गुरु ईश्वर से बड़ा हो सकता है परंतु ईश्वर नहीं हो सकता : आचार्य रणधीर ओझा




न्यूज विजन। बक्सर
शहर के नया बाजार स्थित श्री सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम में महंत राजाराम शरण दास जी महाराज के मंगला अनुशासन आयोजित नव दिवसीय रामकथा के चौथे दिन आचार्य रणधीर ओझा ने मानस जी में गुरु का महत्व पर बोलते हुए बताया कि पार्वती को शिव की प्राप्ति मे गुरु नारद जी की महती भूमिका रही। अध्यात्म सधना के पथ में गुरु का स्थान अप्रितम है। व्यावहारिक जगत में भी मार्गदर्शन के अभाव में यात्री बहुधा मार्ग भटक जाया करते है। अतः आवश्यकता केवल मार्ग दर्शन की ही नहीं अपितु एक पथ प्रदर्शक के चुनाव की है जो विश्वस्त हो जिसे गंतव्य और मार्ग दोनों का सही ज्ञान हो, अध्यात्म पथ निर्देशक ही गुरु है।
उनहोने कहा की पार्वती के दृष्टि में नारद जी ऐसे ही महापुरुष थे। शिव प्राप्ति में जिस साधन पद्धति को पार्वती अपनाई थी। उसके उपदेष्टा देवर्षि नारद ही थे। परीक्षा के लिए आए सप्तऋषियों ने शिव, नारद और साधना पद्धत की निंदा की तो पार्वती ने कहा यदि सौ बार आकर शिव भी साधना छोड़ने के लिए कहेंगे तो मैं छोड़ने वाली नहीं। सप्तऋषियों ने भगवान विष्णु के प्रति आकर्षण उत्पन्न करना चाहा परंतु गुरु के वचनों के प्रति दृढ़ निष्ठा हैं पार्वती को। आचार्य श्री ने कहा आध्यात्मिक साधना में गुरु का स्थान इष्ट की तुलना में श्रेष्ठ बताया गया है पार्वती के वाक्य में इसी का समर्थन होता है। श्री वाल्मीकि जी भी कहते हैं की है प्रभु जो सधक आपकी अपेक्षा गुरु के अधिक महत्व साधन देता है और उनकी हर प्रकार की सेवा करता है आप उसके हृदय में निवास करें। लेकिन दुर्भाग्य से आज के परिवेश में कुछ गुरु लोग उसका के द्वारा इसका दुरुपयोग किया जा रहा है ईश्वर के स्थान पर अपने अहं को प्रतिष्ठित करना चाहते हैं एवं गुरु अपनी पूजा और स्वार्थ सिद्धि उनका उपदेश है। जो सनातन के लिए उचित नहीं है ।
आचार्य श्री ने कहा कि ईश्वर की तुलना में गुरु उसकी तरह श्रेष्ठ है जिस तरह एक स्त्री के लिए पति की तुलना में सांस ससुर श्रेष्ठ है । यद्यपि पत्नी का सर्वस्व तो पति है उसके नातो का केंद्र भी वही है। विवाह के पूर्व होने वाले पति को कन्या केवल नमस्कार करती है लेकिन वर के माता-पिता के चरण स्पर्श करती है। कन्या वस्तुत पति के प्रति हैं अनुरागगिणी है। उसे ही पाना चाहती है पर उसे यह ज्ञात है पति की प्रीति माता-पिता के बिना नहीं हो सकती। इसलिए वह अपने शिल सौजन्य से उन्हें संतुष्ट करती है यह उसकी कृतज्ञता की अभिव्यक्ति है सप्तऋषियों ने पार्वती को परीक्षा में पास किया। ऋषियों ने कहा कि तुम्हें शिव की अवश्य प्राप्ति होगी साथ में साधना की भी प्रशंसा किया। वस्तुत हम लोगों को यह समझना चाहिए कि ईश्वर जीव का पति है किंतु गुरु उसे ईश्वर को भी प्रकट करता हैं इसलिए वह सास ससुर के समान है उसको अधिक सम्मान मिलना चाहिए, पार्वती का गुरु नारद के प्रति आदर भी इसी भावना से प्रेरित है गुरु ईश्वर से बड़ा हो सकता है परंतु ईश्वर नहीं हो सकता।









