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बिहार सरकार शिक्षक नियमावली 2023 को रद्द कर शिक्षको को राज्यकर्मी का दर्जा दे

राज्य कर्मी की दर्जा की मांग को लेकर माध्यमिक शिक्षको का धरना पांचवे दिन रहा जारी

बक्सर। न्यूज विजन
शिक्षको नियमावली 2023 के विरोध में बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के आह्वान पर चल रहे राज्यव्यापी धरना के पांचवे दिन कवलदह पोखरा परिसर में आयोजित धरना की अध्यक्षता डुमराव प्रखंड अध्यक्ष पशुपति नाथ सिंह एवं संचालन चंदन कुमार ने किया।
धरना को संबोधित करते हुए जिलाध्यक्ष विनोद कुमार चौबे ने कहा कि हमारे शिक्षक पूर्णतः संगठित है और अपने संगठित ताकत से आंदोलन के जरिये अपना अधिकार हासिल करेंगे। वही जिला सचिव शंकर प्रसाद ने कहा कि जबतक बिहार सरकार अपना जारी आदेश वापस लेकर शिक्षको को सरकारी कर्मी का दर्जा नहीं दे देगी विरोध जारी रहेगा। डुमरांव अनुमंडल अध्यक्ष कुमार विमल ने अध्यापक नियमावली के खिलाफ आंदोलन को तेज करने का आह्वान किया। प्रमंडलीय कार्यसमिति सदस्य अखिलेश्वर दुबे ने कहा कि हमारी सड़क की आवाज अब सदन में गूंजेगी। मूल्यांकन परिषद अध्यक्ष के के ओझा ने कहा कि सरकार शिक्षकों के साथ धोखा करना बंद करें। राजीव रंजन शर्मा ने कहा कि सरकार अपने नैतिक चरित्र को खो दी है। मदन सिंह ने उप मुख्यमंत्री को अपने समान काम समान वेतन के वादे की याद दिलाई। शिक्षक रामदुलार यादव ने नियमावली की विसंगतियों को दूर करने की अपील की। सभा को संबोधित करते हुए अमरजीत कुमार ने कहा कि आकर्षक वेतन के नाम पर सरकार नए आवेदकों को भी धोखा दे रही है वास्तव में सरकार शिक्षकों को हमेशा ठग रही है। जिला उपाध्यक्ष बलिराम कुमार ने कहा कि सरकार गलत नीतियों के कारण प्रबुद्ध शिक्षक सड़क पर उतरने पर विवश है। अनुमंडल सचिव लक्ष्मण सिंह ने कहा कि हम आंदोलन को तब तक जारी रखेंगे जब तक कि राज्य कर्मी का दर्जा न मिल जाए। सभा को अंकेश कुमार, नृपेंद्र कुमार, शेषनाथ दुबे, अशोक कुमार, राकेश कुमार पांडे, अभिमन्यु तिवारी, धनंजय कुमार, अनिल कुमार, अजय चौबे, संजय कुमार अरुण, श्रीभगवान सिंह, उमेश सिंह, हनुमान प्रसाद राय, ब्रह्मेश्वर सिंह ने संबोधित किया। अपने अध्यक्षीय संबोधन के दौरान जिला उपाध्यक्ष रंजन कुमार ने कहां कि सरकार अपने तानाशाही रवैया को छोड़कर हमारे संगठन से वार्ता करें अन्यथा हमारा संगठन पूर्ण तालाबंदी और हड़ताल को विवश होगा। जिला पार्षद चंदन कुमार राय ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि सरकार द्वारा अपने ही बहाल किए शिक्षकों को अयोग्य ठहराना हास्यास्पद है।

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