भागवत पुराण का मूल उद्देश्य जीव को ईश्वर से जोड़ना है: रणधीर ओझा
चरित्रवन स्थित बुढ़वा शिव मंदिर में श्रीमद्भागवत कथा का हुआ शुभारंभ

 

न्यूज विजन। बक्सर
नगर के चरित्रवन स्थित बुढ़वा शिव मंदिर में श्रीमद्भागवत कथा का शुभारंभ बुधवार को हुआ। इस मौके पर श्री त्रिदंडी देव मंदिर के महंत श्री श्री राजगोपालाचार्य जी महाराज तथा श्रीनिवास मंदिर के महंत श्री ने व्यासपीठ की पूजन किया।
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
श्रीमद्भागवत कथा के प्रथम दिवस पर मामाजी के कृपा पात्र आचार्य श्री रणधीर ओझा ने कहा कि भागवत पुराण का मूल उद्देश्य जीव को ईश्वर से जोड़ना और उसके जीवन में दिव्यता का संचार करना है। उन्होंने कहा कि भागवत केवल ग्रंथ नहीं, बल्कि भगवान का साक्षात स्वरूप है और इसका श्रवण करना स्वयं भगवान से मिलने का माध्यम है।
आचार्य श्री ने सत्संग का अर्थ और महत्व के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि सत्संग का अर्थ है ‘सत्’ अर्थात् सत्य, परमात्मा या सद्गुणों के साथ संग, यानी ऐसे लोगों, विचारों और वातावरण के साथ रहना जो हमें भगवान की ओर ले जाए। सत्संग का अर्थ केवल साधु-संतों के पास बैठना नहीं है, बल्कि मन, वचन और कर्म से भगवान की बातों में जुड़ जाना ही सच्चा सत्संग है।
आचार्य श्री ने सत्संग के प्रभाव के बारे में बताया कि इससे मन की शुद्धि होती है। जैसे गंदे कपड़े को जल से धोने पर वह निर्मल हो जाता है, वैसे ही मन के विकार सत्संग के अमृत से धुल जाते हैं। इससे संस्कारों में परिवर्तन होता है। जहां पहले मनुष्य को संसार के विषयों में आकर्षण रहता है, वहीं सत्संग से उसका झुकाव भगवान, भक्ति और सेवा की ओर होने लगता है। आचार्य श्री ने बताया कि सत्संग न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह व्यक्ति के आचार, विचार और जीवन दृष्टि को बदलने का शक्तिशाली माध्यम है। उन्होंने समझाया कि भगवान के चरित्र और उनके भक्तों के जीवन से प्रेरणा लेकर व्यक्ति अपने कर्मों को सुधार सकता है और मानसिक शांति, भक्ति और अध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर हो सकता है।
कथा में आचार्य श्री ने स्पष्ट किया कि सत्संग का वास्तविक लाभ तब मिलता है जब हम उसे सुनकर और समझकर अपने दैनिक जीवन में उतारते हैं। उन्होंने बताया कि सत्संग न केवल आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करता है, बल्कि यह मनोबल बढ़ाने, नकारात्मक विचारों को दूर करने और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने में भी सहायक है।
 





