भगवान नरसिंह प्राकट्य दिवस : भगवान का अवतार धर्म की स्थापना एवं अधर्म को खत्म करने के लिए होता है – पवन नन्दन




न्यूज़ विज़न। बक्सर
भारतवर्ष को अनादि काल से देवभूमि के नाम से जाना एवं पहचाना जाता है। इस पावन देवभूमि पर जिसने अपनी कुटिल आंख गडाई, उसका सर्वनाश अवश्य हुआ है। यह समस्त ग्रंथों में वैदिक साहित्य के साथ साथ सभी धार्मिक पुस्तक कथा वेद, पुराण, उपनिषद्, शास्त्र, स्मृति आदि सहित सभी उपासना पद्धति के धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है।








इसी आलोक में देवासुर संग्राम के अनेक परिस्थितियों में अनेक बार असुरों का संहार करने के लिए और सृष्टि पर धर्म की स्थापना के लिए हर युग में, हर काल में मानवता के रक्षार्थ, धर्म के रक्षार्थ भगवान विष्णु जी का प्राकट्य भिन्न भिन्न युगों-युगों में हुआ है। जिसमे हिरण्यकशिपु ने अपनी तपस्या से अमर होने का वरदान भगवान ब्रह्मा जी से मांगा, तब ब्रह्मा जी ने कहा यह असम्भव है, क्योंकि जो जन्म लेता है, उसका मरना भी निश्चित है। तब हिरण्यकश्यप ने कहा तो भगवान हमें यह वरदान दीजिए कि न तो मैं दिन में मरू ना रात में, ना दोपहर में, ना शाम में, ना घर में, ना बाहर में, ना किसी अस्त्र से ना किसी शस्त्र से ना किसी देव से ना ही किसी जानवर से अर्थात मैं किसी तरह मरू नहीं। ब्रह्मा जी से मनोनुकूल वरदान पाकर, वह स्वच्छंद होकर पृथ्वी पर हाहाकार मचा कर साधु संतों का जीना दूभर कर दिया। उसके भयंकर कुकृत्य विक्षोभित समस्त मानव भगवान विनीत होकर आर्य प्रार्थना करना शुरू कर दिये। तब भगवान नरसिंह देव जी अवतार वैवाख माह के शुक्ल पक्ष के चतुर्दशी को हुआ।



भगवान नरसिंह देव के पावन प्राकट्य दिवस पर, भोजपुरी दुलार मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष, साहित्यकार, मरणोपरांत देहदानी, डॉ ओमप्रकाश केसरी पवन नन्दन, ने एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से भगवान नरसिंह देव जी के गुणगान हम सभी के साथ साझा करने का प्रयास कियें है।भगवान ब्रह्मा जी के वरदान से हिरण्यकशिपु मदांध होकर अपने कुकृत्यो सारी पृथ्वी पर हाहाकार मचाना शुरू कर दिया जिससे समस्त मानव, साधु संत महात्मा,जड़ चेतन जानवर यानि पृथ्वी पर निवासरत सभी हाहाकार कर उठे थे। यहां तक की उसने अपने बेटे प्रहलाद तक को नहीं छोड़ा, क्योंकि उसका बेटा भगवान की भक्ति की पराकाष्ठा पार कर चुका था, अपने बेटे अनेक यातनाएं दी यथा हाथी से कुचलवाया, पहाड़ से गिराया, सर्पों से कटवाया, हथियार से वार कराया, अपनी बहन होलिका द्वारा आग में जलवाया, लेकिन प्रह्लाद अपनी भक्ति से डिगा नहीं।
सृष्टि पर सभी चीजें समय के आधीन होता, हिरण्यकशिपु के भयानक अत्याचार से खुद अत्याचार भी सहम गया था। अपनी हार देखकर और बौखलाकर एक दिन भरी हुई राजसभा में अपने को बुलाकर खुद अपने हाथों से सजा देने लिए जंजीरों जकड कर बुलवाया ताकि लोग देखें और फिर किसी को मेरे खिलाफ सिर उठाने का साहस नहीं कर सके। प्रह्लाद मैं तुम्हें आखिरी बार कहता हूँ कि तुम भगवान विष्णु को छोड़कर मुझे भजो क्योंकि मैं खुद भगवान हूं। यह सुनकर उसका बेटा बड़े ही संयम स्वर में बोला पिताजी केवल भगवान विष्णु ही इस दुनिया के जड चेतन सभी के मालिक हम और आप भी उन्हीं के आधीन आप अब भी अपनी अज्ञा़ता अपने अहंकार छोड उनकी शरण आ जाइये वह परमपिता परमेश्वर जो हर जगह, हर वस्तु और सभी में विद्यमान रहतें है। अपने बेटे की बातों से तिलमिला कर हिरण्यकशिपु चिल्ला पडा कहां है तुम्हारा भगवान बुलाओ जल्दी बुलाओ आज तुम्हारा काम तमाम कर दूंगा। पिताजी वो तो हर जगह विद्यमान हैं। इस खम्भें में, है …
हां है इतना सुनते ही वह गुस्से से लाल होकर खम्भे पर बडे दम लगाकर पैर से आघात किया। पैर की आघात से साथ ही बडे भयंकर आवाज होना शुरु हो गया और कुछ छड में, आधा शरीर सिंह और आधा शरीर मनुष्य के रूप में भगवान नरसिंह जी देव के रुप भगवान का अवतार हुआ. इस रूप को देखकर प्रह्लाद बहुत बहुत ही खुश हुए जबकि सभी के सभी लोग भयभीत हो गये।
तभी भगवान नरसिंह देव जी ने हिरण्यकशिपु को उठाकर द्वार पर अपनी जांघों पर बिठाकर बोले देख लो खूब ठीक से देख लो तुम्हारे वरदान से अलग सब कुछ अलग है ऐसा कहकर भगवान नरसिंह देव जी ने हिरण्यकशिपु का जीवन लीला खत्म कर दी।
यदा ही यदा ही धर्मस्य ग्लानिर भवति भारत………..
भगवान श्रीकृष्ण जी बोले हे पार्थ जब जब भी धर्म की हानि होती साधु, संतों महात्माओं पर पुण्यात्माओं व धरती पर अत्याचार बढ़ता है तब तब मैं किसी ना किसी रूप में अवतार धारण करके अवश्य अवतरित होकर सभी संत जनों की रक्षा करता हूँ। इसी चन्द शब्दों के माध्यम से भगवान नृहसिंह देव जी के प्राकट्य दिवस पर प्रणाम निवेदित करते हुए, अपने को धन्य करते सभी मानवता के प्रति अपना निवेदन समर्पित करता हूँ।
ओम प्रकाश केशरी पवन नंदन

