडे, अर्चना, रुखसाना, मीणा सहित आने को लोग उपस्थित थे। उसके तत्पश्चात कमलदह पोखरा पर डॉक्टर दिलशाद आलम और उनके सदस्यों ने माल्यार्पण किया और महात्मा गांधी के चरणों को स्पर्श किये। ऐसे महापुरुष को हम सभी नमन करते हैं उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी एक महान पुरुष ही नहीं एक विचार है और उस विचार को लाकर लोग अपनी जिंदगी में  नया ऊर्जा ला सकते हैं। साबित खिदमत अस्पताल के निदेशक ने यह भी कहा की महात्मा गांधी इंग्लैंड जाकर बैरिस्टर की पढ़ाई की थी वहां से वह दक्षिण अफ्रीका भी गए जहां उन्होंने गोरे और काले का भेदभाव मिटाया। उसके पश्चात वह देश में लौटकर अंग्रेजों की हुकूमत से खूब लड़ी और सत्य और अहिंसा के रास्ते को अपनाया। बिना किसी शस्त्र के लड़ाई लड़ी। उसे जमाने में जब लाल बहादुर शास्त्री का मासिक वेतन सिर्फ ₹50 था तो वह उसमें से ₹10 सैनिकों के लिए कुर्बान कर दिया करते थे ऐसी सादगी भरी जिंदगी के महापुरुषों को सलाम और सलाम हजारों सलाम।

 

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