बंधन और मोक्ष का कारण मन ही माना गया है, यह देह जीव को थोड़े दिनों के लिए उधार मिला हुआ है : श्याम चरण दास
सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम में श्रीमद भागवत कथा के सातवें दिन बन्धन क्या है? का कथा व्यास ने किया विस्तृत वर्णन




न्यूज़ विज़न। बक्सर
नगर के सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम नया बाजार में गुरु पूर्णिमा अवसर आश्रम के महंत पूज्य श्री राजाराम शरण जी महाराज के सानिध्य में चल रहे एकादश दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के सातवे दिन कथा व्यास संत कुल भूषण परम पूज्य श्री नारायण दास भक्तमाली मामाजी महाराज के शिष्य एवं गृहस्थाश्रम के पौत्र श्याम चरण दास जी के द्वारा संगीतमय कथा सुनाई गयी।









कथा के दौरान श्याम चरण दास ने कपिल देव भगवान के द्वारा दिव्य उपदेश का वर्णन किया बन्धन क्या है? किस चीज का बंधन है? जिस बंधन से छूटना है रस्सी का बंधन हो तो चाकू से काट सकते हैं कैंची से काटा जा सकता है लोहे का बंधन हो तो लोहे काटने वाली आरी से चाहे छेनी हथौड़ी से काटा जा सकता है यह कौन सा बंधन है जिससे छूटना है शरीर को रस्सी से बांधा जा सकता है हथकड़ी बेड़ी से बांधा जा सकता है लेकिन आत्मा को रस्सी से नहीं बांधा जा सकता। सोने और लोहे की सांकल से नहीं बांधा जा सकता तो यह आत्मा किस बंधन में पड़ी है। माताजी इस जीवन के बंधन का कारण और मोक्ष का कारण मन ही माना गया है यह देह जीव को थोड़े दिनों के लिए उधार मिला हुआ है जैसे कुर्ता धोती चादर आदि मिलते हैं और जब इसी में भाव कर लेता है कि यह मैं हूं तो यह देह का प्रथम बंधन हो गया। मैं ब्राह्मण हूं मैं गोरा हूं मैं काला हूं मैं हटाकट्ठा हूं यह सब शरीर की उपाधियां हैं आत्मा में काला गोरा दुबला मोटा यह सब नहीं है। देह से संपृक्त जगह जमीन महल अटारी संबंधित व्यक्ति रिश्तेदार कुटुंबी इनमें मम का भाव हो जाना यह दूसरा बंधन है। यह दूसरी गांठ पड़ जाती है शरीर के प्रति अहम और शरीर के संबंधियों के प्रति मम यही बंधन बहुत जोरदार बंधन है यही आगे चलकर काम क्रोध मद लोभ इत्यादि का सृजन करते हैं। इसलिए शरीर के प्रति अहम और शरीर से संबंधित जो है उसके प्रति मम इन दोनों बंधनों से छूटना है यही आत्मा को बांधने वाला बंधन माना जाता है। जिसके प्रति मम हो करके मेरा और अगर इस मेरेपन में अत्यधिक आसक्ति हो जाती है तो समझिए बहुत जोरदार गांठ पड़ गई संग है ना संग कहते हैं मानसिक लगाओ को मानसिक लगाओ क्या है जिसके बिना बेचैनी का अनुभव होने लगे एक प्रकार से वह आसक्ति का रूप हो जाता है जिसमें संग हो उसके बिना हम रह नहीं सकते अत्यधिक आसक्ति ही बंधन का कारण है।
जैसे बिल्वमंगल जी को चिंतामणि वैश्या के प्रति आसक्ति हो गई थी श्री तुलसीदास जी को अपनी पत्नी रत्नावली के प्रति अत्यधिक आसक्ति हो गई थी इस तरह अत्यधिक आसक्ति का हो जाना ही यह अजर पास है वही बंधन का हेतु है अजर पास अर्थात कभी जर्जर नहीं होने वाला इस बंधन की इतनी जोरदार गांठ पड़ जाती हैं वहीं आसक्ति वहीं ममता वही अपनापन यदि साधु पुरुषों के प्रति हो जाए जैसे तुलसीदास जी के प्रति किसी का हित हरिवंश महाप्रभु से किसी का चैतन्य महाप्रभु के साथ उनके साथ अपनापन हो जाए कि यह हमारे हैं इनमें ममता हो जाए तो मोक्ष द्वारा समझो हम मुक्ति के द्वार पर खड़े हैं।







