बचपन के मित्र सुदामा का नाम सुन नंगे पाँव दौड़ जाते है श्रीकृष्ण .. …
रामलीला में "दशरथ मरण, चित्रकूट में भरत मिलाप" प्रसंग का हुआ मंचन



न्यूज़ विज़न। बक्सर
श्री रामलीला समिति बक्सर के तत्वावधान में नगर के किला मैदान स्थित रामलीला मंच पर चल रहे 22 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के क्रम में बारहवें दिन गुरुवार को वृंदावन से पधारे श्री राधा माधव रासलीला एवं रामलीला मंडल के स्वामी श्री सुरेश उपाध्याय “व्यास जी” के सफल निर्देशन में देर रात्रि मंचित रामलीला के दौरान “दशरथ मरण, चित्रकूट में भरत मिलाप” प्रसंग का विधिवत मंचन किया गया।








जिसमें दिखाया गया कि जब मंत्री सुमंत जी प्रभु श्री राम लक्ष्मण एवं सीता को गंगा के समीप छोड़कर लौटते हैं, तो वह काफी दुखित एवं व्यथित रहते हैं। इधर निषाद राज भी लौट रहे होते हैं। उन्होंने मंत्री सुमन्त को दुखित व व्याकुल देखकर उन्हें समझाते हैं और उनको सकुशल अयोध्या पहुंचाने के लिए उनके रथ पर अपना सारथी उनके साथ लगा देते हैं। मंत्री सुमंत विलाप करते हुए सायं काल के बाद अयोध्या पहुंचते हैं, और महाराज दशरथ से जाकर सारा हाल सुनाते हैं। मंत्री सुमंत की बात सुनकर महाराज व्यथित हो जाते हैं और पूर्व में घटित श्रवण कुमार की घटना को रानी कौशल्या से जाकर बताते हैं। श्री राम की चिंता में महाराजा दशरथ की हालत काफी बिगड़ जाती है, और उनका देहांत हो जाता है. राजन के देहांत होने की खबर सुनकर गुरु वशिष्ठ जी आते हैं वह एक दूत भरत को बुलाने के लिए उनके ननिहाल भेजते हैं। भरत जी अपने ननिहाल से आते हैं और वह राम, लक्ष्मण को नहीं देखकर उनके बारे में पूछते हैं. सारा वृत्तांत जानकारी होने पर मां कैकई को नाना प्रकार के वचन सुनाते हैं, और अपने पिता दशरथ जी का अंतिम संस्कार करते हैं। संस्कार के पश्चात भरत जी श्री राम को मनाने के लिए चित्रकूट जाने की तैयारी करते हैं। मार्ग में उनसे निषाद राज जी से भेंट होती है। निषादराज जी उन्हें लेकर प्रभु श्री राम जी के पास पहुंचते हैं। जहां भगवान श्री राम एवं भरत जी का सुंदर मिलन होता है। प्रभु श्री राम को भाई भरत जी से जब यह पता चला कि उनके पिता का देहांत हो गया तो दुखित होते हैं, और नदी के किनारे जाकर पिता को श्रद्धांजलि देते है. भरत जी उनसे अयोध्या लौटने की बारंबार विनती करते हैं परंतु श्री राम पिता के वचनों द्वारा वचनबद्ध होने की बात कह कर लौटने से इनकार कर देते हैं, और भरत जी पर कृपा करते हुए अपनी चरण पादुका प्रदान करते हैं। भरत जी चरण पादुका को लेकर अयोध्या लौटते हैं और राज सिंहासन में पादुकाओं को स्थापित कर देते हैं. यह दृश्य देखकर दर्शक भाव विभोर हो जाते हैं।




वहीं दूसरी तरफ मंडल स्वामी सुरेश उपाध्याय “व्यास जी” के सफल निर्देशन में दिन में कृष्ण लीला के दौरान “सुदामा चरित्र भाग -2″ प्रसंग का मंचन किया गया जिसमें दिखाया गया कि गुरु संदीपन के यहां से श्री कृष्ण और सुदामा का विद्या अध्ययन पूर्ण होने पर वह अपने नगर को लौट कर आते हैं। समयानुसार सुदामा जी की वसुंधरा नामक स्त्री से विवाह होता है। दिन पर दिन सुदामा अत्यंत गरीब हो जाते हैं और श्री कृष्ण द्वारकापुरी के राजा हो जाते हैं। बहुत बार पत्नी के हठ करने के पश्चात सुदामा एक दिन अपने बचपन के मित्र श्री कृष्ण के पास मदद मांगने के लिए जाने को तैयार होते हैं। ब्राह्मणी श्री कृष्ण को भेंट में देने के लिए पड़ोस से चावल लेकर आती है और चावल की पोटली लेकर सुदामा द्वारकापुरी के लिए चल देते हैं. मार्ग में नदी मिलती है जहां श्रीकृष्ण केवट के भेष में उन्हें नदी पार कराते है. चलते चलते रात्रि हो जाती है, काफी थकान होने पर सुदामा एक वृक्ष के नीचे सो जाते हैं तब श्री कृष्ण अपने योग माया से सुदामा को महल के प्रथम द्वार तक पहुंचा देते हैं। जैसे ही श्रीकृष्ण को द्वारपाल द्वारा सुदामा के आने की जानकारी मिलती है, प्रभु अपने बचपन के मित्र सुदामा से मिलने महलों से द्वार तक नंगे पांव दौड़ कर आते हैं और अपने महलों में ले जाकर अपने आसन पर बिठाते हैं वह अपने मित्र का अपने हाथों से पांव पखारते हैं। और सुदामा द्वारा भेंट में लाए हुए चावल को मुठ्ठी में लेकर खाने लगते हैं। यह देखकर सुदामा संकोच वश श्रीकृष्ण से कुछ भी नहीं मांग पाते है। उनके कुछ नहीं मांगने पर भी श्री कृष्ण मुट्ठी भर चावल के बदले दो लोक की संपत्ति प्रदान करते हैं। इस दृश्य को देख दर्शक भाव विभोर हो जाते है। जय श्रीकृष्ण का जयघोष लगाते हैं।
लीला के दौरान आयोजकों में समिति के सचिव बैकुंठ नाथ शर्मा, संयुक्त सचिव सह मीडिया प्रभारी हरिशंकर गुप्ता, सुशील मानसिंहका, राजेश चौरसिया, ब्रजमोहन सेठ, पवन चौरसिया, उपेन्द्र पाण्डेय सहित अन्य लोग मुख्य रुप से उपस्थित रहे।

